Gwalior News: हालांकि इतिहास के पन्नों में इस तरह की किसी भी बात के साक्ष्य नहीं मिले हैं.
प्रदीप कश्यप/ विजय राठौड़
ग्वालियर. ग्वालियर शहर की उत्तरी दिशा में एक छोटी पहाड़ी पर बनी एक इमारत सदैव से ही लोगों के लिए उत्सुकता का केंद्र रही है. वर्तमान में ‘H’ के नाम से मशहूर लधेड़ी गेट को लेकर कई बार लोगों के जेहन में सवाल उठता है कि आखिर शहर से दूर इस इमारत का निर्माण क्यों करवाया गया होगा. तो आईए जानते है कि आखिर क्या है इस ‘H’ का इतिहास.
ग्वालियर दुर्ग से तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटी सी इमारत है, जो कि एक छोटी सी पहाड़ी पर निर्मित है और वास्तुकला का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करती है. बताया जाता है कि यह इमारत कभी शहर की पहचान भी हुआ करती थी. जो शहर की दूरदृष्टि को भी प्रर्दशित करती थी.
दोस्ती को यादगार बनाने के लिए किया गया था निर्माण
वरिष्ठ जानकार देवश्री माली ने बताया कि इस इमारत का निर्माण लगभग 14वीं और 15वीं शताब्दी के मध्य तत्कालीन राजा कल्याण मल द्वारा करवाया गया था. उन्होंने इस द्वार का निर्माण अपने मित्र एवं जौनपुर के शासक आजम लाद खान के स्वागत के लिए करवाया था. कहा जाता है कि इस स्थान का नाम उस समय जौनपुर की तर्ज पर यमनपुर रखा गया था. जो कि बाद में सुरक्षा की दृष्टि से वाचटावर के रूप में प्रयोग होने लगा. ताकि बाहरी ताकतों पर नजर रखी जा सके.
गद्दारों को दी जाती थी फांसी
प्रचलित किदवंतियों के अनुसार उक्त स्थान का प्रयोग फांसी घर के रूप में भी किया जाता था. जहां अपराधियों व गद्दारों को नगर से दूर लाकर उक्त स्थान पर फांसी देकर शव को कई दिनों तक लटकाया जाता था. ताकि अन्य गद्दारों व अपराधियों को सबक मिल सके. हालांकि इतिहास के पन्नों में इस तरह की किसी भी बात के साक्ष्य नहीं मिले हैं.
क्या सच में गढ़ा है राजाओं का खजाना
शहर में ‘H’ के नाम से मशहूर इस इमारत के बारे में कई अफवांए प्रचलित है जिनमें एक अफवाह यह भी है कि तत्कालीन राजाओं ने युद्ध के दौरान यहां भारी मात्रा में खजाना छिपाने के लिए गाढ़ दिया था. ताकि बाद में उसे प्रयोग किया जा सके. और उक्त स्थान की पहचान के लिए इस इमारत का निर्माण करवाया गया था. लोगों की माने तो कई बार असमाजिक तत्वों ने इस खजाने को खोदने के प्रयास भी किए है, जिन पर कार्रवाई भी की गई.
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