शब्बीर को बीड के सूखाग्रस्त जिले में सैकड़ों मवेशियों की देखभाल के लिए जाना जाता है.
शब्बीर मामू के नाम से लोकप्रिय शब्बीर बुद्धन सैय्यद महाराष्ट्र के दहिवाडी गांव के एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वह 30 से अधिक वर्षों से पशु कल्याण और गाय संरक्षण में सक्रिय रूप से शामिल हैं. शब्बीर को बीड के सूखाग्रस्त जिले में सैकड़ों मवेशियों की देखभाल के लिए जाना जाता है. शब्बीर को 2019 में पद्मश्री मिला था.
सैय्यद शब्बीर उर्फ छब्बू सैय्यद बुधान एक चरवाहे. वह पूरी तरह से अनपढ़ हैं, लेकिन पशुओं के प्रति उनकी मानवता और दया की भावना एक मिसाल है. 1 जनवरी, 1947 को दहिवाड़ा गांव में जन्मे शब्बीर एक सामान्य परिवार से संबंध रखते हैं. जब वे 3 महीने के थे, तब उनकी माता का देहांत हो गया. उस समय उनके पिता के पास केवल दो गायें थीं. शब्बीर जब 19 वर्ष के थे, तब उन्होंने अपने पिता से गौरक्षा की प्रेरणा ली.
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शब्बीर ने मराठवाड़ा के सूखाग्रस्त क्षेत्र में 60 वर्षों तक गौपालक के रूप में काम किया. वह न केवल गायों की देखभाल करते हैं, बल्कि पक्षियों और जानवरों को खिलाकर प्रकृति का संतुलन भी बनाए रखते हैं. उनकी पत्नी, उनके दो बेटे और दो बहुएं उनके साथ इस काम में पूरी निष्ठा से मदद करती हैं.
शब्बीर ने दो गायों से पशुपालन की प्रथा शुरू की और वर्तमान में वे 120 गायों और मवेशियों की देखभाल कर रहे हैं.
शब्बीर समाज में धर्मनिरपेक्षता और मानवता का संदेश देते हैं. उन्होंने गौरक्षा के क्षेत्र में खुद को एक दुर्लभ उदाहरण के रूप में स्थापित किया है. वह महाराष्ट्र के एक जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्हें पशुओं के कल्याण और गौ रक्षा के लिए उनके कार्यों के लिए जाना जाता है.
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