अफीम उत्पादक मालवा मेवाड़ अंचल में एक आईपीएस अफसर के बयान के बाद भूचाल आ गया है. इन आईपीएस अफसर का कहना है की डोडा चूरा में 0.02 प्रतिशत से कम मॉर्फिन है, इसलिए यह एनडीपीएस एक्ट में नहीं आता. उनके इस बयान के किसानों की यह मांग जोर पकड़ने लगी है की डोडा चूरा को एनडीपीएस एक्ट से बाहर निकाला जाए.
दरअसल, प्रदेश के जाने माने आईपीएस अफसर और मंदसौर के एसपी मनोज कुमार सिंह ने कहा कि मैने पूरे एनडीपीएस एक्ट का अध्ययन किया है. अफीम की खेती 1920 से हो रही है, यह क़ानून 1934 में अस्तित्व में आया उसके बाद इसमें अमेंडमेंट होते रहे और 1985 से सीपीएस पद्धति से अफीम की खेती शुरू हुई जिसमे डोडे से सीधे अफीम खींच ली जाती है.
उन्होंने कहा कि यह क़ानून उन देशों ने बनाया जहां खेती सीपीएस पद्धति से होती है यानी उसमें डोडे से सीधे अफीम खींच ली जाती है लेकिन हमारे देश मै आज भी खेती चीरा लगाकर होती है. चीरा लगाने के बाद अफीम डोडे में से निकल जाती है लेकिन विदेशो में डोडा अफीम से भरा होता है जहां चीरा नहीं लगता, लेकिन एनडीपीएस एक्ट में डोडा को अफीम का हिस्सा माना गया है, क्योकि यह क़ानून उन लोगों ने बनाया जहां पूरा डोडा तोड़कर मॉर्फिन निकाली जाती है, लेकिन हमारे यहां वो डोडा अफीम से खाली होता है, इसलिए इस पर एनडीपीएस एक्ट बनता ही नहीं.
एसपी मनोज कुमार सिंह ने कहा की मैंने पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन तैयार कर लिया है जिसमें एक्ट की विसंगतियों को चिन्हित किया गया है जिसे मैं सरकार के सामने रखूंगा.
आईपीएस अफसर मनोज कुमार सिंह के इस बयान के बाद अफीम उत्पादक मालवा और मेवाड़ अंचल में एक नया मुद्दा खड़ा हो गया है. इस पूरे मामले को लेकर किसान नेता और वकील महेश पाटीदार का पर कहना है कि एनडीपीएस एक्ट में बड़ी विसंगति है क्योकि यह एक्ट स्पष्ट नहीं है.
पाटीदार कहते हैं कि नीमच कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह ने सितम्बर 2017 में धोला पाली जोकि डोडा चूरा का ही हिस्सा है, का मॉर्फिन टेस्ट करवाया था, यह मॉर्फिन टेस्ट देश की सबसे बड़ी ओपियम एन्ड अल्कलॉइड फैक्ट्री नीमच में हुआ था जिसकी रिपोर्ट में आया कि इसमें 0.02 प्रतिशत से कम मॉर्फिन है और एनडीपीएस एक्ट इतनी मात्रा पर लागू नहीं होता इससे भी आईपीएस अफसर की बात को बल मिलता है.
वहीं इस पूरे मामले को लेकर पोस्तादाना कारोबारी और किसान समीप चौधरी का कहना है कि नीमच, मंदसौर और रतलाम जिलों की जेलों में हजारों किसान डोडा चूरा और धोलापाली के मामलो में बंद हैं. एनडीपीएस केस में जितने लोग जेलों में हैं, उसमें नब्बे प्रतिशत डोडा चूरा के आरोपी हैं, जब डोडा चूरा में मॉर्फिन पर्सेंटेज उतना नहीं है तो फिर इसे एक्ट से बाहर निकाल देना चाहिए और हजारों किसानों को जेल से बाहर किया जाना चाहिए क्योकि इस धंधे में रिस्क बढ़ गयी है. इसलिए इसके भाव बढ़ गए वरना पहले इसे गांव की रेड़ी पर फेंक दिया जाता था.
मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग से जुड़े आयोग मित्र भानु दवे ने कहा की यह मामला मेरे संज्ञान में आया है. प्रथम दृष्टया मानव अधिकारों का उल्लघन प्रतीत होता है. उन्होंने कहा कि वे तमाम दस्तावेज एकत्रित कर एक रिट पिटीशन राज्य मानवाधिकार आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करेंगे.