Video : इस अद्भुत पेड़ में लोग ठोक चुके हैं हजारों जंजीरें, 100 साल से नहीं बढ़ीं डालियां

पेड़ में ठोकी गईं जंजीरें
छतरपुर में ऐसा पेड़ है जिसमें लोग मन्नत पूरी होने पर जंजीरें ठोकते हैं. कहा जाता है कि 100 साल से भी अधिक पुराने इस पेड़ की डालियां बढ़ती नहीं हैं और ये हमेशा हरी भरी रहती हैं.
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: August 30, 2019, 5:26 PM IST
महाराजा छत्रसाल की नगरी छतरपुर में एक ऐसा अद्भुत पेड़(miraculous tree) है जिसे आस्था मानें या अंधविश्वास (superstition)पर हजारों जंजीरें (Chain)लटकी हुई हैं. यहां की मान्यता है कि जो भी मन्नत (wish) मानी जाती है, पूरी होने पर लोगों को यहां लोहे की जंजीर (सांकल ) पेड़ में ठोकनी पड़ती है. यह भी माना जाता है कि किसी पेड़ में लोहे (iron) की कील भी लगा दी जाए तो पेड़ सूख जाता है मगर यह पेड़ हमेशा हरा भरा रहता है. लोगों का दावा है कि इस पेड़ का आकार गोड़ बब्बा के गुजरने के बाद से कभी नहीं बदला, पत्तियां तो आती हैं लेकिन डालियां जस की तस रहती हैं. यह पेड़ छतरपुर से महज 17 किलोमीटर दूर वरट सड़ेरी गांव में है.
100 वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही यह परम्परा
यहां लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. माना जाता है कि अकोला के पेड़ के नीचे सकारैया गोढ़ बब्बा का बास है जो लोगों की मनोकामना पूरी करते हैं. मनोकामना पूरी होने के बाद लोग लोहे की जंजीर लेकर आते हैं और पेड़ के किसी भी हिस्से में ठोक कर जाते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि यह परम्परा 100 वर्षों से अधिक से चली आ रही है. ऐसा बताया जाता है कि 100 वर्ष से भी पहले गांव में सकारैया गोढ़ नाम के एक आदमी इसी पेड़ के नीचे बैठकर लोगों की परेशानियां दूर किया करते थे. उनके मरने के बाद गांव वालों ने इसी स्थान पर उनके नाम का चबूतरा बना दिया और तब से लेकर आज तक इस हरे पेड़ में लाखों जंजीरें टांगीं जा चुकी हैं और यह आज भी लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है.
लोग मानते हैं कि गोड़ बब्बा आज भी इस पेड़ में करते हैं निवास
लोगों की आस्था कहें या अंधविस्वास लेकिन गोड़ बब्बा के गुजरने के बाद भी लोगों का मानना है कि वह आज भी इस पेड़ में निवास करते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इसका दावा करने वाले लोगों ने बताया कि उनकी मनोकामना पूरी हुई थी जिसके बाद उन्होंने भी इस पेड़ पर नारियल चढ़ाकर सांकल ठोकी. ग्रामीणों की माने तो यह पेड़ बहुत पुराना होने के बाद भी हमेशा हरा भरा रहता है. इसमें ठोकी जाने वाली सांकल (chain) इसी में समाहित हो जाती हैं, तस्वीरों में देखा जा सकता है किस तरह पुरानी जंजीरें पेड़ के अंदर समाहित होती जा रही हैं.
100 वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही यह परम्परा
यहां लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. माना जाता है कि अकोला के पेड़ के नीचे सकारैया गोढ़ बब्बा का बास है जो लोगों की मनोकामना पूरी करते हैं. मनोकामना पूरी होने के बाद लोग लोहे की जंजीर लेकर आते हैं और पेड़ के किसी भी हिस्से में ठोक कर जाते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि यह परम्परा 100 वर्षों से अधिक से चली आ रही है. ऐसा बताया जाता है कि 100 वर्ष से भी पहले गांव में सकारैया गोढ़ नाम के एक आदमी इसी पेड़ के नीचे बैठकर लोगों की परेशानियां दूर किया करते थे. उनके मरने के बाद गांव वालों ने इसी स्थान पर उनके नाम का चबूतरा बना दिया और तब से लेकर आज तक इस हरे पेड़ में लाखों जंजीरें टांगीं जा चुकी हैं और यह आज भी लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है.

जंजीर ठोकते श्रद्धालु
लोग मानते हैं कि गोड़ बब्बा आज भी इस पेड़ में करते हैं निवास
लोगों की आस्था कहें या अंधविस्वास लेकिन गोड़ बब्बा के गुजरने के बाद भी लोगों का मानना है कि वह आज भी इस पेड़ में निवास करते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इसका दावा करने वाले लोगों ने बताया कि उनकी मनोकामना पूरी हुई थी जिसके बाद उन्होंने भी इस पेड़ पर नारियल चढ़ाकर सांकल ठोकी. ग्रामीणों की माने तो यह पेड़ बहुत पुराना होने के बाद भी हमेशा हरा भरा रहता है. इसमें ठोकी जाने वाली सांकल (chain) इसी में समाहित हो जाती हैं, तस्वीरों में देखा जा सकता है किस तरह पुरानी जंजीरें पेड़ के अंदर समाहित होती जा रही हैं.