प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (File Photo)
2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले एनडीए की साथी पार्टियों से कलह बीजेपी के लिए सिरदर्द बनती जा रही है. महाराष्ट्र, पंजाब और हरियाणा में शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना के साथ समझौता में काफी दिक्कतें आ रहीं हैं तो बिहार में उसे जदयू के साथ गठबंधन में 2014 के मुकाबले 5 कम सीटों पर संतोष करना पड़ा है. यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी के सामने कठिन चुनौती है जिसका सामना करने के लिए उसे कई छोटे-छोटे साथियों पर निर्भर होना पड़ेगा.
महाराष्ट्र:
बात महाराष्ट्र से शुरू करें तो यहां शिवसेना ने स्पष्ट कर दिया है कि वो किसी भी हालत में बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है. संजय राऊत भले अभी कोई पुष्टि न करें पर चर्चा तो यहां तक है कि राज्य की 48 लोकसभा सीटों पर दोनों ही पार्टियां बराबरी पर मतलब 24-24 सीटों पर लड़ने को तैयार हो गई हैं. पिछली बार बीजेपी ने 24 और शिवसेना 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने 23 पर जीत दर्ज की थी, जबकि शिवसेना के पास 18 सीटें आई थीं.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर गठबंधन को लेकर काफी सकारात्मक हैं. उनके मुताबिक शिवसेना एनडीए का हिस्सा है और ये लोकसभा चुनाव भी हम साथ ही लड़ेंगे. हालांकि, बता दें कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था.
2014 में स्थिति:
पार्टी सीट वोट प्रतिशत अब (संभावित)
बीजेपी 23 27.56 24 पर लड़ेगी
शिवसेना 18 20.82 24 पर लड़ेगी
उधर बीते दिनों बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों महाराष्ट्र में गठबंधन न होने की स्थिति में अपने ही सहयोगी दलों को हराने से संबंधित एक टिप्पणी की थी. इसके बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे काफी भड़के हुए थे और 22 जनवरी को एक सभा में उन्होंने कहा कि हनुमानजी की जाति को लेकर किसी अन्य धर्म के व्यक्ति ने टिप्पणी की होती तो उस व्यक्ति के दांत तोड़ देते. उद्धव ठाकरे ने शाह पर पलटवार करते हुए कहा,‘मैंने किसी से ‘पटक देंगे' जैसे शब्द सुने हैं. शिवसेना को हराने वाला अभी पैदा नहीं हुआ है'.
पंजाब:
पंजाब उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जहां मोदी लहर के बावजूद 2014 लोकसभा चुनाव और 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी-अकाली का प्रदर्शन काफी औसत रहा था. राज्य में बीजेपी ने हमेशा अकाली की सहायक पार्टी की भूमिका निभाई है. हालांकि, बीते दिनों पीएम मोदी की रैली के लिए पंजाब के गुरदासपुर शहर को चुनने के पीछे गठबंधन के लिए बदले हुए हालात बताए जा रहे हैं. सिख बहुल इलाके से रैली की शुरुआत करके बीजेपी अकाली को संदेश देना चाहती है कि अब उनकी ताकत राज्य में पहले जैसी नहीं रही है और बीजेपी मजबूत हो रही है.
2014 में स्थिति:
पार्टी सीट वोट प्रतिशत अब (संभावित)
बीजेपी 03 8.70 5 मांग रही है
अकाली 10 26.30 10 से कम पर तैयार नहीं
दरअसल, इस रैली के जरिए बीजेपी सीट बंटवारे से पहले अकाली पर दबाव बनाना चाहती थी. बीते कई लोकसभा चुनावों से पंजाब में अकाली 10 सीटों पर और बीजेपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी ने अकाली पर ज्यादा सीटें देने का दबाव बनाया हुआ है. सूत्रों के मुताबिक बीजेपी को लगता है कि पंजाब में इस बार बीजेपी 3 की बजाय 5 सीटों पर अपनी दावेदारी पेश करने की तैयारी में है. हालांकि, अकाली 10 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं है.
