राजनीति में आखिरी वक्त तक पत्ता संभालने के बाद संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के पौत्र और भारिप बहुजन महासंघ के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर ने अपनी चाल खेल दी है. उन्होंने ऐलान किया है कि लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी
कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं करेगी. दोनों पक्षों के बीच बातचीत के सारे दरवाजे बंद होने के साथ ही इस फैसले से राज्य में भाजपा और शिवसेना की राह आसान होती दिख रही है.
दरअसल, आंबेडकर यदि अकेले चुनाव लड़ेंगे तो इसका सीधा फायदा
भाजपा और शिवेसना को होगा. कांग्रेस और एनसीपी को अपने परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगने का डर सता रहा था. इसलिए आखिरी वक्त तक आंबेडकर को अपने पाले में लेने के लिए प्रयास किए जा रहे थे, लेकिन आंबेडकर के 22 सीटें मांगने के बाद बात बिगड़ गई. आंबेडकर की पार्टी ने जिन 22 सीटों पर दांवा जताया था, उनमें शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले की सीट बारामती भी शामिल थी.
भीमा कोरेगांव के बाद बढ़ा राजनीतिक रसूख
प्रकाश आंबेडकर की राजनीतिक रसूख पिछले साल भीमा-कोरेगांव विवाद के बाद काफी बढ़ गई है. मराठवाडा तक सीमित आंबेडकर अब पूरे राज्य में प्रभावशाली दल के रूप में उभर रहे है. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम से हाथ मिलाने के बाद प्रकाश आंबेडकर की पार्टी अब राज्य में 'खेल बिगाड़ेंगे' वाली पोजीशन में आ गई है.
कांग्रेस के लिए क्यों है 'खतरे की घंटी'
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आंबेडकर के साथ नहीं होने की कांग्रेस को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी. अनुमान है कि राज्य में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को आठ से नौ सीटों का नुकसान हो सकता है. भारिप का विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र में प्रभाव है, ऐसे में ओवैसी के साथ मिलकर वह दलित और मुस्लिम वोटों में सेंध लगा सकते है, जिसका सीधा फायदा भाजपा और शिवसेना को होगा.
मुंबई में भी बदलेंगे समीकरण
भारिप बहुजन महासंघ की सहयोगी पार्टी एमआईएम ने भी अहमदनगर के अलावा मुंबई उत्तर-पूर्व से चुनाव लड़ने का एलान किया है. पार्टी के मौजूदा विधायक वारिस पठान इस सीट से उम्मीदवार हो सकते हैं. पठान की दावेदारी से एनसीपी के संजय पाटिल की राह मुश्किल हो जाएगी. पिछले चुनाव में भाजपा के किरीट सौमेया ने उन्हें करारी शिकस्त दी थी.
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Tags: BJP, General Election 2019, Maharashtra, Mumbai, Shiv sena
FIRST PUBLISHED : March 12, 2019, 16:01 IST