किशोग दा खंंडवा में बसना चाहते थे
खंडवा. गीत-संगीत और फैन्स आज स्व. किशोर कुमार (Kishore Kumar) को याद कर रहे हैं. हरदिल अजीज़ किशोर दा की आज पुण्यतिथि है. खंडवा (Khandwa) के लोगों के तो वो दिल में बसते हैं. उन्हें गुजरे 33 साल हो गए. लेकिन यहां के लोगों के मन में वो आज भी ज़िंदा हैं.
खंडवा के बंगाली परिवार का एक ऐसा सितारा जो बॉलीवुड में ध्रुवतारा बनकर आज भी हम सब के बीच चमक रहा है. पूरा देश आज उनकी 33 वीं पुण्यतिथि मना रहा है. किशोर कुमार बॉलीवुड का वो बेहतरीन गायक....वो बेहतरीन सितारा... जिनकी दिलकश आवाज़ और नटखट स्वभाव पर हर कोई फिदा हो जाए. आज किशोर दा की पुण्यतिथि है. 13 अक्तूबर के दिन ही किशोर कुमार 1987 में हम सब को छोड़ कर चले गए थे. लेकिन मौत के बाद भी वो हम सब के बीच अमर हैं.
आभाष कुमार से लेकर किशोर कुमार तक का सफर
4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के छोटे से शहर खंडवा जिले में एक बंगाली परिवार में जन्मे किशोर कुमार के बचपन का नाम तो आभाष रखा गया था. 15 वर्षों तक खंडवा में रहने के बाद किशोर कुमार वर्ष 1946 में अपने भैया और फिल्म अभिनेता अशोक कुमार के पास मुंबई चले गए थे. यहां बॉलीवुड ने उन्हें किशोर कुमार का नाम दिया. वो के.एल. सहगल की तरह गायक बनना चाहते थे. 1948 में खेमचन्द्र प्रकाश के संगीत निर्देशन में फिल्म जिद्दी के लिए उन्होंने पहली बार देवानंद के लिए गाना गाया. गीत के बोल थे "मरने की दुआएं क्यूँ मांगू. दरअसल खेमचंद्र प्रकाश ने उन्हें गाने का मौका आखिर क्यों दिया सुनिए यह किस्सा.
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