इस बच्ची के पूरी तरह स्वस्थ हो जाने को एक चमत्कार के रूप में देखा जा रहा है.
दुनिया की कोई ताकत किसी को इस दुनिया में आने से नहीं रोक सकती. कुछ ऐसी ही कहानी है छह माह की एक प्रीमिच्योर बेबी की. जन्म के समय उसका वजन केवल 400 ग्राम था. डॉक्टरों ने सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं. माता-पिता निराश हो गए थे. लेकिन, उस बेबी के जीने की जिद ने ईश्वर को कुछ चमत्कार करने पर मजबूर कर दिया. और फिर चमत्कार हुआ भी और आंगन में किलकारी भी गूंजा. यह कहानी है महाराष्ट्र के पुणे की. यहां एक बच्ची का 24 हफ्ते में ही जन्म हो गया. आमतौर पर शिशु का जन्म 37 से 40 सप्ताह में होता है. सामान्य तौर पर जन्म के समय शिशु का वजन कम से कम ढाई किलो तक रहता है. लेकिन, इस बच्ची का वजन इतना कम था कि माता-पिता ही क्या डॉक्टर्स ने भी उम्मीद छोड़ दी. छह महीने में पैदा हुई इस बच्ची का वजन मात्र 400 ग्राम था. यानी कि आधा किलो से भी कम. डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसी स्थिति में शिशु के बचने का चांस सिर्फ 0.5 फीसदी ही होता है. लेकिन ये बच्ची चमत्कारिक ढंग से न सिर्फ बच गई बल्कि बिल्कुल स्वस्थ है और अपने माता-पिता के साथ है.
मई 2021 में पुणे की रहने वाली उज्जवला पवार ने चिंचवाड़ के एक नर्सिंग होम में मात्र 24 सप्ताह की एक प्रीमिच्योर बच्ची को जन्म दिया जिसका वजन सिर्फ 400 ग्राम था. जो कि शायद पूरे देश में सबसे कम वजन वाला प्रीमिच्योर बेबी था. तरह-तरह की परिस्थितियों से ग्रसित बच्ची की हालत नाजुक थी. लेकिन पवार को मन ही मन ऐसा लग रहा था कि उनकी बच्ची इस दुनिया में रहेगी. आज सात महीने बात शिवान्या नाम की इस बच्ची का वजन 2130 ग्राम यानि की 2.13 किलो हो गया है. इन सात महीनों में से कई हफ्ते सूर्या मदर एंड चाइल्ड सुपर स्पेशियेलिटी हॉस्पिटल में बिताने पड़े.
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देश में आया पहला ऐसा मामला
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह संभवतः देश का पहला ऐसा मामला था, जहां 400 ग्राम वजन और 30 सेमी लंबाई के एक समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे को बचाया गया था और उसे 94 दिन अस्पताल में रखने के बाद छुट्टी दी गई. देश में इससे पहले 2019 में अहमदाबाद से ऐसा मामला सामने आया था, जहां बच्चे का जन्म 22 सप्ताह में हुआ था और उसका वजन 492 ग्राम था.
डॉक्टर्स मानते हैं कि ऐसे बच्चों का सिर्फ जीवित रहना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि लंबे समय तक उनकी स्थिति के बारे में देखते रहना भी अहम होता है.
ऐसे बचाई गई बच्ची की जान
जन्म के बाद शिवान्या को तृतीयक स्तर के देखभाल वाले एनआईसीयू में रखा गया. विशेषज्ञों का मानना है कि शिवान्या जैसे बच्चे बेहद नाजुक होते हैं और उन्हें जीवित रखने के लिए समय समय पर दवा और नेबुलाइजेशन के साथ साथ ऑक्सीजन दिए जाने की जरूरत होती है. शिवान्या का केस अपने आप में अनूठा था. इसके लिए शिवान्या की मां उज्जवला को स्तनपान का सही तरीका बताने लिए विशेष तरह की काउंसिलिंग दी गई.
इसके साथ ही अस्पताल में बच्ची के शरीर के अंगों को सपोर्ट देने के लिए विशेष प्रबंध भी किए गए. शुरुआत के कुछ दिन उसे वेंटिलेटर पर रखा गया, साथ ही सांस लेने के लिए भी विशेष प्रबंध किए गए. इसके 88 दिन बाद वह खुद से सामान्य तरीके से सांस लेने लग गई. 76 दिन के बाद बच्ची ने मुंह से फीड करना शुरू किया.
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