जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते मलेरिया के साये में जीने को मजबूर है ग्रामीण

हाई रिस्क मलेरिया जोन का गांव आंचला
इस साल विभाग ने मलेरिया से निपटने के लिए करीब 2 लाख 29 हजार मच्छरदानी ग्रामीणों में बांटने की योजना बनाई थी और सर्वे के नाम पर लाखों रुपये भी खर्च कर दिए , लेकिन मच्छरदानी क्यों नहीं उपलब्ध करवाई गई, सरकारी हुक्मरानों के पास इसका जवाब नहीं है.
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated: August 9, 2018, 10:31 AM IST
उमरिया जिले में मलेरिया के हाई रिस्क जोन में पांच साल से मडिकेटेड मच्छरदानी नहीं बांटी गई है. बरसात से पहले मलेरिया सहित कई मच्छर जनित रोगों से बचाव के लिए राज्य सरकार द्वारा ग्रामीणों को निशुल्क मच्छरदानी उपलब्ध करवाने की योजना चलाई जा रही है, लेकिन अब करीब पांच साल से जिम्मेदारों का इस योजना की तरफ कोई ध्यान नहीं है.
बरसात के दिनों में मच्छरों के प्रकोप से होने वाले मलेरिया से ग्रामीणों को बचाने के लिए प्रशासन अपनी जिम्मेदारी भूल हया है. उमरिया के 660 गांव हर साल लगभग मलेरिया की चपेट में रहते हैं, लेकिन जिले के 65 गांवों को मलेरिया और मच्छरजनित रोगों के लिए हाई रिस्क घोषित किया है.
इन गांवों में मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है, लिहाजा सरकार की योजना के मुताबित स्वास्थ्य महकमें की जिम्मेदारी होती है कि गांवों में न सिर्फ बचाव के उपाय किए जाए, वरन गरीब परिवारों को निशुल्क मेडिकेटेड मच्छरदानी उपलब्ध करवाई जाए. जिले में करीब पांच साल से अधिकारी राज्य सरकार की इस योजना का मजाक बना रहे हैं. बीते पांच साल में न तो निशुल्क मच्छरदानी मिली और ना ही मच्छरों से बचाव के उपचार चिकित्सा विभाग द्वारा किए जा रहे हैं.
इस साल विभाग ने मलेरिया से निपटने के लिए करीब 2 लाख 29 हजार मच्छरदानी ग्रामीणों में बांटने की योजना बनाई थी और सर्वे के नाम पर लाखों रुपये भी खर्च कर दिए , लेकिन मच्छरदानी क्यों नहीं उपलब्ध करवाई गई, सरकारी हुक्मरानों के पास इसका जवाब नहीं है. सीएमएचओ राकेश श्रीवास्तव के कहा कि उनकी अभी इस क्षेत्र में पोस्टिंग हुई है, जिससे मामला उनके संज्ञान में नहीं है.मच्छर जनित मलेरिया सहित कई बीमारियां जानलेवा होती है, लेकिन समुचित ईलाज के अभाव में पीलिया, टाइफाइड जैसी घातक बीमारियां का खतरा भी इन ग्रामीणों पर हमेशा मंडराता रहता है. मलेरिया हाई रिस्क के गांवों के साथ 332 गांवों में मलेरिया के लार्वा मिले है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही इन ग्रामीणों के जीवन पर भारी पड़ सकती है.
बरसात के दिनों में मच्छरों के प्रकोप से होने वाले मलेरिया से ग्रामीणों को बचाने के लिए प्रशासन अपनी जिम्मेदारी भूल हया है. उमरिया के 660 गांव हर साल लगभग मलेरिया की चपेट में रहते हैं, लेकिन जिले के 65 गांवों को मलेरिया और मच्छरजनित रोगों के लिए हाई रिस्क घोषित किया है.
इन गांवों में मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है, लिहाजा सरकार की योजना के मुताबित स्वास्थ्य महकमें की जिम्मेदारी होती है कि गांवों में न सिर्फ बचाव के उपाय किए जाए, वरन गरीब परिवारों को निशुल्क मेडिकेटेड मच्छरदानी उपलब्ध करवाई जाए. जिले में करीब पांच साल से अधिकारी राज्य सरकार की इस योजना का मजाक बना रहे हैं. बीते पांच साल में न तो निशुल्क मच्छरदानी मिली और ना ही मच्छरों से बचाव के उपचार चिकित्सा विभाग द्वारा किए जा रहे हैं.
इस साल विभाग ने मलेरिया से निपटने के लिए करीब 2 लाख 29 हजार मच्छरदानी ग्रामीणों में बांटने की योजना बनाई थी और सर्वे के नाम पर लाखों रुपये भी खर्च कर दिए , लेकिन मच्छरदानी क्यों नहीं उपलब्ध करवाई गई, सरकारी हुक्मरानों के पास इसका जवाब नहीं है. सीएमएचओ राकेश श्रीवास्तव के कहा कि उनकी अभी इस क्षेत्र में पोस्टिंग हुई है, जिससे मामला उनके संज्ञान में नहीं है.मच्छर जनित मलेरिया सहित कई बीमारियां जानलेवा होती है, लेकिन समुचित ईलाज के अभाव में पीलिया, टाइफाइड जैसी घातक बीमारियां का खतरा भी इन ग्रामीणों पर हमेशा मंडराता रहता है. मलेरिया हाई रिस्क के गांवों के साथ 332 गांवों में मलेरिया के लार्वा मिले है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही इन ग्रामीणों के जीवन पर भारी पड़ सकती है.