बजट को लेकर शिवसेना का हमला, मुखपत्र सामना में लिखा- ये सपने दिखाने वाली सरकार है

शिवसेना ने सरकार पर साधा निशाना. (File Pic)
सामना (Saamana) में शिवसेना (Shiv Sena) ने लिखा, 'आर्थिक क्षेत्र और विकास दर ऊपर बढ़ने की बजाय शून्य की ओर और शून्य से ‘माइनस’ की ओर जा रही है.
- News18Hindi
- Last Updated: February 2, 2021, 6:52 PM IST
मुंबई. बजट (Budget 2021) को लेकर शिवसेना (Shiv Sena) ने अपने मुखपत्र सामना के जरिए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. शिवसेना ने कहा है कि सपने दिखाने और सपने बेचने के मामले में ये सरकार माहिर है. सपनों की दुनिया रचना और सोशल मीडिया पर टोलियों के माध्यम से उन सपनों की हवाई मार्केटिंग करना उनका काम है.
सामना में शिवसेना ने लिखा, 'आर्थिक क्षेत्र और विकास दर ऊपर बढ़ने की बजाय शून्य की ओर और शून्य से ‘माइनस’ की ओर जा रही है. आर्थिक मोर्चे पर इस तरह की तस्वीर के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने लोकसभा में अपने भाषण में लाखों-करोड़ों के आंकड़ों को प्रस्तुत किया. इसे ‘स्वप्निल’ नहीं तो और क्या कहें?
शिवसेना ने कहा, 'कोरोना काल में देश के हजारों उद्योग-धंधे डूब गए, लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं, बेरोजगारी बढ़ गई, इस पर वित्त मंत्री ने बजट के दौरान कुछ भी नहीं बोला. जिनकी नौकरियां गईं, उन्हें वे कैसे पुन: प्राप्त होंगी, बंद पड़े उद्योग कैसे शुरू होंगे, इस पर कुछ भी नहीं बोला गया.'
सामना में आगे लिखा गया, 'आम आदमी को इसी से सरोकार है कि उसकी जेब में क्या आया और इस बजट से जनता की जेब में कुछ नहीं आया, यह हकीकत है. बजट से वोटों की गलत राजनीति करने का नया पैंतरा सरकार ने शुरू किया है. पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल में अब विधानसभा के चुनाव हैं इसलिए इन राज्यों के लिए बड़े-बड़े पैकेज और परियोजनाओं की सौगात वित्त मंत्री ने बांटी है.'

शिवसेना ने कहा, 'चुनाव को देखते हुए केवल जहां चुनाव हैं, उन राज्यों को ज्यादा निधि देना एक प्रकार का छलावा है. जनता को लालच दिखाकर चुनाव जीतने के लिए ‘बजट’ का हथियार के रूप में प्रयोग करना कितना उपयुक्त है? देश के आर्थिक बजट में सर्वाधिक योगदान देने वाले महाराष्ट्र के साथ भेदभाव क्यों? सपनों के दिखावे से आम जनता की जेब में पैसे आएंगे क्या? यह असली सवाल है. वो नहीं आने वाले होंगे तो बजट के ‘कागजी घोड़े’ केवल ‘डिजिटल घोड़े’ बन जाएंगे.'
सामना में शिवसेना ने लिखा, 'आर्थिक क्षेत्र और विकास दर ऊपर बढ़ने की बजाय शून्य की ओर और शून्य से ‘माइनस’ की ओर जा रही है. आर्थिक मोर्चे पर इस तरह की तस्वीर के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने लोकसभा में अपने भाषण में लाखों-करोड़ों के आंकड़ों को प्रस्तुत किया. इसे ‘स्वप्निल’ नहीं तो और क्या कहें?
शिवसेना ने कहा, 'कोरोना काल में देश के हजारों उद्योग-धंधे डूब गए, लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं, बेरोजगारी बढ़ गई, इस पर वित्त मंत्री ने बजट के दौरान कुछ भी नहीं बोला. जिनकी नौकरियां गईं, उन्हें वे कैसे पुन: प्राप्त होंगी, बंद पड़े उद्योग कैसे शुरू होंगे, इस पर कुछ भी नहीं बोला गया.'
सामना में आगे लिखा गया, 'आम आदमी को इसी से सरोकार है कि उसकी जेब में क्या आया और इस बजट से जनता की जेब में कुछ नहीं आया, यह हकीकत है. बजट से वोटों की गलत राजनीति करने का नया पैंतरा सरकार ने शुरू किया है. पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल में अब विधानसभा के चुनाव हैं इसलिए इन राज्यों के लिए बड़े-बड़े पैकेज और परियोजनाओं की सौगात वित्त मंत्री ने बांटी है.'
शिवसेना ने कहा, 'चुनाव को देखते हुए केवल जहां चुनाव हैं, उन राज्यों को ज्यादा निधि देना एक प्रकार का छलावा है. जनता को लालच दिखाकर चुनाव जीतने के लिए ‘बजट’ का हथियार के रूप में प्रयोग करना कितना उपयुक्त है? देश के आर्थिक बजट में सर्वाधिक योगदान देने वाले महाराष्ट्र के साथ भेदभाव क्यों? सपनों के दिखावे से आम जनता की जेब में पैसे आएंगे क्या? यह असली सवाल है. वो नहीं आने वाले होंगे तो बजट के ‘कागजी घोड़े’ केवल ‘डिजिटल घोड़े’ बन जाएंगे.'