25 मार्च को गृहमंत्री अमित शाह नक्सलियों के गढ़ जगदलपुर में रहेंगे. (फाइल फोटो)
छत्तीसगढ़: केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 25 मार्च को नक्सलियों के गढ़ रहे जगदलपुर में CRPF जवानों की हौसला अफजाई करेंगे. यहां CRPF के 84वें स्थापना दिवस का आयोजन होगा जहां गृहमंत्री नक्सल विरोधी अभियान का जायजा भी लेंगे. ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश के गृहमंत्री नक्सल प्रभावित इस इलाके में रात बिताएंगे और CRPF के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में शिरकत करेंगे. गृहमंत्री अमित शाह के इस दौरे से देशवासियों को नक्सलियों के उन इलाकों की झलक देखने को मिलेगी जहां कुछ महीनों पहले तक नक्सलियों की तूती बोलती थी और इस इलाके को इन लोगों ने स्वतंत्र इलाका घोषित कर रखा था. लेकिन अब इन इलाकों से नक्सलियों का असर पूरी तरीके से खत्म हो गया है और गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर जो नक्सल विरोधी ऑपरेशन चलाया जा रहा है उससे सड़के बनाई जा रही हैं, उद्योग लगाए जा रहे हैं जिससे यहां पर विकास का रास्ता खुला है.
कभी बस्तर रीजन नक्सलियों का गढ़ था जिसके चार प्रमुख केन्द्र थे- बीजापुर, सुकमा, दांतेवाड़ा और बस्तर. जगदलपुर इस रीजन का हेडक्वार्टर था. नक्सलियों की प्रमुख समीति दंडकारण्य जोनल समीति भी इसी बस्तर रीजन में सक्रिय था और हिडमा समेत नक्सलियों के शीर्ष नेता अब भी यहां मौजूद हैं. लेकिन जहां तक उनके प्रभाव की बात है तो आज की तारीख में ये पूरी तरीके से खत्म होता दिखाई दे रहा है. करणपुर सीआरपीएफ कोबरा हेडक्वार्टर जहां गृहमंत्री अमित शाह जवानों को संबोधित करेंगे वो इस बात का गवाह है कि हमारे देश के जवानों के बलिदान से देश के सबसे बड़ी आंतरिक फोर्स अपना रीजनल हेडक्वार्टर स्थापित करने में कामयाब हो गई है. इसकी वजह से बड़ी तादात में CRPF अंदरूनी इलाकों में अपने फॉरवार्ड बेस यानि नए कैंप भी स्थापित कर रही है, जहां कुछ महीनों पहले ही नक्सली प्रमुखता से अपनी गतिविधियां चलाते थे. पिछले डेढ़ साल की बात करें तो इस अवधि में सीआरपीएफ ने अपने 18 फॉरवार्ड बेस स्थापित किए हैं जहां आजादी के बाद पहली बार देश की कोई फोर्स घुस पाई थी.
नक्सल गतिविधियों पर आकड़े
आंकड़ों की बात करें तो कुछ महीनों पहले राज्यसभा में गृह मंत्रालय ने एक अहम जवाब नक्सल गतिविधियों पर दिया था. जिसके मुताबिक 2010 से लेकर अब तक 77 फीसदी नक्सल घटनाओं में कमी आई है. इस दौरान सिविलियन और सुरक्षाबल को हुए नुकसान में 85 फीसदी कमी आई है. 12 साल पहले 400 से ज्यादा थाने नक्सल प्रभावित थे अब सिर्फ 191 थाने हैं जो नक्सल प्रभावित हैं. सीआरपीएफ पूर्व डीजी दुर्गा प्रसाद के मुताबिक पिछले कुछ सालों में फोर्स से सबसे पहले स्थानीय जनता का भरोसा जीता है फिर जो नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास कार्य चल रहे हैं उन्हे सुरक्षा दी है साथ ही नक्सल विरोधी ऑपरेशन में आधुनिक हथियारों के साथ और पैनापन लाया गया है.
नक्सल प्रभावित इलाकों में चलाए जा रहे अभियान का नतीजा
नक्सल प्रभावित इलाकों में चलाए जा रहे अभियान का ही नतीजा है कि 4 दशकों मे पहली बार 2022 में नागरिकों और सुरक्षाबलों की मृत्यु की संख्या 100 से कम रह गई है. नक्सल विरोधी अभियान जुड़े रणनीतिकारों का मानना है कि इस बाबत मोदी सरकार के तीन प्रमुख स्तम्भ हैं- उग्रवादी हिंसा पर उतनी ही कड़ा प्रहार और उसके साथ लगाम कसना, केंद्र-राज्य के बीच बेहतर समन्वय और विकास से जन-भागीदारी के माध्यम से वामपंथी उग्रवाद के प्रति समर्थन खत्म करना. पिछले 9 सालों में सरकार ने इस दिशा में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है. वामपंथी उग्रवादी घटनाओं में जान गंवाने वाले नागरिकों तथा सुरक्षाकर्मियों की संख्या वर्ष 2010 के सर्वाधिक स्तर 1005 से 90% घटकर 2022 में 98 रह गई, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों की संख्या 90 से घटकर 45 रह गई है.
सुरक्षाबलों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में अपना क्या प्रभाव कायम किया?
वर्ष 2019 से अबतक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित इलाकों में 175 नए कैंप स्थापित कर सुरक्षा वैक्यूम को कम करने और टॉप लीडरशिप को निष्क्रिय करके वामपंथी उग्रवाद की रीढ़ तोड़ने में सुरक्षाबलों को बहुत बड़ी कामयाबी मिली है. इन प्रयासों के परिणामस्वरूप बूढ़ा पहाड़ और चकरबंदा जैसे दुर्गम क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ सफलता मिली है और बिहार, झारखण्ड तथा उड़ीसा को वामपंथी उग्रवाद से लगभग मुक्त करा लिया गया है. वामपंथी उग्रवाद-प्रभावित क्षेत्रों में ऑपरेशन में मदद और जवानों की जान बचाने के लिए बीएसएफ एयरविंग को सशक्त किया गया है, जिसके लिए पिछले एक वर्ष में नए पायलट्स और इंजिनियर्स की नियुक्ति हुई है. गृह मंत्रालय वामपंथी उग्रवादियों की वित्तीय चोकिंग (Financial Choking) कर इनके इकोसिस्टम को पूरी तरह ध्वस्त करने का काम कर रहा है. मतलब साफ है कि इन महत्वपूर्ण कदम के बाद गृहमंत्री की नक्सलियों के इस गढ़ में मौजूदगी यही संदेश देने की कोशिश है कि अब बस्तर विकास का माडल बन रहा है.
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