सभी धर्मों में तलाक संबंधी एक कानून बनाने की याचिका का AIMPLB ने SC में किया विरोध

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है जनहित याचिका. (File Pic)
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी धर्मों में मेंटेनेंस यानी रखरखाव और एलिमोनी यानी निर्वाह धन के लिए एक ही कानून होना चाहिए.
- News18Hindi
- Last Updated: February 22, 2021, 2:59 PM IST
नई दिल्ली. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर उस याचिका का विरोध किया है, जिसमें सभी धर्मों में तलाक (Divorce) संबंधी एकसमान कानून बनाने के लिए मांग की गई है. एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में खुद को पक्षकार बनाने की भी मांग की है. सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी धर्मों में मेंटेनेंस यानी रखरखाव और एलिमोनी यानी निर्वाह धन के लिए एक ही कानून होना चाहिए. तलाक की स्थिति में पति को अपनी पत्नी को मेंटेनेंस और एलिमोनी के नाम पर पैसा देना होता है जिससे पत्नी अपना जीवनयापन करती है.
फिलहाल हर धर्म में मेंटेनेंस और एलिमोनी के लिए अलग नियम और कानून हैं, जो कि पर्सनल लॉ पर आधारित है. लेकिन अब एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि एक देश में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होना चाहिए. अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसपर कोर्ट ने सरकार से उनकी राय मांगी है.
अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी इस मामले में पक्षकार बनना चाहता है. बोर्ड ने अपनी अर्जी में कहा है कि पर्सनल लॉ का सम्मान होना चाहिए. हिंदुओं में भी अलग अलग नियम कानून से विवाह और तलाक होते हैं. बोर्ड ने अपनी याचिका में कहा है कि मौजूदा याचिका लोगों का पर्सनल लॉ में दखल है. दरअसल हर धर्म की महिला को कानून में इस बात का प्रावधान है कि वो पर्सनल लॉ से अलग हटकर मेंटेनेंस और एलिमोनी की मांग रखे.
ये महिला के ऊपर निर्भर करता है कि वो पर्सनल लॉ के तहत कार्रवाई चाहती है या आम कानून के तहत. इसलिए बोर्ड ने अपनी अर्जी में कहा है कि कोई एकसमान कानून बनाने की जरूरत नहीं है.
फिलहाल हर धर्म में मेंटेनेंस और एलिमोनी के लिए अलग नियम और कानून हैं, जो कि पर्सनल लॉ पर आधारित है. लेकिन अब एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि एक देश में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून होना चाहिए. अभी ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसपर कोर्ट ने सरकार से उनकी राय मांगी है.
अब ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी इस मामले में पक्षकार बनना चाहता है. बोर्ड ने अपनी अर्जी में कहा है कि पर्सनल लॉ का सम्मान होना चाहिए. हिंदुओं में भी अलग अलग नियम कानून से विवाह और तलाक होते हैं. बोर्ड ने अपनी याचिका में कहा है कि मौजूदा याचिका लोगों का पर्सनल लॉ में दखल है. दरअसल हर धर्म की महिला को कानून में इस बात का प्रावधान है कि वो पर्सनल लॉ से अलग हटकर मेंटेनेंस और एलिमोनी की मांग रखे.