दिल्ली में किसान ट्रैक्टर रैली को लेकर शिवसेना का बीजेपी पर निशाना, सामना में पूछा- यह असली गणतंत्र है क्या?

पुलिस ने दिल्ली किसानों को रोकने के लिए दिल्ली के यूपी और हरियाणा से लगते सभी बॉर्डरों पर जवानों की संख्या बढ़ा दी है.
किसान आंदोलन के संदर्भ में शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा गया कि केंद्र सरकार ने यदि ठान लिया होता तो इसे आराम से टाला जा सकता था.
- News18Hindi
- Last Updated: January 26, 2021, 4:21 PM IST
मुंबई. शिवसेना के मुखपत्र सामना में मंगलवार को गणतंत्र दिवस (Republic Day) के अवसर पर प्रकाशित अंक में भारतीय जनता पार्टी की सरकार समेत कई मुद्दों पर सवाल उठाए गए हैं. सामना के संपादकीय में कहा गया है कि देश का 72वां गणतंत्र दिवस आज मनाया जाएगा. हालांकि इस अवसर पर कोरोना के साथ ही चीन द्वारा सीमा पर की जा रही खुराफात की छाया बनी रहेगी. दिल्ली में आयोजित समारोह पर वहां आंदोलनरत किसानों की ट्रैक्टर रैली का तनाव भी देखने को मिलेगा.
संपादकीय में लिखा गया है - 'गत 7 दशकों में देश की प्रगति अवश्य हुई है. उस प्रगति का लाभ जनता को हुआ ही है लेकिन कितने लोगों को हुआ? किस वर्ग को हुआ? गत 3 दशकों में एक `नव धनाढ्य’ वर्ग तैयार हो गया. करोड़पति’ लोगों की संख्या बढ़ी लेकिन गरीब और गरीब हो गया, ये भी उतना ही सही है. जिस देश का किसान और आम जनता सुखी और सुरक्षित होती है, उस देश को सच्चा गणतंत्र कहा जाता है.'
संपादकीय में लिखा गया है - 'हमारे देश में ऐसा कहा जा सकता है क्या? इन सवालों का जवाब जिन्हें देना है, वे ऐसे मुद्दों पर कुछ बोलते ही नहीं. उनके `मन की बात’ में ऐसे ज्वलंत मुद्दे आते ही नहीं.'किसान आंदोलन के संदर्भ में सामना में लिखा गया है कि केंद्र सरकार ने यदि ठान लिया होता तो इसे आराम से टाला जा सकता था. पिछले 50-60 दिनों से ये किसान दिल्ली की ठंड में आंदोलन कर रहे हैं लेकिन मामला चर्चा के आगे कभी बढ़ा ही नहीं.'

'यह असली गणतंत्र है क्या'
सामना में केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए लिखा गया है- 'केंद्र की सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया होता तो आज राजधानी में गणतंत्र दिवस का संचालन और किसानों का आक्रोश एक ही दिन नहीं होता. नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन के कारण देश की आम जनता के मन में आक्रोश है ही. रशिया (रूस) जैसे देश की`फौलादी’ जनता भी वहां की सरकार के विरोध में मास्को की सड़कों पर उतरी ही, इसे समझना होगा. आज अपने देश की राजधानी में किसान सड़कों पर उतरा है.. उसे समर्थन देने के लिए हर राज्य की राजधानी में भी किसानों के मोर्चे निकल रहे हैं. यह तस्वीर अच्छी नहीं है. भविष्य में यह दावानल और बढ़ सकता है. यह असली गणतंत्र है क्या?'
संपादकीय में लिखा गया है - 'गत 7 दशकों में देश की प्रगति अवश्य हुई है. उस प्रगति का लाभ जनता को हुआ ही है लेकिन कितने लोगों को हुआ? किस वर्ग को हुआ? गत 3 दशकों में एक `नव धनाढ्य’ वर्ग तैयार हो गया. करोड़पति’ लोगों की संख्या बढ़ी लेकिन गरीब और गरीब हो गया, ये भी उतना ही सही है. जिस देश का किसान और आम जनता सुखी और सुरक्षित होती है, उस देश को सच्चा गणतंत्र कहा जाता है.'
संपादकीय में लिखा गया है - 'हमारे देश में ऐसा कहा जा सकता है क्या? इन सवालों का जवाब जिन्हें देना है, वे ऐसे मुद्दों पर कुछ बोलते ही नहीं. उनके `मन की बात’ में ऐसे ज्वलंत मुद्दे आते ही नहीं.'किसान आंदोलन के संदर्भ में सामना में लिखा गया है कि केंद्र सरकार ने यदि ठान लिया होता तो इसे आराम से टाला जा सकता था. पिछले 50-60 दिनों से ये किसान दिल्ली की ठंड में आंदोलन कर रहे हैं लेकिन मामला चर्चा के आगे कभी बढ़ा ही नहीं.'
'यह असली गणतंत्र है क्या'
सामना में केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए लिखा गया है- 'केंद्र की सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया होता तो आज राजधानी में गणतंत्र दिवस का संचालन और किसानों का आक्रोश एक ही दिन नहीं होता. नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन के कारण देश की आम जनता के मन में आक्रोश है ही. रशिया (रूस) जैसे देश की`फौलादी’ जनता भी वहां की सरकार के विरोध में मास्को की सड़कों पर उतरी ही, इसे समझना होगा. आज अपने देश की राजधानी में किसान सड़कों पर उतरा है.. उसे समर्थन देने के लिए हर राज्य की राजधानी में भी किसानों के मोर्चे निकल रहे हैं. यह तस्वीर अच्छी नहीं है. भविष्य में यह दावानल और बढ़ सकता है. यह असली गणतंत्र है क्या?'