सपा के मौजूदा समय में 17 सदस्य हैं जिसमें से 6 जुलाई तक बारह सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा. (फ़ाइल फोटो)
ममता त्रिपाठी
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की स्थापना से लेकर उसे सत्ता तक पहुंचाने में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का नेतृत्त्व और जमीनी संघर्ष जिम्मेदार माना जाता रहा है. इसीलिए उन्हें जमीन से जुड़ा नेता भी कहा जाता है. लेकिन अब उनके बाद सपा की कमान संभाल रहे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के बारे में इससे ठीक उलट बात कही जा रही है. वह ये कि अखिलेश जमीन पर उतरकर लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं.
सपा के नेता अनौपचारिक बातचीत के दौरान बताते हैं कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से पार्टी के कई विधायक नाखुश हैं. वे अपने बेहतर राजनीतिक भविष्य की राह तलाश रहे हैं. यही नहीं, चुनाव के वक्त सपा में आए कई नेता भी अब वापसी की राह तलाश रहे हैं. इस किस्म के नेताओं के लिए अभी अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोल चुके उनके चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) का ठिकाना एक बड़ा आसरा बन सकता है. इसीलिए कई नेताओं के बगावती सुर भी सुनाई देने लगे हैं. मसलन- सपा सांसद शफीक-उर-रहमान बर्क खुलकर कह चुके हैं, ‘सपा अपने लोगों का ख्याल नहीं रख पा रही. जमीन पर उतरने के बजाए प्रेस कॉन्फ्रेंस करके लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती.’ उनका निशाना जाहिर तौर पर अखिलेश यादव की तरफ ही था.
इसी तरह, सपा विधायक शहजिल इस्लाम के पेट्रोल पंप पर योगी सरकार का बुलडोजर चलने से उनके समर्थकों में भी काफी नाराजगी है. और यह नाराजगी सरकार से ज्यादा सपा नेतृत्त्व से है. विधायक समर्थकों को कहना है, ‘पार्टी की वजह से हमें ये सब झेलना पड़ रहा है.’ उधर, रामपुर के दिग्गज सपाई आजम खां और उनके समर्थक भी अंखिलेश से असंतुष्ट बताए जाते हैं. आजम पिछले ढाई साल से जेल में हैं. इस दौरान सिर्फ एक बार अखिलेश उनसे मिलने गए. इसीलिए अब आजम का परिवार भी मानने लगा है कि पार्टी उनका साथ नहीं दे रही है.
यही कारण है कि प्रदेश की राजनीति के जानकार इतना तक कहने लगे हैं कि भविष्य के लिहाज से अखिलेश की राहें आसान नहीं होने वाली हैं. इसमें सबसे बड़ा रोड़ा तो ‘उनके अपने’ ही बन सकते हैं.
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