MP Assembly Election 2023. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीएसपी कोई कमाल करने की स्थिति में नहीं है लेकिन वो कांग्रेस-बीजेपी का खेल जरूर बिगाड़ सकती है.
भोपाल. मध्य प्रदेश में इस साल के आखिरी में विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव को लेकर दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल बीजेपी और कांग्रेस जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. इसी बीच बीएसपी ने भी कुछ इलाकों में सक्रियता बढ़ा दी है जिससे कहीं ना कहीं कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं के चिंता होने लगी है. भले ही बीएसपी मध्यप्रदेश में कभी भी किंग मेकर की भूमिका में ना रही हो लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच हार जीत में निर्णायक भूमिका निभाती है.
एमपी के इतिहास में कभी भी तीसरे दल ने सरकार नहीं बनाई है. हमेशा बीजेपी और कांग्रेस सत्ता के सिंहासन पर काबिज रहे हैं. बावजूद इसके मध्य प्रदेश में कई राजनीतिक संगठन हैं जो लगातार अपनी किस्मत आजमाते रहते हैं. इन्हें बहुत अधिक सफलता नहीं मिलती. या यह कहें कि मध्यप्रदेश में तीसरा मोर्चा कभी मजबूत बनकर नहीं उभरा है. इस साल भी मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीएसपी ने भी मोर्चाबंदी शुरू कर दी है.
क्या है एमपी में बीएसपी का इतिहास
बीएसपी ग्वालियर चंबल संभाग और विंध्य के इलाकों में अपनी सक्रियता बढ़ाने लगी है. हाल ही में इन इलाकों में बड़े-बड़े कार्यक्रम कर बीएसपी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. इतना ही नहीं अप्रैल के महीने में कुछ बड़े आयोजन भी मध्यप्रदेश में किए जाने हैं. मध्यप्रदेश में 47 सीटें एससी के लिए आरक्षित हैं. ऐसे में बीएसपी की नजर भी इन्हीं सीटों पर है. वैसे तो मध्य प्रदेश में 70 से 80 सीटें ऐसी हैं जहां एससी वोटर निर्णायक भूमिका में होता है. अगर बीएसपी इन सीटों पर चुनाव लड़ती है तो भले ही उसके एक दो विधायक जीतें लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशियों के जो हार का अंतर होता है उसमें बीएसपी का बड़ा योगदान रहता है.
0.6 ने बिगाड़ा खेल
हालांकि बीएसपी की बढ़ती सक्रियता को लेकर दोनों ही राजनीतिक दलों का कहना है एक समय था जब मध्यप्रदेश के उन इलाकों में बीएसपी कुछ सीटों पर प्रभाव डालती थी जो उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे हैं. लेकिन अब बीएसपी का उनके मूल प्रदेश उत्तर प्रदेश में ही जब कोई अस्तित्व नहीं बचा है तो इसका असर एमपी पर भी पड़ेगा. हालांकि आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 2018 के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर महज 0.6 फीसदी था जबकि बीएसपी को 1.3% वोट मिले थे. ऐसे में माना जा सकता है कि यदि बीएसपी मैदान में नहीं होती तो किसी एक दल को मजबूती मिलती. अब देखना होगा 2023 के चुनाव में बीएसपी किसका गणित बिगाड़ने में कामयाब हो पाती है.
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