रिपोर्ट: अनुज गौतम
सागर: घने जंगल के बीचो बीच अरण्य पर्वत पर देहार नदी के किनारे विराजीं रानगिर मां हरसिद्धि की अद्भुत महिमा है. कहा जाता है कि देवी यहां एक दिन में तीन बार अलग-अलग रूपों में दर्शन देती हैं. इसमें माता रानगिर सुबह के समय कन्या रूप में दोपहर के समय युवा अवस्था में और शाम के समय वृद्ध रूप में दर्शन देती हैं. यही वजह है कि नवरात्रि के पर्व पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
रानगिर माता मंदिर का इतिहास कितना पुराना है, इस बारे में अलग-अलग कहानियां बताई जाती हैं. लेकिन घने जंगल के बीच नदी के किनारे पहाड़ी पर विराजीं मां हरसिद्धि को लेकर अलग-अलग किंवदंतियां हैं. इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि जब दक्ष के यहां माता सती अपने पति के अपमान की वजह से यज्ञ में कूद पड़ीं, उस समय भगवान शंकर ने मा सती के शव को कंधे पर लेकर खूब तांडव किया था, तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए थे. इससे उनके शरीर के अलग-अलग हिस्से विभिन्न जगहों पर गिरे थे.
कई कथाएं हैं प्रचलित
जहां-जहां भी माता सती के शरीर के अंग गिरे, वहां 51 सिद्ध पीठ की स्थापना की गई. उन्हीं में से एक सती माता की रान (जांघ) इस क्षेत्र में गिरी थी, जिसकी वजह से इसका नाम रानगिर होना बताया जाता है. वहीं, मंदिर की स्थापना को लेकर एक और कहानी प्रचलित है. लोग कहते हैं की इस इलाके में एक चरवाहा आता था, उसकी एक छोटी बेटी थी जिसके साथ खेलने और उसे भोजन कराने के लिए रोज एक कन्या आती थी. साथ ही उस बेटी को कुछ कीमती सिक्के भी देती थी. एक दिन जब चरवाहे ने छुपकर उस कन्या को देखा तो उसी समय वह कन्या पत्थर बन गई. इसके बाद उस चरवाहे ने यहां पर चबूतरा बनवा दिया था.
महाराज छत्रसाल ने बनवाया मंदिर
मंदिर निर्माण को लेकर कहा जाता है कि यह इलाका 200 साल पहले महाराजा छत्रसाल के राज्य अधिकार में आता था. एक समय यहां पर मुगलों और बुंदेला छत्रसाल के बीच युद्ध हुआ तो उन्होंने माता से जीत की विनती की थी और जब उनकी जीत हुई तो उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर निर्माण के बाद लोग दुर्गम पहाड़ी पर कठिन रास्ते से होते हुए माता की आराधना करने के लिए आने लगे.
अब है सुगम रास्ता
वर्तमान में अब रानगिर में विराजी मां हरसिद्धि के दर्शन करने के लिए सुगम और आसानी भरा रास्ता उपलब्ध है. यह सागर मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित है जो बुंदेलखंड का प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र माना जाता है. नवरात्रि के 9 दिनों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. माता के दर पर जो भी श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आता है वह पूरी हो जाती है
मेले की तैयारियां पूरी
मंदिर के पुजारी विनोद शास्त्री बताते हैं कि अरण्य पर्वत पर विराजीं मां हरसिद्धि का क्षेत्र अत्यंत ही मनोहारी है, वो तीन रूप में दर्शन देती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करती हैं. यहां पर लगने वाले मेले के लिए प्रशासन के द्वारा मंदिर कमेटी के साथ मिलकर पूरी तैयारियां कर ली गई हैं.
(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. NEWS18 LOCAL किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)
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