chaitra navratri 2023: मंडला जिले में चौगान के मढ़िया है इसे आदिवासियों का तीर्थ स्थल भी कहा जाता है.
मंडला. देश भर में नवरात्रि के दौरान जवारे रखे जाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी एक साथ हजारों की संख्या में जवारे रखे देखे हैं. मंडला में चौगान की मढ़िया में अनोखे तरीके से नवरात्रि मनाई जाती है. यहां स्वर्ग की सीढ़ी पर दीप जलाकर आधीरात को महाआरती की जाती है. देश भर के कई राज्यों से लोग माता के दरबार में माथा टेकने के लिए पहुंचते हैं.
मंडला से लगभग 30 किमी की दूरी पर चौगान की मढ़िया है. इसे आदिवासियों का तीर्थ स्थल कहा जाता है. यहां नवरात्रि में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. आमतौर पर सभी लोग सुबह शाम और खाना खाने से पहले पूजा करते हैं. लेकिन यहां इसके ठीक विपरीत यानी कि खाना खाने के बाद रात करीब 10 बजे के बाद पूजा की जाती है. पूजा की शुरूआत में स्वर्ग की सीढ़ी जो कि जमीन से करीब 25 फीट ऊपर है. उस पर दीप प्रज्जवलित कर किया जाता है. इसके बाद लोग अपनी महादेवी की महाआरती करते हैं. इस आरती में हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं.
अनोखी होती है महाआरती
आरती खत्म होते ही महादेवी का संदेश सुनाया जाता है. फिर मढ़िया में नगाड़े बजाए जाते हैं. नगाड़े की थाप की आवाज सुनते ही महाआरती में खड़े हजारों लोगों में से लोग अचानक मैदान पर आते हैं, और नंगाड़े के सामने भाव खेलने लगते हैं. कहा जाता है यहां पर पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. साथ ही दावा किया जाता है कि इस स्थान पर आने से कई बीमारियों से निजात भी मिल जाती है. यहां न केवल मंडला जिला बल्कि दूसरे प्रदेशों से भी हर वर्ग के लोग मन्नत मांगने आते हैं. मन्नत पूरी होने के बदले में भक्तों को यहां नवरात्रि पर ज्योति कलश जवारे के रूप में स्थापना कराना जरूरी होता है.
हजारों के संख्या में रखे जाते हैं माता के जवारे
मन्नत पूरी होने के बाद यहां जवारे कलशों की संख्या हजारों में होती है. इस साल करीब 3 हजार 4 सौ 40 जवारे रखे गए हैं. इतनी बड़ी संख्या में रखे जवारे और कलश मढ़िया में रखने तक की जगह नहीं होती. इसलिए भक्त मढ़िया के पास ही बने लोगों के घर-घर जाकर जवारे रखते हैं. श्रद्धा रखने वाले लोगों का मानना है कि चौगान की मढ़िया में देवी का वास है. लोग यहां दूर-दूर से आकर अपनी समस्याओं से निजात पाते हैं. यहां आने के बाद सबसे पहले नारियल अगरबत्ती के साथ अपनी मनोकामना देवी से कहनी होती है और पंडा के सामने अर्जी लगानी होती है. फिर यहां पंडा लगातार जलती आ रही धूनी की एक चुटकी भभूत मां के आशीर्वाद के रूप देते हैं. इसे खाने के बाद बीमारियों के दूर होने और कोई भी मनोकामना पूरी होने की बात कही जाती है.
जवारे और ज्योति
पुजारी के मुताबिक माता लोगों की सूनी गोद भरने के साथ ही बीमारियों को दूर करती हैं. मानसिक रूप से विक्षिप्त यहां आकर ठीक हो जाते हैं. इसके अलावा कानूनी उलझनों से भी यहां निजात मिलती है. जिस किसी की भी यहां मन्नत पूरी होती है, उन्हें इस स्थान पर बांस की टोकरी, मिट्टी का बड़ा दीपक और तेल-बाती लेकर आना होता है. नवरात्रि की शुरूआत के दूसरे दिन खास तरह की मिट्टी सभी को लानी होती है, जो कि पुजारी बताता है. इसके बाद गेहूं के जवारे टोकरी में बोए जाते हैं और एक साथ ज्योति प्रज्वलित कर कलशों की स्थापना की जाती है. इस स्थान में मांगी गई मन्नत पूरी होने के बाद ही कलश रखे जाते हैं और ऐसे कलश की संख्या चैत्र के ही नवरात्रि में हजारों के आस-पास होती है.
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