Opinion: ऐसे कैसे बच्चों को न्याय मिलेगा मी लार्ड? हाईकोर्ट के फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया

बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को लेकर मध्य प्रदेश के सामाजिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने जताया रोष. (सांकेतिक तस्वीर)
POCSO ACT- नाबालिग बालिका पर यौन हमले से जुड़े केस में महाराष्ट्र की बाम्बे हाईकोर्ट द्वारा आरोपी को पॉक्सो एक्ट से बरी करने वाले एक विवादित फैसले से मध्यप्रदेश ही नहीं पूरे देश के बाल अधिकार और महिला मुद्दों पर काम करने वाले संगठन व बुद्धिजीवी आगबबूला हैं. इन सभी की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: January 26, 2021, 6:31 PM IST
भोपाल. ''नाबालिग के वक्षस्थल को छूना यौन हमला नहीं माना जा सकता. यौन हमले के लिए त्वचा से त्वचा का संपर्क (Skin to Skin Contact) होना जरूरी है. इसे पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत परिभाषित नहीं किया जा सकता.'' एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर बेंच से आए इस विवादित फैसले से बच्चों और महिलाओं के हितों और अधिकारों को लेकर काम करने वाले संगठन बेहद नाराज हैं. मध्य प्रदेश के अनेक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि इस फैसले का छेड़छाड़, छेड़छाड़ की कोशिश, यौन हमलों जैसे प्रकरणों में व्यापक विपरीत असर पड़ सकता है.
बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay HighCourt) की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला(Pushpa Ganediwala) ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले(Sexual assault) का कृत्य माने जाने के लिए ‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना’ जरूरी है. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज वक्षस्थल छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है. उन्होंने एक सत्र अदालत के फैसले को संशोधित करते हुए 12 साल की नाबालिग पीड़िता का यौन उत्पीड़न करने के आरोपी को पॉक्सो एक्ट की धारा से बरी कर दिया. उस पर शील भंग करने की धारा 354 के तहत अपराध चलेगा, जिसके तहत एक साल तक की सजा हो सकती है.
बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay HighCourt) की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला(Pushpa Ganediwala) ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले(Sexual assault) का कृत्य माने जाने के लिए ‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना’ जरूरी है. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज वक्षस्थल छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है. उन्होंने एक सत्र अदालत के फैसले को संशोधित करते हुए 12 साल की नाबालिग पीड़िता का यौन उत्पीड़न करने के आरोपी को पॉक्सो एक्ट की धारा से बरी कर दिया. उस पर शील भंग करने की धारा 354 के तहत अपराध चलेगा, जिसके तहत एक साल तक की सजा हो सकती है.
न्याय व्यवस्था कितनी पितृसत्तात्मक?
मध्य प्रदेश की संगिनी महिला संस्था की प्रार्थना मिश्रा बेहद नाराजगी भरे स्वरों में कहती हैं कि स्तन को किसी वस्तु या अन्य चीज़ से टटोलेंगे तो वो यौनिक हिंसा नहीं होगी. हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति के इस फैसले से साफ पता चलता है कि हमारी न्याय व्यवस्था कितनी पितृसत्तात्मक है. ऐसे ही निर्णय हुए तो वो दिन दूर नहीं जब कोई भी इस तरह की साफ करके बच जाएगा. इस तरह के अपराध में न्याय का ही सहारा होता, लेकिन अब न्याय की उम्मीद भी करना बेकार है. अगर ऐसे होगा न्याय तो बच्चों और महिलाओ के मुद्दे पर संवेदनशील न्याय व्यवसाय की जरूरत है.