भोपाल. लंबे इंतजार के बाद आखिरकार गोविंद सिंह को वो जिम्मेदारी मिल गयी जिसके वो अघोषित रूप से दावेदार थे. इसी के साथ ग्वालियर-चंबल और गोविंद सिंह के अनुभव को भी कांग्रेस पार्टी ने तव्जजो दे दी. अगले साल के अंत में विधानसभा चुनाव संभावित हैं. गोविंद सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले खड़ा करके दो पुराने विरोधियों का आमने सामने ला दिया है.
कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद मुख्यमंत्री पद भी संभाला था. सत्ता से बेदखल होने के बाद मुख्यमंत्री पद हाथ से गया तो नेता प्रतिपक्ष बना दिए गए. यानि एक बार में एक साथ दो पदों पर वो बने रहे. उन्होंने अगस्त 2020 में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी. दो पद अपने पास रखने के कारण बीजेपी हमेशा कमलनाथ पर हमलावर रही है. कमलनाथ ने भी इस बात का जिक्र किया था कि वो किसी पद के लिए अर्जी नहीं लगा रहे हैं. पार्टी हाईकमान जब चाहेगा वह पद छोड़ देंगे.
डेढ़ साल का चक्र
एमपी में कमलनाथ के साथ डेढ़ साल का चक्र है. पहले डेढ़ साल मुख्यमंत्री, फिर डेढ़ साल से ज्यादा समय तक नेता प्रतिपक्ष और अब डेढ़ साल बाद अगला विधानसभा चुनाव. अब विधानसभा में विपक्ष का चेहरा डॉक्टर गोविंद सिंह होंगे. लेकिन अब यह तय हो गया है के प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते 2023 का विधानसभा चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. भले ही विधानसभा में विपक्ष के नेता डॉक्टर गोविंद सिंह हों लेकिन प्रदेश कांग्रेस के बड़े फैसलों से लेकर विधानसभा में पार्टी की रणनीति पर कमलनाथ की नजर होगी.
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डैमेज कंट्रोल की कोशिश
पार्टी को ग्वालियर चंबल में ज्योतिरादित्य सिंधिया की घेराबंदी करने के लिए बड़े चेहरे की तलाश थी. सिंधिया उस इलाके में पार्टी का बड़ा चेहरा और 2018 में जीत का भरोसा बन गए थे. सिंधिया के जाने से कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती ग्वालियर चंबल संभाग में ही है. सिंधिया यहां के चप्पे-चप्पे और कांग्रेस की नस नस से वाकिफ हैं. इसलिए कांग्रेस के लिए डैमेज कंट्रोल करना बड़ी समस्या है. यही वजह है कि ग्वालियर-चंबल संभाग को तवज्जो देते हुए कमलनाथ ने इसी इलाके से नेता प्रतिपक्ष चुना. गोविंद सिंह पुराने अनुभवी कांग्रेसी और इस पद के स्वाभाविक दावेदार थे. उनके नाम पर पार्टी ने मोहर लगाकर सिंधिया के मुकाबले उन्हें खड़ा करने की कोशिश की है.
सिंधिया के घोर विरोधी
कांग्रेस में रहते हुए भी ज्योतिरादित्य सिंधिया और डॉक्टर गोविंद सिंह एक दूसरे के घोर विरोधी माने जाते रहे हैं. सिंधिया अब बीजेपी में हैं और कांग्रेस ने सिंधिया के पुराने विरोधी को उनके सामने खड़ा करने की कोशिश की है. दिग्विजय सिंह के करीबी गोविंद सिंह के ऊपर अब ग्वालियर चंबल में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी होगी. साथ ही लंबा संसदीय अनुभव रखने वाले डॉक्टर गोविंद सिंह की विधानसभा में सत्ता पक्ष को कटघरे में खड़ा करने की भी जिम्मेदारी होगी.
विधानसभा में अब क्या होगा सीन
विधानसभा चुनाव के डेढ़ साल पहले कमलनाथ ने एक पद छोड़कर बड़ा दांव खेलने की कोशिश की है. ये सीधा सा ये संकेत भी है कि कमलनाथ विधानसभा चुनाव जीतने के लिए अपना पूरा समय संगठन पर देना चाहते हैं. विधानसभा में सत्ता पक्ष के फैसलों में हां में हां मिलाने के कारण कमलनाथ अपनी ही पार्टी के अंदर कई बार आलोचना झेलते दिखाई दिए हैं. विधानसभा में सवाल नहीं पूछने पर भी वो सुर्खियों में रहे. डॉक्टर गोविंद सिंह के नेतृत्व में विधानसभा में विपक्ष कितनी मजबूत भूमिका निभा पाता है, यह देखना दिलचस्प होगा.
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