Indo-Pak war 1971: युद्ध में बड़े हथियार ही नहीं साइकिल का भी इसलिए हुआ था इस्तेमाल

साइकिल पर मैसेज लेकर जाते हुए कैप्टन निर्भय शर्मा.
इसी लड़ाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तान (Pakistan) के 93 हज़ार सैनिकों का सरेंडर कराया था.
- News18Hindi
- Last Updated: December 20, 2020, 9:33 AM IST
ननानई दिल्ली. सुनने और पढ़ने में बेशक आपको अजीब लगे, लेकिन यह सच है कि 1971 के भारत (India)-पाकिस्तान युद्ध में बड़े हथियारों के साथ ही भारतीय सेना (Indian Army) ने साइकिल का भी इस्तेमाल किया था. यह साइकिल सेना अपने साथ लेकर गई थी. खास बात यह है कि हथियारों के साथ ही साइिकल की मदद से सेना ने यह लड़ाई जीती भी थी. गौरतलब रहे कि मुक्ति वाहिनी की मदद के लिए सेना बांग्लादेश (Bangladesh) में अंदर तक घुस गई थी.
साइकिल पर कैप्टन निर्भय गए थे एक खास मैसेज लेकर
1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई के एक और हीरो कर्नल रिटायर्ड एसएम कुंजरू बताते हैं, “हमें अचानक आदेश मिला कि बांग्लादेश में जाकर वहां पहले से लड़ रही भारतीय सेना की मदद करनी है. 11 दिसंबर की दोपहर 2 पैरा ग्रुप बटालियन के पैरा कमांडो हवाई जहाज से जम्प कर बांग्लादेश के अंदर ढाका से कुछ दूर पहले उतर गए.
Indo-Pak War 1971: इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तानी सेना की नजर से 15 दिन तक ऐसे छिपाए रखा ताजमहलदुश्मन के इलाके में इस तरह उतरने से पहले कई तरह की तैयारी करनी पड़ती है और बहुत सारा सामान भी साथ में ले जाना होता है. क्योंकि हम दुश्मन के इलाके में जा रहे हैं, जहां न तो कोई हमारी मदद करने वाला है और न ही वहां हम किसी को पहले से जानते हैं.

इसीलिए पैरा कमांडो हथियारों के साथ एक ऐसी छोटी साइकिल भी लेकर जाते हैं, जो ले जाने के दौरान छोटी भी कर ली जाती है और दुश्मन के इलाके में पहुंचते ही असेंबल भी कर लेते हैं. जब हम दुश्मन के इलाके में पहुंच गए तो एक ऐसा मौका आया जब हम लोग वायरलेस भी इस्तेमाल नहीं कर सकते थे. और एक मैसेज का फॉरवर्ड लाइन पर मौजूद हमारे ही साथियों तक पहुंचना बेहद ज़रूरी थी. तब साइकिल की मदद से कैप्टन निर्भय शर्मा मैसेज लेकर आगे तक गए. यह वो निर्भय शर्मा थे जो पाक सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी के नाम सरेंडर करने का खत लेकर गए थे.”
गौरतलब रहे कि बाद में कैप्टन निर्भय शर्मा लेफ्टीनेंज जनरल के पद तक पहुंचे. रिटायर्ड होने के बाद पहले अरुणाचल और फिर मिजोरम के गर्वनर भी रहे. साथ ही यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के मेम्बर भी रहे. और सबसे अहम बात यह कि जनरल शर्मा ने कश्मीर और नॉथ-ईस्ट में आतंकवाद के खिलाफ बहुत काम किया. वक्त-वक्त पर उनकी बहादुरी लिए उन्हें पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम और वीएसएम अवार्ड से भी नवाज़ा गया.
साइकिल पर कैप्टन निर्भय गए थे एक खास मैसेज लेकर
1971 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई के एक और हीरो कर्नल रिटायर्ड एसएम कुंजरू बताते हैं, “हमें अचानक आदेश मिला कि बांग्लादेश में जाकर वहां पहले से लड़ रही भारतीय सेना की मदद करनी है. 11 दिसंबर की दोपहर 2 पैरा ग्रुप बटालियन के पैरा कमांडो हवाई जहाज से जम्प कर बांग्लादेश के अंदर ढाका से कुछ दूर पहले उतर गए.
Indo-Pak War 1971: इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तानी सेना की नजर से 15 दिन तक ऐसे छिपाए रखा ताजमहलदुश्मन के इलाके में इस तरह उतरने से पहले कई तरह की तैयारी करनी पड़ती है और बहुत सारा सामान भी साथ में ले जाना होता है. क्योंकि हम दुश्मन के इलाके में जा रहे हैं, जहां न तो कोई हमारी मदद करने वाला है और न ही वहां हम किसी को पहले से जानते हैं.
इसीलिए पैरा कमांडो हथियारों के साथ एक ऐसी छोटी साइकिल भी लेकर जाते हैं, जो ले जाने के दौरान छोटी भी कर ली जाती है और दुश्मन के इलाके में पहुंचते ही असेंबल भी कर लेते हैं. जब हम दुश्मन के इलाके में पहुंच गए तो एक ऐसा मौका आया जब हम लोग वायरलेस भी इस्तेमाल नहीं कर सकते थे. और एक मैसेज का फॉरवर्ड लाइन पर मौजूद हमारे ही साथियों तक पहुंचना बेहद ज़रूरी थी. तब साइकिल की मदद से कैप्टन निर्भय शर्मा मैसेज लेकर आगे तक गए. यह वो निर्भय शर्मा थे जो पाक सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी के नाम सरेंडर करने का खत लेकर गए थे.”
गौरतलब रहे कि बाद में कैप्टन निर्भय शर्मा लेफ्टीनेंज जनरल के पद तक पहुंचे. रिटायर्ड होने के बाद पहले अरुणाचल और फिर मिजोरम के गर्वनर भी रहे. साथ ही यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के मेम्बर भी रहे. और सबसे अहम बात यह कि जनरल शर्मा ने कश्मीर और नॉथ-ईस्ट में आतंकवाद के खिलाफ बहुत काम किया. वक्त-वक्त पर उनकी बहादुरी लिए उन्हें पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम और वीएसएम अवार्ड से भी नवाज़ा गया.