मध्य प्रदेश के नागरिकों को स्वास्थ्य का अधिकार मिल सके इसके लिए कमलनाथ सरकार (Kamal Nath Government) राइट टू हेल्थ कानून (Right to Health Act) को लागू करने का मसौदा तैयार कर रही है. हालांकि प्रदेश के मरीजों को सरकारी अस्पतालों में कैंसर ट्रीटमेंट (Cancer Treatment) के बजाए अन्य अस्पतालों का मुंह ताकना पड़ रहा है. राजधानी भोपाल के तीन बड़े अस्पताल ऐसे हैं, जहां कैसर ट्रीटमेंट के लिए कोई व्यवस्था नहीं है, जिसमें एम्स (AIIMS), हमीदिया और बीएमएचआरसी (BMHRC) अस्पताल हैं. यही वजह है कि यहां से कैंसर पीड़ीत मराजों को बिना इलाज घर लौटना पड़ता है. आलम ये है कि हमीदिया के कैंसर रोग विभाग में 35 साल पुरानी कोबाल्ट मशीन ने दम तोड़ दिया और अब यहां कैंसर के मरीजों का थैरेपी ट्रीटमेंट ही बंद करना पड़ा. स्वास्थ्य विभाग, चिकित्सा शिक्षा और गैस राहत विभाग में हजारों करोड़ रुपये का फंड होने के बावजूद कैंसर के इलाज की व्यवस्थाएं करने पर किसी का ध्यान नहीं हैं.
एम्स भोपाल में कैंसर की सिकाई रेडियोथैरेपी करने वाली लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की लीनियर एक्सीलरेटर मशीन चार महीने पहले लगाई गई थी. रेडिएशन थैरेपी करने वाली मशीन अब तक शुरू नहीं हो पाई है. इस वजह से एम्स में कैंसर के मरीजों को सिकाई रेडियोथैरेपी नहीं मिल पा रही है. एम्स निदेशक की मानें तो मशीनों को लाइसेंस नहीं मिला है जिसके कारण 4 महीने से मशीनें बंद हैं. इस व्यवस्था को जल्दी शुरू कर दिया जाएगा.
बीते कुछ महीनों से हमीदिया अस्पताल में 35 साल पुरानी कोबाल्ट मशीन से काम चलाया जा रहा था. मशीन के खराब होने पर सुधरवाने की बात प्रबंधन ने की. जबकि अब प्रबंधन का कहना है कि इसके पार्ट और सोर्स मिलना मार्केट में बंद हो गए हैं. मौजूदा स्थिति में ये मशीन भी बंद हो चुकी है. पांच सालों से लीनियर एक्सीलरेटर लगाने के नाम पर सिर्फ कागजी कार्रवाई करने का आश्वासन मिल रहा है. अब यहां भी थैरेपी मिलनी बंद हो चुकी है.
बीएमएचआरसी में आने वाले मरीजों में ज्यादातर गैस पीडित ही होते हैं और इनमें कैंसर के मरीजों की संख्या ज्यादा है. कैंसर रोग विभाग में पदस्थ एक मात्र विशेषज्ञ नौकरी छोड़कर चले गए. उनके जाने के बाद कैंसर रोग विभाग ही बंद हो गया. केन्द्र सरकार के डीएचआर के अधीन होने के कारण इस अस्पताल की बिगड़ी व्यवस्थाओं पर राज्य सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया और ना ही यहां किसी अन्य विशेषज्ञ को चार्ज दिया गया.
भोपाल शहर में लगभग 5 हजार कैंसर के मरीज हैं. एक लीनियर एक्सीलरेटर मशीन से भी साल भर में सिर्फ 700 मरीजों की ही सिकाई थैरेपी हो सकती है. जरूरत के लिहाज से शहर के अस्पतालों में 6 लीनियर एक्सीलरेटर की ज़रूरत है, लेकिन सरकारी विभागों की अनदेखी और सुस्त रवैये के चलते एक भी मशीन किसी भी अस्पताल में नहीं हैं. सच कहा जाए तो ट्रीटमेंट के नाम पर मरीज़ों को दिलासा मिलती है.
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FIRST PUBLISHED : November 07, 2019, 16:02 IST