मध्य प्रदेश के मंदसौर में हुए गोलीकांड के एक साल पूरे हो गए हैं. 6 जून 2017 को मंदसौर में हुए किसानों के हिंसक प्रदर्शन में शिवराज सरकार बैकफुट पर आ गई थी. किसी ने नहीं सोचा था कि मध्यप्रदेश में एसएमएस और सोशल मीडिया से शुरू हुआ किसान आंदोलन इतना खतरनाक रूप ले लेगा.
आंदोलन में किसान इतने हिंसक हो गए कि सरकार को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. आंदोलन में करीब छह लोगों की जान चली गई थी. हिंसा के बाद बिगड़े हालात के बाद प्रदेश में शांति स्थापित करने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उपवास किया.
दरअसल, आंदोलन के दौरान इस दौरान आंदोलनकारियों ने बैंकों, पुलिस चौकी और ट्रेन को अपना निशाना बनाया. जली हुई पुलिस चौकी, उपद्रवियों के निशाना बने बस और बेबस पुलिस के मुरझाए चेहरे इस आग को साफ बयां कर रहे थे. किसानों ने देवास में हाट पिपलिया थाने पर धावा बोल दिया और जब्ती के वाहनों को आग लगा दी.
उन्होंने भोपाल-इंदौर के बीच चलने वाली दो बसों सहित 10 से अधिक वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया. मंदसौर के कयामपुर में किसानों ने तीन बैंकों युको, जिला सहकारी बैंक और कृषक सेवा सहकारी समिति की शाखाओं में आग लगा दी.
आंदोलनकारियों ने बैंकों, कारखाने और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया. किसानों को समझाने गए तत्कालीन जिलाधिकारी स्वतंत्र कुमार सिंह को भी उनके गुस्से का सामना करना पड़ा. मंदसौर शहर और पिपलिया मंडी में लागू कर्फ्यू बुधवार को भी जारी रही. गोलीबारी में मारे गए लोगों के परिजनों और किसानों ने बरखेड़ा पंत पर चक्काजाम कर दिया. गोलीबारी में मारे गए छात्र अभिषेक पाटीदार के शव को सड़क पर रखकर किसानों ने प्रदर्शन किया. आंदोलनकारियों ने मृतक किसानों को शहीद का दर्जा देने की मांग की थी.
आंदोलन के बाद पूरे देश खूब हंगामा मचा. मध्य प्रदेश सरकार ने आंदोलन की जांच के लिए जैन आयोग का गठन किया. और एक साल बाद भी ये नहीं पता कि किसानों पर गोली किसने चलाई. न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट का हर किसान को इंतज़ार है.
मंदसौर पुलिस फ़ायरिंग के जख्म अभी हरे हैं.
अभिषेक पाटीदार (22)
कन्हैयालाल पाटीदार (40)
चैनराम पाटीदार (40)
पूनमचंद उर्फ बब्लू पाटीदार (32)
सत्यनारायण धनगर (40)
घनश्याम धाकड़ (28)
इन परिवारों को इंसाफ की किरण एक साल पहले दिखाई थी. 12 जून 2017 को शिवराज सरकार ने एक सदस्यीय जैन आयोग का गठन कर तीन महीने के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था.
न्यायिक आयोग को पता करना था कि पुलिस फ़ायरिंग सही थी या नहीं. यदि नहीं तो फिर फ़ायरिंग के लिए गुनहगार कौन है. इसके बाद जैन आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा. पीड़ित किसानों के परिवार ही नहीं. तारीख़ भी रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही है.