रिपोर्ट : अभिलाष मिश्रा
इंदौर. इंदौर के अन्नपूर्णा माता के प्राचीनतम मंदिर पर लोगों की अटूट आस्था है. इंदौर के ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से भी भक्त माता अन्नपूर्णा के दर्शन करने यहां आते हैं. इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था. इंडो-आर्यन और द्रविड़ स्थापत्य शैली का अनूठा उदाहरण है यह मंदिर.
इस मंदिर की सबसे विशेष बात मां अन्नपूर्णा की 3 फुट ऊंची संगमरमर की मूर्ति का होना है. इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां की वास्तुकला शैली मदुरई के मीनाक्षी मंदिर से मिलती-जुलती है. मंदिर परिसर में हनुमान, काल भैरव, अन्नपूर्णा, भगवान शिव की प्रतिमाएं स्थापित हैं. अन्नपूर्णा मंदिर का पूरा इलाका ही अन्नपूर्णा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. नवरात्र के मौके पर भक्तों की भारी भीड़ यहां दर्शन के लिए उमड़ रही है. इस दौरान माता की विशेष पूजा की जाती है. सुबह 5:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक और दोपहर 2:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक पूजा अर्चना का क्रम जारी रहता है.
भगवती अन्नपूर्णा मां पार्वती की अवतार हैं. पौराणिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि सिद्ध धार्मिक नगरी काशी में अन्न की कमी के कारण बनी भयावह स्थिति से विचलित होकर भगवान शिव ने अन्नपूर्णा देवी से भिक्षाग्रहण कर वरदान प्राप्त किया था. इस पर भगवती अन्नपूर्णा ने उनकी शरण में आनेवाले को कभी धन-धान्य से वंचित नहीं होने का आशीष दिया था.
मंदिर के मुख्य पुजारी शालिग्राम शास्त्री ने बताया कि अन्नपूर्णा मंदिर से बड़ी संख्या में लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. अन्नपूर्णा माता की पूजा युगों-युगों से होती आई है. इस अन्नपूर्णा माता के मंदिर में दर्शन करनेवालों की हर मुराद पूरी होती है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचकर माता के दरबार में शीश झुकाते हैं.
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