मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक बड़ी खूबी है और मीडिया के लोगों को भी उनसे सीखना चाहिए… वो है किसी मसले को ‘मैक्सिमाइज़’ करना… और ऐसे बड़ा करना कि वो ‘पीपुल कनेक्ट’ करे. शिवराज इस हुनर में माहिर हैं.
मैं उनको कई साल से क़रीब से देख रहा हूं. जिस मामा के किरदार में इस वक़्त वे लोकप्रिय हैं, उसकी नींव रखते हुए भी मैंने उन्हें देखा है. एमपी में लाडली लक्ष्मी और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की शुरुआत का मैं साक्षी रहा हूं. उस दौरान उनके कई इंटरव्यू भी किए थे. किसी भी गांव में ग़रीब की बेटी की शादी बड़ी चिंता होती है. अव्वल तो उसमें खर्च बहुत आता है. दूसरा रोज़ कमाने-खाने वाले को कुछ दिन काम से छुट्टी लेना पड़ता है. यानी दोहरी मार. उस वक़्त शिवराज ने योजना शुरू की. मुख्यमंत्री कन्यादान योजना. सरकारी खर्च से न केवल शादी बल्कि दहेज़ के लिए पर्याप्त सामग्री भी. ये योजना और लाड़ली लक्ष्मी योजना इतनी सराही गई कि उसने महिलाओं और लड़कियों में शिवराज को ख़ासा लोकप्रिय बना दिया. उसके बाद ही शिवराज के लिए संबोधन शुरू हुआ ‘मामा शिवराज’.
शिवराज अब एक नई मुहिम लेकर आए हैं आंगनबाडी को गोद लेना. वहां के बच्चों के लिए खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने से लेकर खेलने तक के सामान में समाज अपनी भागीदारी दे. बीते दिनों वे भोपाल के अशोका गार्डन इलाक़े में हाथ ठेला लेकर लोगों से खिलौने मांगने निकले. कुछ घंटे के इस अभियान में ठेला तो दूर कई ट्रक भरके सामान लोगों ने मुक्त हस्त से दान किया.. इस बार भी शिवराज का तो लक्ष्य समूह था यानी महिलाएं और लडकियां, वही सबसे ज्यादा उत्साह से सड़कों पर गिफ्ट लेकर खड़े थे.
एमपी में तकरीबन 97 हज़ार आंगनबाड़ी हैं. सबसे ज्यादा आंगनबाड़ी धार जिले में हैं. कई जगह पीने के पानी, लाइट, टॉयलेट जैसी बुनियादी सुविधा भी नहीं है. पोषण आहार की स्थिति कई जिलों में बहुत बेहतर है, तो कई जिलों में ख़राब भी है. सरकार बजट खर्च करती है लेकिन कुछ जगह उसकी मॉनिटरिंग बेहतर न होने से अच्छे नतीज़े नहीं मिलते. 2019-20 में सरकार ने 94 करोड़ के खिलौने खरीदे थे, ये जानकारी विधानसभा में ख़ुद महिला एवं बाल विकास के मंत्री बतौर ख़ुद शिवराज सिंह चौहान ने दी थी. शिवराज जानते हैं कि सिर्फ सरकार के मुख्यालय वल्लभ भवन से निकले आदेश और निर्देश से इन समस्याओं से निपटा नहीं जा सकता, लिहाज़ा उन्होंने इसे जनआन्दोलन बनाने का निर्णय लिया. जब मुखिया ख़ुद सड़क पर हाथ ठेला लेकर निकलेगा तो ज़ाहिर है कि जिले या मंडल का भाजपा नेता भी चाहेगा कि शिवराज जी की नज़रों में चढ़ने के लिए आंगनबाड़ियां ऐसी चकाचक कर दी जाएं कि उसे सराहना मिले. शहरों की ही बात नहीं गांव में भी अधिकारी उन कामों में अतिरिक्त ध्यान देते हैं जिसमें मुख्यमंत्री की अभिरुचि थोड़ा ज्यादा होती है. इससे बड़ा फ़ायदा ये होगा कि भले ही प्रचार के लिए, मुख्यमंत्री से वाहवाही पाने के लिए या स्वेच्छा से जुटें लेकिन लोग जुटेंगे आंगनबाड़ियां दुरुस्त करने में. जो सीधे बच्चों और उनके परिवारों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा. चूंकि सोशल मीडिया का दौर है तो बहुत सारे लोग अपने इलाक़ों की आंगनबाड़ियाँ शानदार करते हुए फोटो पोस्ट करेंगे और मुख्यमंत्री को टैग करेंगे.
विपक्ष इसे लेकर सवाल खड़े कर रहा है. मुझे नहीं लगता कि विपक्ष के आरोपों को जनता गंभीरता से लेगी, यदि आंगनबाड़ियों का कायाकल्प बहुत तेज़ी से हुआ तो आज भी गांव के लोगों को ख़ुशी होती है. यदि उनके गांव की किसी सरकारी संस्था को चकाचक कर दिया जाए तो पूरा गांव उसकी सराहना करता है. शिवराज ग्रामीण इलाक़ों की नब्ज को पहचानते हैं. उन्हें पता है कि ये अभियान सिर्फ बच्चों का कुपोषण ही दूर करने में सहायक नहीं होगा, बल्कि जिन इलाक़ों में भाजपा को वोट का कुपोषण है, वो भी इसके ज़रिये दूर हो सकता है. कांग्रेस के साथ एमपी में दिक्क़त यही है कि वो प्रदेश व्यापी कोई मुहिम बड़ी खड़ी नहीं कर पाती या मुद्दों को पकड़ कर सियासत नहीं कर पाती. वैसे भी यदि कोई नकारात्मक मुहिम खड़ी की भी जाए तो वो उतना अपील नहीं करती, जितना लोगों को जोड़ने की. अब ये देखना ज़रूर क़ाबिल-ए-गौर होगा कि कितनी तेज़ी से लोग इस मुहिम को हाथों-हाथ लेते हैं.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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