एक चीनी Prisoner of war की कहानी, जिसने भारत को बनाया अपना घर और अब....

चीनी युद्ध बंदी वांग शी ने भारत को अपना घर बनाया
वांग शी अब 80 साल के हैं. वो चीन में हैं और उनका परिवार सिवनी में. दो देशों की सरहद और नियम-कानून ने एक परिवार को एक-दूसरे से अलग कर दिया है.
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: September 5, 2019, 7:04 PM IST
सिवनी.1963 में एक चीनी युद्ध बंदी (war prisoner)भारत लाया गया. लेकिन ये देश उसे इतना भाया कि उसने भारत (india)को ही अपना घर बना लिया. वो मध्य प्रदेश के बालाघाट में रहने लगा. 56 साल तक यहां रहा. 6 माह पहले अपने लोगों से मिलने की इच्छा उसे चीन(china) ले गयी. बस उसके बाद ऐसे नियम-कानून में उलझा कि लौटकर भारत नहीं आ पा रहा. उसका पूरा परिवार बालाघाट में ही रह गया. दो सरहदों में बंटा एक परिवार सरकार से मदद की उम्मीद कर रहा है.
वांग शी उर्फ राज बहादुर
उस युद्ध बंदी चीनी की पहचान भारत में राज बहादुर और चीन में वांग शी के तौर पर है. पिछले कुछ महीनों से वो भारत आने के लिए चीन और भारतीय दूतावास के चक्कर लगा रहा है. वांग शी 1963 में पकड़ा गया था. वो चीनी युद्ध बंदी के रूप में मध्य प्रदेश में रखा गया. रिहा होने के बाद वो लौटकर चीन नहीं गया. शादी करके बालाघाट के तिरोड़ी में परिवार बसा लिया.
मौत से पहले देश देखने की ख़्वाहिश
वांग शी बुज़ुर्ग हो चला तो मौत से पहले अपना देश देखने की इच्छा हुई. यही चाहत उसे चीन ले गयी. बस तब से वो वहीं अटका हुआ है और परिवार भारत में रह गया है. वांग शी 5 महीने से चाइना के बीजिंग में चीन और भारत की एंबेसी के चक्कर लगा रहे हैं. उन्हें यहां लौटने का वीजा नहीं मिल रहा है.

ये हुई चूक-दरअसल वांग शी का मामला प्रशासनिक चूक और लापरवाही का भी है. वो 56 साल तक भारत में बिना किसी वीजा या सरकारी पहचान के रहे. 2017 में उन्हें अपने देश चीन जाने की इच्छा हुई. उस दौरान मीडिया में मामला आया तो दोनों देशों की सरकार ने उन्हें चीन जाने की अनुमति तो दे दी.उस वक्त तो वो भारत लौट आए, लेकिन 6 महीने पहले ऐसे चीन गए कि लौटने का रास्ता नियम-कानून में उलझ गया.

ये भी पढ़ें-कमलनाथ के मंत्री बोले-बीजेपी के 3 और विधायक हमारे साथ
वांग शी उर्फ राज बहादुर
उस युद्ध बंदी चीनी की पहचान भारत में राज बहादुर और चीन में वांग शी के तौर पर है. पिछले कुछ महीनों से वो भारत आने के लिए चीन और भारतीय दूतावास के चक्कर लगा रहा है. वांग शी 1963 में पकड़ा गया था. वो चीनी युद्ध बंदी के रूप में मध्य प्रदेश में रखा गया. रिहा होने के बाद वो लौटकर चीन नहीं गया. शादी करके बालाघाट के तिरोड़ी में परिवार बसा लिया.

वांग शी 6 महीने पहले चीन गए थे
मौत से पहले देश देखने की ख़्वाहिश
वांग शी बुज़ुर्ग हो चला तो मौत से पहले अपना देश देखने की इच्छा हुई. यही चाहत उसे चीन ले गयी. बस तब से वो वहीं अटका हुआ है और परिवार भारत में रह गया है. वांग शी 5 महीने से चाइना के बीजिंग में चीन और भारत की एंबेसी के चक्कर लगा रहे हैं. उन्हें यहां लौटने का वीजा नहीं मिल रहा है.

वांग शी का परिवार बालाघाट के तिरोड़ी में रह रहा है
ये हुई चूक-दरअसल वांग शी का मामला प्रशासनिक चूक और लापरवाही का भी है. वो 56 साल तक भारत में बिना किसी वीजा या सरकारी पहचान के रहे. 2017 में उन्हें अपने देश चीन जाने की इच्छा हुई. उस दौरान मीडिया में मामला आया तो दोनों देशों की सरकार ने उन्हें चीन जाने की अनुमति तो दे दी.उस वक्त तो वो भारत लौट आए, लेकिन 6 महीने पहले ऐसे चीन गए कि लौटने का रास्ता नियम-कानून में उलझ गया.

वांग शी का परिवार उनके लौटने का इंतजार कर रहा है.वांग शी अब 80 साल के हैं. वो चीन में हैं और उनका परिवार सिवनी में. दो देशों की सरहद और नियम-कानून ने एक परिवार को एक-दूसरे से अलग कर दिया है.
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