डिंडौरी: घोड़े से स्कूल जाने को मजबूर हैं दिव्यांग शिक्षक रतनलाल, ये है कारण

घोड़े पर स्कूल जाने को मजबूर हैं दिव्यांग शिक्षक
बुलेट ट्रेन (Bullet Train) के ज़माने में पिछले 15 सालों से डिंडौरी (Dindori) के दिव्यांग शिक्षक रतनलाल नंदा (differently abled teacher Ratanlal Nanda) को रोज घोड़े (Horse) पर बैठकर स्कूल जाना पड़ता है क्योंकि स्कूल जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. अफसर, नेता उनकी तारीफ तो करते हैं लेकिन सड़क (Road) बनाने की बात नहीं करते
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: August 28, 2019, 3:15 PM IST
डिंडौरी (Dindori) जिले के शिक्षक रतनलाल नंदा को सड़क (Road) नहीं होने की वजह से घोड़ा खरीदना पड़ा था और वो उसी घोड़े पर बैठकर प्रतिदिन 14 किलोमीटर का सफर तय कर बच्चों को पढ़ाने जाते हैं. दिव्यांग शिक्षक (differently abled) रतनलाल नंदा डिंडौरी के लुढरा गांव के निवासी हैं. गांव से 7 किलोमीटर दूर जिस स्कूल में वो पदस्थ हैं, वहां तक पहुंचने के लिये सड़क नहीं है. जंगली ऊबड़ खाबड़ रास्तों एवं नदी-नालों को पार करके ही स्कूल तक पहुंचा जा सकता है इसलिए श्री नंदा ने घोड़ा खरीद लिया.
15 सालों से घोड़े पर स्कूल जा रहे दिव्यांग शिक्षक
प्राथमिक शाला संझौला टोला में पदस्थ शिक्षक रतनलाल नंदा का एक पैर जन्म से ही बेकार है लेकिन कर्तव्यों के मार्ग में उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दिया. श्री नंदा प्रतिदिन घोड़े पर बैठकर स्कूल जाते हैं. स्कूल तक 7 किलोमीटर का दुर्गम सफर तय करने के लिये उन्हें घर से दो घंटे पहले निकलना पड़ता है और स्कूल की छुट्टी के बाद वो देर शाम घर पहुंच पाते हैं. पिछले 15 सालों से वो घोड़े पर बैठकर ही स्कूल जा रहे हैं. दुखद ये है कि अफसर और नेता सड़क निर्माण कराने की बजाय शिक्षक को सम्मानित करने की बात कर अपनी जवाबदारियों से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं.
सुध नहीं ले रहे जनप्रतिनिधि
शिक्षक रतनलाल नंदा ने बताया कि उन्होंने ग्रामीणों के साथ कई बार सड़क बनाये जाने की गुहार नेताओं और अफसरों से लगाई है लेकिन अबतक किसी ने उनकी सुध नहीं ली है. जिले के जवाबदार अधिकारी और नेता अपनी नाकामियों को छिपाने शिक्षक की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. स्कूल भवन की दुर्दशा, सड़क, बिजली और पानी जैसे मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवनयापन करने वाले ग्रामीणों की समस्या को हल करने पर किसी का ध्यान नहीं है.

देश को आजाद हुये भले ही 72 साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है लेकिन देश में आज भी ऐसे कई इलाके हैं जहां लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवनयापन करने को मजबूर हैं. शिक्षक रतनलाल की कहानी डिजिटल इण्डिया, मेक इन इंडिया, बुलेट ट्रैन जैसे तमाम दावों की पोल खोलने के लिये काफी है.
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15 सालों से घोड़े पर स्कूल जा रहे दिव्यांग शिक्षक
प्राथमिक शाला संझौला टोला में पदस्थ शिक्षक रतनलाल नंदा का एक पैर जन्म से ही बेकार है लेकिन कर्तव्यों के मार्ग में उन्होंने कभी अपनी दिव्यांगता को आड़े नहीं आने दिया. श्री नंदा प्रतिदिन घोड़े पर बैठकर स्कूल जाते हैं. स्कूल तक 7 किलोमीटर का दुर्गम सफर तय करने के लिये उन्हें घर से दो घंटे पहले निकलना पड़ता है और स्कूल की छुट्टी के बाद वो देर शाम घर पहुंच पाते हैं. पिछले 15 सालों से वो घोड़े पर बैठकर ही स्कूल जा रहे हैं. दुखद ये है कि अफसर और नेता सड़क निर्माण कराने की बजाय शिक्षक को सम्मानित करने की बात कर अपनी जवाबदारियों से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं.

दिव्यांग शिक्षक रतनलाल पिछले 15 सालों से घोड़े से ही स्कूल जाते हैं
शिक्षक रतनलाल नंदा ने बताया कि उन्होंने ग्रामीणों के साथ कई बार सड़क बनाये जाने की गुहार नेताओं और अफसरों से लगाई है लेकिन अबतक किसी ने उनकी सुध नहीं ली है. जिले के जवाबदार अधिकारी और नेता अपनी नाकामियों को छिपाने शिक्षक की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. स्कूल भवन की दुर्दशा, सड़क, बिजली और पानी जैसे मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवनयापन करने वाले ग्रामीणों की समस्या को हल करने पर किसी का ध्यान नहीं है.

नेताओं और अफसरों से कई बार सड़क बनाने की गुहार लगाई लेकिन अब तक किसी ने इलाके की सुध नहीं ली
देश को आजाद हुये भले ही 72 साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है लेकिन देश में आज भी ऐसे कई इलाके हैं जहां लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीवनयापन करने को मजबूर हैं. शिक्षक रतनलाल की कहानी डिजिटल इण्डिया, मेक इन इंडिया, बुलेट ट्रैन जैसे तमाम दावों की पोल खोलने के लिये काफी है.
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