MP News: मध्य प्रदेश में आगामी निकाय चुनावों में दलों और उम्मीदवारों को जलसंकट के सवालों से जूझना होगा. (सांकेतिक तस्वीर)
Explainer: राज्य में करीब डेढ़ हजार नल-योजनाएं बंद पड़ी हैं, 6 हजार से ज्यादा हैंडपंप अभी से सूख चुके हैं. संभवतः अप्रैल में जब निकाय चुनाव हो रहे होंगे, तब तक पानी की समस्या विकराल रूप में सामने आने लगेगी. उस वक्त दलों और उम्मीदवारों को जनता के जलसंकट से जुड़े सवालों का जवाब देना मुश्किल पड़ जाएगा.
- News18Hindi
- Last Updated:
January 27, 2021, 6:46 PM IST
भोपाल. मध्य प्रदेश में जल्द होने जा रहे नगरीय निकाय चुनाव (Urban Body Election) में जलसंकट (Drinking Water Crisis) का मुद्दा राजनैतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के गले में सवालों की फांस बनने वाला है, क्योंकि निकायों में आने वाले शहरी और ग्रामीण (Urban and Rural) इलाकों में रहने वाली बड़ी आबादी इस समस्या से बुरी तरह जूझ रही हैं. राज्य में करीब डेढ़ हजार नल-योजनाएं (Tap Schemes) बंद पड़ी हैं, 6 हजार से ज्यादा हैंडपंप (Hand Pumps) अभी से सूख चुके हैं. संभवतः अप्रैल में जब निकाय चुनाव हो रहे होंगे, तब तक पानी की समस्या अपने विकराल रूप में सामने आने लगेगी. उस वक्त चुनाव मैदान में उतरे दलों और उम्मीदवारों को जनता के जलसंकट से जुड़े सवालों का जवाब देना मुश्किल पड़ जाएगा.
बता दें कि मध्य प्रदेश में अप्रैल माह में चुनाव कराने के संकेत राज्य निर्वाचन आयोग से मिल चुके हैं. सियासी पार्टियां चुनावी बिसात बिछाने, उन पर गोटियां बिठाने, रणनीतियां बनाने के काम में जुट चुके हैं. जाहिर है इन चुनावों में पानी, बिजली, सड़क, नाली, शौचालय जैसे बुनियादी मुद्दे ही प्रमुख रहेंगे, लेकिन जो सबसे बड़ा मुद्दा उभरकर सामने आने वाला है, वह है जलसंकट का मुद्दा. इसे सबसे बड़ा मुद्दा इसलिए कहा जा रहा है कि अभी से शहरी और ग्रामीण इलाकों में पानी का संकट बढ़ना शुरू हो गया है. गर्मियां आते-आते यह संकट और अधिक भयावह होने वाला है, क्योंकि राज्य में बुंदेलखंड और मालवा अंचल के जिलों समेत करीब दो दर्जन से ज्यादा ऐसे जिले हैं, जिन्हें बीते मानसून के दौरान अवर्षा की स्थिति का सामना करना पड़ा है.
अभी से गरमाने लगा पानी का मुद्दा
इन चुनावों में जलसंकट प्रमुख मुद्दा बनने के संकेत अभी से मिलने लगे हैं. श्योपुर जिले से विजयपुर नगर परिषद से खबर आई है कि सांसदों, विधायकों और निकायों के जनप्रतिनिधियों के तमाम बड़े-बड़े वादों के बावजूद जलसंकट की समस्या का कोई निदान नहीं हुआ है. आजादी के बाद से लेकर अब तक यहां के लोग पेयजल संकट की स्थिति से दो-चार हो रहे हैं. निकाय चुनावों में यहां के उम्मीदवारों के सामने जलसंकट के कारण उपजे सवालों का जवाब बड़ा संकट बनेगा. सिवनी के सामाजिक कार्यकर्ता गौरव जायसवाल बताते हैं कि यहां भी नगर परिषद के चुनाव में पेयजल समस्या सबसे बड़ा मुद्दा रहेगी. वो बताते हैं कि सिवनी के पास भीमगढ़ बांध है, जो एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का बांध है, सिवनी में इस बांध से जलआपूर्ति होती है. इस बांध से पानी आपूर्ति के लिए नई पाइप लाइन बिछाकर पानी देने की योजना बनी थी, यह योजना 2016 तक पूरी होनी थी, लेकिन सन् 2021 आ गया, लोगों को कनेक्शन भी बांट दिए गए, लेकिन लोगों तक पानी नहीं पहुंचा. सिवनी के कई इलाकों में पानी की गंभीर समस्या है.
अभी से गरमाने लगा पानी का मुद्दा
आगे पढ़ें
नदी किनारे वाले निकायों में समस्या अपेक्षाकृत कम
बता दें कि जो निकाय नदियों के किनारे हैं, वहां समस्या कम है, लेकिन बड़ी संख्या में शहरी निकायों में पानी की समस्या सबसे ज्यादा है. सरकार की जो नई जल आवर्धन योजनाएं हैं, उनमें सार्वजनिक नलों की व्यवस्था ही नहीं रखी गई है. निजी नल कनेक्शन ही दिए जा रहे हैं. ऐसे में गरीब आबादी और सड़कों किनारे अपने छोटे-छोटे काम-धंधे करने वाले लोगों के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि वह निजी नल कनेक्शन कैसे लें. एक नल कनेक्शन पर लगभग 4 हजार रूपए लगते हैं, तो वह कहां से यह धन लेकर आए.
नदी किनारे वाले निकायों में समस्या अपेक्षाकृत कम
आगे पढ़ें
नल-जल योजनाओं के हाल
राज्य में जलसंकट की स्थिति का अंदाजा केवल इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि गर्मी का मौसम आने में कुछ महीने बाकी है, लेकिन लगभग 1330 नल-जल योजनाएं बंद पड़ी है. गर्मी आते-आते और भी नल-जल योजनाएं दम तोड़ देंगी. 6000 से ज्यादा हैंडपंपों का पानी सूख चुका है. कई हजार में पानी कम, हवा ज्यादा आती है. जब अभी जलसंकट के ये हाल है, तो गर्मियों में क्या स्थिति बनेगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है.
नल-जल योजनाओं के हाल
आगे पढ़ें
उठेंगे सवाल, अब तक क्या किया, आगे क्या करोगे?
राज्य में पिछले साल कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में 8 जिलों की पेयजल योजना के लिए आवंटित करोड़ों रुपए की राशि का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया, यह राशि लैप्स हो गई. अकेले झाबुआ जिले में 38 पेयजल योजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपए लैप्स हो गए. इसी प्रकार धार, डिंडोरी, छिंदवाड़ा, बालाघाट, हरदा, दमोह, नरसिंहपुर जिले के लिए बनी करीब 15 पेयजल योजनाओं की करोड़ों रुपए की राशि भी काम न होने से डूबत खाते में चली गई और लोग जलसंकट से जूझते रहे. जलसंकट से शहरी और ग्रामीण इलाकों को उबारने के लिए पीएचई के पास न कोई प्लान है, न सरकार की कोई ठोस योजना सामने आई है. आखिर जनता सत्तारूढ़ दल के नुमांइदों, उम्मीदवारों से चुनाव में यह सवाल जरूर पूछेगी कि उन्होंने उनके सूखे कंठों को गीला करने, जलसंकट मिटाने अब तक क्या किया है या क्या करने वाले हैं? (डिस्क्लेमरः ये लेखक के निजी विचार हैं.)
उठेंगे सवाल, अब तक क्या किया, आगे क्या करोगे?
आगे पढ़ें