नई दिल्ली। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने आज लोकसभा में वर्ष 2015-16 के लिए रेल बजट पेश कर दिया। रेलमंत्री ने किसी नई ट्रेन की घोषणा नहीं की, लेकिन किराये में भी कोई वृद्धि नहीं की। प्रभु ने यात्रियों की सुविधाओं के लिए तमाम ऐलान किए हैं लेकिन इसके लिए पैसे कहां से आएंगे, ये सवाल भी उठाया जा रहा है। बजट के विश्लेषण के लिए आईबीएनखबर ने रेल मामलों के जानकार संजीव शिवेश से चर्चा की।
सवाल: इस बार का रेल बजट कैसा रहा? किसे फायदा मिला?
संजीव शिवेश: देखिए, रेल बजट में इस बार बहुत सारी अच्छी चीजें हैं। खासकर यात्रियों के लिए। सुरेश प्रभु के बजट में यात्रियों के लिए सुविधाओं पर खासा जोर दिया गया है। भोजन से लेकर सुरक्षा और अनारक्षित टिकट तक। साफ-सफाई से लेकर किराये को स्थिर रखने तक। लोग 5 मिनट में टिकट ले सकेंगे, बिना स्टेशन जाकर लाइन में लगे। यात्री सुविधाओं को बढ़ाने के लिए बजट की राशि में 67% की बढ़ोतरी है। ये अच्छी बात है।
सवाल: ऐसा पहली बार हुआ है कि रेल बजट के दौरान किसी नए ट्रेन की घोषणा नहीं हुई। कैसे देखते हैं इस फैसले को?
संजीव शिवेश: नई ट्रेनों की घोषणा तो कभी भी हो सकती है। लेकिन पिछले सालों में जो 550 नई ट्रेनें चलाई गई हैं, रेलवे को उनसे घाटा हो रहा है। बिना सुविधाओं के विकास के नई ट्रेनों को न चलाने का फैसला अच्छा फैसला है।
सवाल: बजट में दोगुने धन के खर्च करने की बात हुई है। कहां से आएगा इतना धन?
संजीव शिवेश: ये सवाल बेचैन करने वाला है। दरअसल, इस पूरे मामले पर रेलमंत्री सुरेश प्रभु से चूक हुई है। अगर वो पीपीपी मॉडल से धन पाने की उम्मीद में हैं, तो पिछले 15 सालों का इतिहास जान लें। 15 सालों में जब अबतक 1000 करोड़ का भी निवेश नहीं आ पाया, तो वे धन कैसे जुटाएंगे? पैसा न जुटने की बड़ी वजह ये रही है क्योंकि रेल मंत्रालय इनवेस्टर के साथ फ्रेंडली तरीके से काम नहीं करता। इसमें सुधार लाना होगा।
सवाल: सुरेश प्रभु के प्लान में रेलवे को विज्ञापनों से कमाई का भरोसा है। कितना सफल हो सकता है ये तरीका?
संजीव शिवेश: सुरेश प्रभु कुछ नया नहीं कर रहे। विज्ञापन से पैसा इकट्ठा करने की काफी संभावनाएं हैं, लेकिन रेलवे इसमें विफल रहा। विज्ञापनों से कमाई की कोशिश हो चुकी है। कुछ सालों पहले बेंगलुरू में कुरकुरे एक्सप्रेस चलाकर इसकी कोशिश की जा चुकी है। किन्हीं कारणों से ये बंद हो गई। अब पड़ोस के गुड़गांव में देखें, तो यहां रैपिड मेट्रो में माइक्रोमैक्स और वोडाफोन के नाम पर स्टेशन हैं। स्टेशन और ट्रेन ब्रांडिंग का अच्छा स्कोप है। इससे काफी पैसे आ सकते हैं। इसे करना चाहिए। 10-15 हजार करोड़ इसके जरिए कमाये जा सकते हैं वर्ना रेलवे का इतना खर्चा उसे और भी बदतर हालत में पहुंचा देगा।
सवाल: सफाई कर्मियों के लिए रेलवे में ही अलग विभाग?
संजीव शिवेश: हां, ये बेहतर प्रयास है। इसे पहले ही हो जाना चाहिए था। ये पूरी तरह से मॉल कल्चर की तरह होगा। आप मॉल्स में जाते हैं, बेहतर साफ सफाई मिलती है। मन खुश हो जाता है। रेलवे को भी ऐसा ही करना चाहिए।
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Tags: Rail Budget 2015, Suresh prabhu
FIRST PUBLISHED : February 26, 2015, 12:28 IST