रिपोर्ट: दुर्गेश सिंह राजपूत
नर्मदापुरम: मां नर्मदा के किनारे सेठानी घाट पर हर पूर्णिमा को महाआरती का आयोजन किया जाता है. इस महाआरती में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं, जिनमें पर्यटकों के साथ ही स्थानीय शहरवासी भी रहते हैं. शाम 7.30 बजे नर्मदा अष्टक के साथ महाआरती की शुरुआत की जाती है. सेठानी घाट पर पूर्णिमा और अन्य त्योहारों के अवसर पर मां नर्मदा की महाआरती बनारस में मां गंगा आरती की तर्ज पर होती है.
महाआरती संयोजक प्रशांत दुबे ने बताया कि प्रति पूर्णिमा पर महाआरती की जाती है. 14 वर्ष पहले महाआरती गंगा दशहरा से प्रारंभ की गई थी, तब से अब तक महाआरती का आयोजन लगातार चला आ है. पूर्णिमा के अलावा राष्ट्रीय पर्वों पर भी इसका आयोजन किया जाता है. यह महाआरती बनारस से मंगवाए गए पात्रों से की जाती है. एक दिन पहले से ही इसकी तैयारियां शुरू होती हैं.
कोरोना काल में भी नहीं रुकी महाआरती
मां नर्मदा, नर्मदापुरम शहरवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र हैं. यही कारण है कि कोरोना काल जैसी महामारी में जब पूरी दुनिया थमी रही, इस दौरान भी सेठानी घाट पर मां नर्मदा की महाआरती करने की परंपरा लगातार जारी रही.
महाआरती का महत्व
आचार्य प. घनश्याम तिवारी ने बताया कि महाआरती के समय यदि भक्त धूप आरती के दर्शन करें तो उसके पितृदोष समाप्त हो जाते हैं. वहीं, कपूर से आरती करने पर मां नर्मदा को शीतलता मिलती है. 14 वर्ष पहले साध्वी प्रज्ञा भारती के द्वारा यह आरती प्रारंभ कराई गई थी. महाआरती का उद्देश्य है कि नर्मदा जी की कृपा और उनका आशीर्वाद सभी को प्राप्त हो, सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी के जीवन में प्रकाश हो एवं सभी का कल्याण हो. सभी पर मां नर्मदा जी की कृपा इसी प्रकार बनी रहे. यही महाआरती समिति का उद्देश्य है.
9 ब्राह्मण मिलकर करते हैं महाआरती
यहां पर जो महाआरती की जाती है, वह निरंतर 9 ब्राह्मणों के द्वारा की जाती है. जिस प्रकार मां भगवती के नौ स्वरूप हैं, उसी प्रकार 9 ब्राह्मण मां भगवती के 9 स्वरूपों की यहां पर महाआरती करते हैं. पूर्णिमा के अलावा अन्य कुछ अवसरों पर जैसे नवरात्रि, संक्रांति आदि पर्वों पर भी 9 ब्राह्मणों के द्वारा महाआरती का आयोजन होता है.
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