बाघों ने दी Good News, लेकिन अब कैसे होगी बड़े परिवार की देखभाल

एमपी को टाइगर स्टेट का दर्जा
ये खुशी उस जिम्मेदारी के साथ आई है कि अब परिवार में आए बच्चे की तरह बाघों की देखभाल सरकार करे
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: July 30, 2019, 6:45 PM IST
तमाम प्रयासों के बाद आख़िरकार एमपी को गुड न्यूज मिल गयी. ये गुड न्यूज बाघों ने दी जिनके कुनबे में नये मेहमान आए और मध्य प्रदेश फिर एक बार टाइगर स्टेट बन गया. लेकिन बाघों के इस भरे पूरे परिवार की हिफाज़त कैसे की जाए, अब ये चुनौती है. शिकार तो सबसे बड़ी समस्या है ही, उससे बड़ी चुनौती जंगलों का ख़त्म होना भी है.
छिन गया था दर्जा
पीएम मोदी ने कल दिल्ली में रिपोर्ट जारी की थी. उसमें 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में सबसे ऊपर है. साल 2006 तक एमपी की पहचान टाइगर स्टेट के तौर पर थी. ये वो वक्त था जब एमपी में 300 बाघों की दहाड़ गूंजती थी.लेकिन उसके बाद बाघों की मौत शुरू हो गयी. 2010 तक तो ये हालात हो गए कि मध्य प्रदेश में गिनती के बाघ रह गए और इससे टाइगर स्टेट का दर्जा छिन गया.
7 साल में 141 बाघों की मौतमध्यप्रदेश में 2012 से लेकर अब तक 141 बाघों की मौत हो चुकी है.इनमें से सिर्फ 78 की सामान्य मौत हुई बाकी का शिकार हुआ. एनटीसीए की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में भोपाल, होशंगाबाद, पन्ना, मंडला, सिवनी, शहडोल, बालाघाट, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शिकारियों के पनाहगार हैं.आरटीआई एक्टिविस्ट अभय दुबे भी यही मानते हैं कि ये अच्छा है कि बाघों की संख्या बढ़ी लेकिन शिकारी उनसे ज़्यादा तेज़ चाल से चल रहे हैं. उनके पास शिकार के नये औजार हैं. एमपी उन राज्यों में शुमार है जहां सबसे ज्यादा शिकार होता है. घटते जंगल भी चिंता का विषय हैं. पोचिंग की संख्या कम होने से आपसी
लड़ाई में भी बाघ मर रहे हैं.
हालांकि सरकार टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने से खुश है. लेकिन ये खुशी उस जिम्मेदारी के साथ आई है कि अब परिवार में आए बच्चे की तरह बाघों की देखभाल सरकार करे. 7 साल से सिर्फ दावों में जिंदा स्पेशल टास्क फोर्स जब धरातल पर उतरे और शिकारियों से बाघों की रक्षा करे तब बात बने. बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही सेंचुरी की संख्या बढ़ाने की तैयारी वन विभाग ने कर ली है.
ये भी पढ़ें-इंदौर कलेक्ट्रेट के पीछे छापा, केमिकल में पकाए जा रहे थे फल
छिन गया था दर्जा
पीएम मोदी ने कल दिल्ली में रिपोर्ट जारी की थी. उसमें 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश देश में सबसे ऊपर है. साल 2006 तक एमपी की पहचान टाइगर स्टेट के तौर पर थी. ये वो वक्त था जब एमपी में 300 बाघों की दहाड़ गूंजती थी.लेकिन उसके बाद बाघों की मौत शुरू हो गयी. 2010 तक तो ये हालात हो गए कि मध्य प्रदेश में गिनती के बाघ रह गए और इससे टाइगर स्टेट का दर्जा छिन गया.
7 साल में 141 बाघों की मौतमध्यप्रदेश में 2012 से लेकर अब तक 141 बाघों की मौत हो चुकी है.इनमें से सिर्फ 78 की सामान्य मौत हुई बाकी का शिकार हुआ. एनटीसीए की रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में भोपाल, होशंगाबाद, पन्ना, मंडला, सिवनी, शहडोल, बालाघाट, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शिकारियों के पनाहगार हैं.आरटीआई एक्टिविस्ट अभय दुबे भी यही मानते हैं कि ये अच्छा है कि बाघों की संख्या बढ़ी लेकिन शिकारी उनसे ज़्यादा तेज़ चाल से चल रहे हैं. उनके पास शिकार के नये औजार हैं. एमपी उन राज्यों में शुमार है जहां सबसे ज्यादा शिकार होता है. घटते जंगल भी चिंता का विषय हैं. पोचिंग की संख्या कम होने से आपसी
लड़ाई में भी बाघ मर रहे हैं.
हालांकि सरकार टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने से खुश है. लेकिन ये खुशी उस जिम्मेदारी के साथ आई है कि अब परिवार में आए बच्चे की तरह बाघों की देखभाल सरकार करे. 7 साल से सिर्फ दावों में जिंदा स्पेशल टास्क फोर्स जब धरातल पर उतरे और शिकारियों से बाघों की रक्षा करे तब बात बने. बाघों की संख्या बढ़ने के साथ ही सेंचुरी की संख्या बढ़ाने की तैयारी वन विभाग ने कर ली है.
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