हरियाणा:
पंजाब में अकाली और बीजेपी की बढ़ती दूरियों का असर हरियाणा में साफ़ दिखाई दे रहा है. शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने साफ़ कर दिया है कि हरियाणा में आगामी लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव उनकी पार्टी बीजेपी के बिना ही लड़ने जा रही है. हालांकि, 2014 में भी अकाली का कोई कैंडिडेट नहीं था लेकिन सपोर्ट बीजेपी के लिए ही था.
2014 में स्थिति:
पार्टी सीट वोट प्रतिशत अब (संभावित)
बीजेपी 07 34.84 10 पर लड़ेगी
अकाली 0 0 10 पर लड़ेगी
बीते लोकसभा चुनावों में हरियाणा में बीजेपी का गठबंधन हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) के साथ था. बीजेपी 8 जबकि जनहित कांग्रेस 2 सीटों पर चुनाव लड़े थे और बीजेपी ने 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में मलोट रैली के दौरान कहा था कि हरियाणा के अकालियों के प्रभाव वाले इलाकों में उन्हें फायदा मिलेगा, लेकिन अब अकाली दल के इस फैसले ने राज्य में बीजेपी नेतृत्व की चिंता बढ़ा दी है. भले ही अकाली बीजेपी को ज़्यादा नुकसान न पहुंचाएं लेकिन इसे 2019 से पहले राजनीतिक हार की तरह देखा जा रहा है.
बिहार:
बिहार में सीट बंटवारे का ऐलान हो चुका है और बीजेपी-जदयू ने 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. इस समझौते में एलजेपी को 6 सीट दी गईं हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. पिछले दिनों कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए हैं. बता दें कि बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की की 30 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और 22 सीटें जीतने में सफल रही थी. वहीं, जेडीयू सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ी और महज 2 सीटें ही जीत सकी थी. जबकि एलजेपी 7 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी थी और 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी.
2014 में स्थिति:
पार्टी सीट (जीती) वोट प्रतिशत अब
बीजेपी 22 29.86 17 पर लड़ेगी
जनता दल यू 02 16.04 17 पर लड़ेगी
एलजेपी 06 6.50 6 पर लड़ेगी
2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के बीच बने सीट शेयरिंग फॉर्मूले के तहते बीजेपी ने अपनी जीती हुई 22 सीटों में से भी पांच कम पर यानी 17 पर चुनाव लड़ने जा रही है जिसे उसकी राजनीतिक हार की तरह देखा जा रहा है. गौरतलब है कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि पिछले चुनाव में उसे सिर्फ 2 सीटें मिली थी. इस गठबंधन में नीतीश को सीधा फायदा मिलता नज़र आ रहा है. 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की 243 सीटों में से जेडीयू को 71 सीटें मिलीं थीं. तब बीजेपी को 53 और लोजपा एवं रालोसपा को क्रमश: दो-दो सीटें मिलीं थीं. उस चुनाव में जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) तथा कांग्रेस का महागठबंधन था.
उत्तर प्रदेश:
2014 लोकसभा चुनावों में यूपी ने तय कर दिया था कि बीजेपी को पांच साल तक किसी तरह की चिंता नहीं करनी है. यूपी की 80 में से 71 सीटें जीतकर बीजेपी ने तहलका मचा दिया था. सपा के पास 5, कांग्रेस के हिस्से 2 जबकि बसपा तो 0 पर ही सिमट गई थी. हालांकि सपा-बसपा गठबंधन ने 2019 के लिए यूपी में बीजेपी की नींद उड़ाई हुई है. यूपी के लिए बीजेपी के पास गठबंधन का कोई ऑप्शन ही नज़र नहीं आ रहा है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (एस) ने लगातार बीजेपी को तेवर दिखा रहे हैं और कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर आए दिन खुलकर सरकार की आलोचना कर रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार बीजेपी गठबंधन का कुनबा चार जातीयों के आधार पर बढ़ाया जा रहा है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अलावा फूलन सेना, जयहिंद समाज पार्टी बीजेपी के साथ आ सकती हैं. बता दें कि फूलन सेना निषादों की पार्टी है, जबकि जयहिंद समाज पार्टी बिंदों की है. इसके अलावा बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी जन अधिकार मंच भी बीजेपी गठबंधन का हिस्सा बन सकती है. हालांकि ये साफ़ है कि इन छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन की कवायद काफी मुश्किलों भरी साबित होने वाली है.
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