बेजुबान पत्थरों की वजह से मशहूर हुआ ये शख्स, इन खास क्लबों में मिली जगह

विनोद श्रीवास्तव की 25 साल की मेहनत रंग लाई.
उमरिया जिले (Umaria District) में बेजुबान पत्थरों की अद्भुत कला का संग्रह देखने लायक है. मजेदार बात ये है कि विनोद श्रीवास्तव (Vinod Srivastava) ने अपनी 25 साल की कड़ी मेहनत के बाद नर्मदा खंड के पत्थरों को दुनियाभर में नई पहचान दिलाई है.
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: November 12, 2019, 4:05 PM IST
उमरिया. मध्य प्रदेश के उमरिया जिले (Umaria District) में बेजुबान पत्थरों की अद्भुत कला का संग्रह देखने लायक है. मजेदार बात ये है कि प्रकृति का खजाना स्थानीय रहवासी विनोद श्रीवास्तव (Vinod Srivastava) की लगन से सामने आया है. उन्होंने अपनी मेहनत से नर्मदा खंड के पत्थरों को दुनियाभर में नई पहचान दिलाई है. जबकि इन्हीं बोलते पत्थरों की वजह से वह देश के नामी गिरामी फासिल्स एवं बोनसाई क्लब (Bonsai Club) के मेंबर बन चुके हैं.
25 साल की मेहनत रंग लाई
देखने से महज एक पत्थर लेकिन गौर से देखने पर कला के अद्भुत संसार का ये नजारा है उमरिया के रहने वाले विनोद श्रीवास्तव के घर का है. यहां रखे एक से एक खूबसूरत और कला के प्राकृतिक नमूनों का यह अदभुत संग्रह उनकी 25 साल की लगन और मेहनत से तैयार हो पाया है. ये पत्थर न तो तराशे हुए हैं और न ही इनमें कोई कारीगरी की गई है, बल्कि नर्मदा खंड में छिपी पड़ी इस धरोहर को विनोद की पारखी नजरों ने न सिर्फ समझा बल्कि सहेज कर बोलते पत्थरों का कलेक्शन तैयार कर दिया.
दरअसल, ये पत्थर हजारों लाखों वर्ष पुराने जमीन के अंदर हुए प्रकृति के बदलावों के परिणाम हैं, जिसमें कला का अद्भुत संसार छिपा हुआ है. इनकी विनोद श्रीवास्तव ने पहचान की और दुनिया में पहचान दिलाई. आज विनोद श्रीवास्तव इन्हीं बोलते पत्थरों की वजह से देश के नामी गिरामी फासिल्स एवं बोनसाई क्लब के मेंबर बन चुके हैं.
जानकार मानते हैं ये बात
जानकर मानते हैं कि यहां पहले टेथिस नाम का सागर था जो कालांतर में पहाड़ में परिवर्तित हुआ है. इसी के नीचे समुद्री जीवों के बड़ी मात्रा में अवशेष मौजूद हैं. फासिल्स मेराइन नेचर के होने से भी यहां समुद्र होने की पुष्टि होती है. आज के दौर में देश एवं दुनिया में इन फासिल्स पत्थरों का महत्व काफी बढ़ गया है. इंटीरियर डेकोरेशन से लेकर धार्मिक कार्यों तक में इनके उपयोग का प्रचलन बढ़ रहा है, लेकिन उमरिया एवं आसपास मौजूद इन लाखों करोड़ों साल पुराने अवशेषों को पहचानने-तलाशने का काम न के बराबर हो रहा है. हालांकि विनोद श्रीवास्तव ने अपनी बेटी को भी इस काम से जोड़ा है और उनकी मंशा है कि वो अपने जिले में इस प्राकृतिक धरोहर को देखने समझने का एक केंद्र खोलें.
उमरिया इस वजह से है मशहूर
उमरिया जिला बाघों के अलावा अपनी समृद्ध कला संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन फ़ासिल्स पत्थरों की प्रचुर मात्रा में मौजूदगी की बात अभी तक न तो समाज के जेहन में आ पाई है न सरकार के. विनोद श्रीवास्तव का प्रयास महज एक शुरुआत है. अगर सरकार भी इस दिशा में कुछ कारगर पहल करे तो इलाके को एक नई पहचान के साथ-साथ युवाओं के अध्ययन एवं रोजगार के लिए नई पहचान मिल सकती है.
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25 साल की मेहनत रंग लाई
देखने से महज एक पत्थर लेकिन गौर से देखने पर कला के अद्भुत संसार का ये नजारा है उमरिया के रहने वाले विनोद श्रीवास्तव के घर का है. यहां रखे एक से एक खूबसूरत और कला के प्राकृतिक नमूनों का यह अदभुत संग्रह उनकी 25 साल की लगन और मेहनत से तैयार हो पाया है. ये पत्थर न तो तराशे हुए हैं और न ही इनमें कोई कारीगरी की गई है, बल्कि नर्मदा खंड में छिपी पड़ी इस धरोहर को विनोद की पारखी नजरों ने न सिर्फ समझा बल्कि सहेज कर बोलते पत्थरों का कलेक्शन तैयार कर दिया.
दरअसल, ये पत्थर हजारों लाखों वर्ष पुराने जमीन के अंदर हुए प्रकृति के बदलावों के परिणाम हैं, जिसमें कला का अद्भुत संसार छिपा हुआ है. इनकी विनोद श्रीवास्तव ने पहचान की और दुनिया में पहचान दिलाई. आज विनोद श्रीवास्तव इन्हीं बोलते पत्थरों की वजह से देश के नामी गिरामी फासिल्स एवं बोनसाई क्लब के मेंबर बन चुके हैं.

श्रीवास्तव इन्हीं बोलते पत्थरों की वजह से देश के नामी गिरामी फासिल्स एवं बोनसाई क्लब के मेंबर बन चुके हैं.
जानकार मानते हैं ये बात
जानकर मानते हैं कि यहां पहले टेथिस नाम का सागर था जो कालांतर में पहाड़ में परिवर्तित हुआ है. इसी के नीचे समुद्री जीवों के बड़ी मात्रा में अवशेष मौजूद हैं. फासिल्स मेराइन नेचर के होने से भी यहां समुद्र होने की पुष्टि होती है. आज के दौर में देश एवं दुनिया में इन फासिल्स पत्थरों का महत्व काफी बढ़ गया है. इंटीरियर डेकोरेशन से लेकर धार्मिक कार्यों तक में इनके उपयोग का प्रचलन बढ़ रहा है, लेकिन उमरिया एवं आसपास मौजूद इन लाखों करोड़ों साल पुराने अवशेषों को पहचानने-तलाशने का काम न के बराबर हो रहा है. हालांकि विनोद श्रीवास्तव ने अपनी बेटी को भी इस काम से जोड़ा है और उनकी मंशा है कि वो अपने जिले में इस प्राकृतिक धरोहर को देखने समझने का एक केंद्र खोलें.
उमरिया इस वजह से है मशहूर
उमरिया जिला बाघों के अलावा अपनी समृद्ध कला संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन फ़ासिल्स पत्थरों की प्रचुर मात्रा में मौजूदगी की बात अभी तक न तो समाज के जेहन में आ पाई है न सरकार के. विनोद श्रीवास्तव का प्रयास महज एक शुरुआत है. अगर सरकार भी इस दिशा में कुछ कारगर पहल करे तो इलाके को एक नई पहचान के साथ-साथ युवाओं के अध्ययन एवं रोजगार के लिए नई पहचान मिल सकती है.
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