मोहम्मद जाविद 30000 किमी की यात्रा पर हैं (image- news18)
11 जनवरी 2011. एमबीए कर रहा एक स्टूडेंट अचानक रोड एक्सीडेंट में घायल हो जाता है. उसे गंभीर चोट आती है. आसपास मौजूद लोग उसे लेकर अस्पताल पहुंचते हैं. वहां इमरजेंसी में उसका इलाज होता है. कुछ महीने तक वह भर्ती रहता है. डॉक्टर उससे कहते हैं, ‘जान तो बच गई, लेकिन अब कभी भी आप अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे.’ वह शॉक्ड था. उसके सपने एक झटके में टूट गए थे. लेकिन अपने दृढ़ निश्चय, जज़्बे और मजबूत इच्छाशक्ति की वजह से वह स्टूडेंड आज खुद कार चलाकर देश भर की यात्रा पर निकला है. उसे देशभर में 30 हजार किमी ट्रैवल करना है.
स्टूडेंट का नाम मोहम्मद जाविद है. वह खुद कार ड्राइव करके देशभर में स्पाइनल कॉर्ड इंजरी और रोड एक्सीडेंट में ‘फर्स्ट रेस्पोंडर’ मतलब घायल तक पहुंचने वाले पहले शख्स को किन सावधानियों को अपनाना चाहिए, इसे लेकर एक जागरूकता अभियान चला रहे हैं. वह 28 राज्य और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में जाएंगे. 30,000 किमी की यात्रा में वह अब तक 14,000 किमी की यात्रा कर चुके हैं.
न्यूज-18 से बात करते हुए जाविद कहते हैं, अस्पताल के बेड पर लेटे हुए मैंने डॉक्टर से तमाम उम्मीदों के साथ पूछा, ‘मैं कब तक ठीक हो जाऊंगा.’ डॉक्टर ने जवाब दिया, ‘आपकी जान तो बच गई है, लेकिन अब आप अपने पैरों पर कभी नहीं चल पाएंगे.’ एक नौजवान युवक जो अभी तक अपनी जिंदगी को एक अलग रवानी में आगे बढ़ा रहा था, उसके लिए यह शॉक से कम नहीं था.
उसने डॉक्टर से पूछा, ‘कुछ हो सकता है’? डॉक्टर का जवाब था, ‘हो सकता था. अगर आपको बचाने के लिए पहुंचे लोग कुछ सावधानी बरतते हुए आपको एंबुलेंस में और फिर स्ट्रेचर में सलीके से लिटा देते तो. लेकिन, उन्हें जानकारी नहीं थी कि एक घायल को किस तरह से उठाया जाता है, इस वजह से आपके स्पाइनल कॉर्ड में इंजरी बढ़ी और अब आप कभी नहीं चल सकेंगे.’
एमबीए कर रहे जाविद के पास शब्द नहीं थे. तमाम दिन और रात वह खुद के बारे में सोचते रहे. इसके बाद उन्हें खयाल आया कि वह अकेले ऐसे नहीं हैं. सैकड़ों-हजारों लोग ऐसे होंगे. वह भी क्यों. क्योंकि जो शख्स आपकी जान बचाने के लिए एक मसीहा की तरह सब कुछ कर रहा होता है, उसे पता नहीं होता है कि घायल को कैसे उठाना चाहिए. एक्सीडेंट के बाद किस तरह से उसकी मदद करनी चाहिए.
जाविद ने तय किया कि वह देश में इसे लेकर जागरूकता फैलाएंगे. वह लोगों को बताएंगे कि कैसे वह रोड एक्सीडेंट में घायलों की मदद करें. उन्हें किस तरह से रेस्क्यू करें. उठाना कैसे है. तुरंत पानी नहीं देना है. स्ट्रेचर और एंबुलेंस पर कैसे लेटाना है. इन सबको लेकर वह देशभर में जागरूकता फैलाएंगे.
जाविद इस अभियान में लग गए. एक्सीडेंट के करीब 10 साल बाद उन्होंने एक कार तैयार कराई. इसमें वह ब्रेक, एक्सीलेटर और क्लच को हाथों से ही संभालते हैं. इसके बाद उन्होंने देशभर में ट्रैवल करते हुए लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य बनाया. इसमें उन्हें उनके छोटे भाई और दोस्त का साथ मिला, जो जॉब छोड़कर उनके साथ इस कैंपेन में लग गए हैं. जाविद ने इस कैंपेन का नाम MJ on Wheels रखा है.
वह कहते हैं, अपनी पूरी यात्रा में मैं देख रहा हूं कि हम भारतीय बहुत ही ज्यादा दया और करुणा से भरे हुए हैं. किसी की भी मदद के लिए तुरंत आगे आ जाते हैं. लेकिन, जागरूकता के अभाव में और घायल को देखकर घबरा जाने के कारण हम ये नहीं समझ पाते हैं कि घायल को बचाने के दौरान ही हम अपनी कुछ लापरवाहियों से उसका और नुकसान कर देते हैं. मरीज स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का भी शिकार हो जाता है. ऐसे में जाविद लोगों को इसे लेकर जागरूक कर रहे हैं और बता रहे हैं कि घायल को किस तरह मदद पहुंचानी चाहिए.
अपनी यात्रा में जाविद रात को किसी होटल में ठहरते हैं. उनका अनुभव रहा है कि अभी देशभर में दिव्यांगों के अनुरूप होटल्स तैयार नहीं हुए हैं. उनके लिए कोई स्पेशल फैसिलिटी नहीं होती हैं. वह रात में रुकने के बाद अगले दिन एक बार फिर अपनी यात्रा पर निकल जाते हैं.
उनका कहना है कि मैं जहां भी जाता हूं, लोग बहुत गर्मजोशी से स्वागत करते हैं. वे पूरा सहयोग कर रहे हैं. इस दौरान वह लोगों को बताते हैं कि अगर आप स्पाइनल कॉर्ड विक्टिम की मदद करने के तरीके से वाकिफ नहीं हैं तो एंबुलेंस को बुलाइए और उसके अनुभवी कर्मचारी से ही मरीज को एंबुलेंस में बैठाइए या लेटाइए.
वह अपनी इस यात्रा को अपने मेंटॉर वैद्यनाथन को समर्पित करते हैं. उनका मानना है कि अगर वे नहीं होते तो उनमें इतना विश्वास ही नहीं आता कि वह अपनी जिंदगी फिर से शुरू करें और ऐसी यात्रा कर सकें. लेकिन, दुर्भाग्य से कोविड की दूसरी लहर में उनकी मृत्यु हो गई. अब जाविद का लक्ष्य है कि वह अपनी तरह दुनियाभर में पीड़ित मरीजों के लिए एक प्रेरणा बनें, जिससे वे अपनी आगे की जिंदगी बेहतर तरीके से जी सकें.
बता दें कि देश में करीब 15 लाख लोग स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का शिकार हैं. इसमें हर साल करीब 20 हजार मरीजों की वृद्धि हो रही है. घायलों की औसत उम्र 31 साल है. अब तक 1 लाख 20 हजार से ज्यादा मरीजों की मौत हो चुकी है.
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