शमी पूजा करते सिंधिया
विष्णु तोमर
ग्वालियर. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा रियासतकालीन ग्वालियर शहर में कई रूपों में विशेष तरीके से मनाया जाता है. एक तरफ जहां सिंधिया परिवार अपनी 200 साल पुरानी परंपरा को निभाते हुए दशहरा मैदान में शमी पूजन करता है. तो वहीं, शहर में कई स्थान पर रावण दहन कार्यक्रम पूरे उत्साह के साथ किया जाता है. इसके अलावा विजयदशमी पर क्षत्रीय समाज के द्वारा चल समारोह के माध्यम से शक्ति प्रर्दशन कर शस्त्र पूजन किया जाता है.
रियासती दौर से सिंधिया राजवंश में चली आ रही प्रथा
ग्वालियर में शमी पूजा का विशेष महत्व है. इस प्रथा का निर्वहन सिंधिया परिवार 200 साल से करता आ रहा है. सिंधिया राजवंश की कुलदेवी के मंदिर में पूजा-पाठ करने वाले मयूरेश मांढेर ने बताया कि इस दिन महाराज सिंधिया राजसी परिवेश में अपने परिवार के सदस्यों और अपने रियासती मराठा सरदारों के साथ महल से निकलते हैं और सबसे पहले क्षत्रीय मंडी पहुंच कर अपने पूर्वजों के मंदिरों में दर्शन करते हैं. इसके बाद देवघर गौरखी में अपने देवी-देवताओं का दर्शन कर वो अपनी कुलदेवी के माढरे की माता मंदिर में पहुंचते हैं. यहां पूजा-अर्चना कर अपने पूर्वजों की छतरियों पर प्रणाम करते हुए सीधे महल चले जाते हैं.
इसके बाद शाम को सिंधिया परिवार अपने राजसी परिवेश में पुनः दशहरा मैदान पहुंचते हैं जहां वो शमी वृक्ष की पूजा कर अपनी तलवार से उसको छूते हैं. इसके बाद पेड़ की पत्तियों को स्वर्ण मुदाओं के स्वरूप में लोगों पर लुटाते हैं. इस दौरान राजसी दौर की यादें ताजा हो जाती हैं. इसके देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं. शमी पूजा के बाद राजवंश के महाराजा अपने महल में शाही दरबार का आयोजन करते हैं, जिसमें रियासती दौर के सरदार और सामंत शिरकत करते हैं.
इसलिए की जाती है शमी पूजा
पौराणिक कथाओं के अनुसार शमी वृक्ष को विजय का प्रतीक माना जाता है. जब भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की थी तो वो शमी की पूजा कर के गए थे, और जीत के बाद उन्होंने पुनः शमी की पूजा की थी. वहीं, पांडवों ने भी कौरवों से युद्व के समय शमी की पूजा की थी. इतना ही नहीं राजा बलि ने भी शमी के पेड़ पर चढ़ कर अपना पूरा खजाना प्रजा में बांट दिया था.
विजयदशमी पर होता है शस्त्र पूजन
दशहरा पर क्षत्रिय समाज के द्वारा अपने घरों में विशेष पूजा की जाती है. इसके अलावा समाज के द्वारा चल समारोह भी निकाला जाता है जिसमें भगवान राम के जयकारों से पूरा शहर गुंजायमान हो जाता है. इसके बाद एक तय स्थान पर एकत्रित समाज बंधुओं के द्वारा अपने अमुक शस्त्रों की तिलक रोली से पूजा की जाती है.
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