कोरोना वायरस (Corona Virus) के म्यूटेशन के कारण एक्सपर्ट भी अब सकते में हैं क्योंकि एक्सपर्ट्स की अब तक की रिसर्च के अनुसार कोरोना वायरस नष्ट करने के लिए तैयार हो रहीं वैक्सीन भी वायरस पर शायद ही काम कर पाएं.
भोपाल.कोरोना (Corona Virus) का वायरस क्या बार-बार लगातार अपना स्वरूप बदल रहा है. यही वजह है कि इसकी अब तक कोई कारगर दवा या वैक्सीन नहीं बन पाया है. भोपाल स्थित AIIMS में किया जा रहा रिसर्च कुछ ऐसे ही संकेत दे रहा है.
कोरोना का कहर पूरे विश्व में हावी है. देसी विदेशी एक्सपर्ट्स वायरस की वैक्सीन को ढूंढने में लगे हैं. लेकिन अब तक सारी कोशिशें नाकाफी साबित हुई हैं. इसका बड़ा कारण शायद यह है कि कोरोना वायरस हर दिन अपना रूप बदलता जा रहा है. वायरस के म्यूटेशन के कारण एक्सपर्ट भी अब सकते में हैं क्योंकि एक्सपर्ट्स की अब तक की रिसर्च के अनुसार कोरोना वायरस को नष्ट करने के लिए तैयार हो रहीं वैक्सीन भी वायरस पर शायद ही काम कर पाएं. ये खुलासा AIIMS एम्स भोपाल के निदेशक प्रो. डॉ. सरमन सिंह के नेतृत्व में की गयी एक वाय इन्फॉर्मेटिक स्टडी में हुआ है.
अमेरिका, चीन, भारत में भी बदला स्वरूप
एम्स भोपाल सहित दूसरे देशों के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों के रिसर्च में ये सामने आया है कि चीन से जो वायरस फैला था उसका स्वरूप डी 614 जी था. उसके बाद अब तक लगभग 83 बार इस वायरस का म्यूटेशन हो चुका है, यानि वायरस 83 से ज्यादा बार अपने स्वरूप को बदल चुका है.
रिसर्च में सामने आए फैक्ट्स
इस रिसर्च में हर देश के एक्सपर्ट ने हिस्सा लिया था. एम्स के डायरेक्टर प्रोफेसर सरमन सिंह का कहना है इस मामले पर एम्स भोपाल की टीम ने भी स्टडी की है. इस स्टडी के आधार पर ये कहना मुश्किल है कि वायरस के बदले स्वरूप पर वैक्सीन कितनी प्रभावी होगी. इसलिए वायरस के बदलते हुए स्वरूप के मुताबिक टेस्ट किट और वैक्सीन बनाने के लिए रिसर्च किया जाना चाहिए. लोगों को अब और ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है.
स्टडी में पता चला
-अमेरिका में सबसे ज्यादा लगभग 60 बार वायरस का म्यूटेशन हुआ.
-मलेशिया में आठ बार कोरोना वायरस ने अपना स्वरूप बदला
- भारत में लगभग पांच बार इस वायरस के बदलते हुए स्वरूप को देखा गया है.
- जब तक साइंटिस्ट को यह लगता है कि कोरोना की वैक्सीन इजाद कर ली गई है तब तक वायरस का स्वरूप ही बदल जाता है.
रिसर्च कहता है...
विशेषज्ञों के मुताबिक वायरस के म्यूटेशन की रफ्तार इसे खत्म करने के लिए किए जा रहे उपायों से तीन गुना तेज है. जीनोम सीक्वेंसिंग के जरिए ये पता चला है कि वायरस का रूप बदलने के कारण प्लाज्मा थैरेपी भी कारगर नहीं हो पाती. ये कहना भी मुश्किल है कि जो वैक्सीन तीन महीने बाद आएगी,वह इसके बदले हुए स्वरूप पर असरदार होगी या नहीं. इसलिए सीरो सर्वे में भी हार्ड इम्युनिटी कम लोगों में मिल रही है. वायरस व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी भी नहीं बनने दे रहा है.
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