किसान आंदोलन: कनाडा की वोटबैंक पॉलिटिक्स के नाम पूर्व राजनयिकों का ओपन लेटर

पूर्व उच्चायुक्त ने अपने पत्र में लिखा है कि खालिस्तानियों और पाकिस्तानी राजनयिकों के बीच पर्दे के पीछे सहयोग और साझेदारी देखने को मिली है. (फोटो साभार-ANI)
कनाडा में भारत के पूर्व उच्चायुक्त विष्णु प्रकाश ने ओपन लेटर लिखकर ओट्टावा को एक संप्रभु देश के आंतरिक मसले में हस्तक्षेप नहीं करने की नसीहत दी है, साथ ही चेताया है कि इससे दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों पर दूरगामी असर पड़ेगा.
- News18Hindi
- Last Updated: December 14, 2020, 6:45 PM IST
नई दिल्ली. कृषि कानून (Farm Law) के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर (Delhi Border) पर जारी किसान आंदोलन पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की टिप्पणी के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कनाडा (Canada) को दूसरे देशों के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करने की नसीहत दी. लेकिन, कनाडाई प्रधानमंत्री के बयान ने केंद्र के साथ भारतीय प्रशासनिक जगत में भी क्षोभ का माहौल पैदा किया है. जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) के बयान के बाद भारतीय राजनयिकों के एक समूह ने कनाडा में वोट बैंक पॉलिटिक्स को लेकर एक खुला पत्र (Open Letter) लिखा है. इस पत्र को कनाडा में भारत के पूर्व उच्चायुक्त विष्णु प्रकाश (Vishnu Prakash, IFS) ने लिखा है, जबकि दो दर्जन के करीब पूर्व राजनयिकों ने पत्र पर हस्ताक्षर कर इसे समर्थन दिया है.
पत्र के मुताबिक कनाडा में 20 लाख के करीब प्रवासी भारतीय रहते हैं और ये कनाडा की जनसंख्या का 5 प्रतिशत है, जबकि अप्रवासी भारतीयों में 7 लाख के करीब सिख समुदाय के लोग हैं. पूर्व उच्चायुक्त विष्णु प्रकाश ने अपने पत्र में कहा है कि कनाडा के प्रमुख गुरुद्वारों पर खालिस्तानी तत्वों का नियंत्रण है और इस तरह उन्हें बड़ी मात्रा में फंड मिलता है, जो कि कथित तौर पर पॉलिटिकल पार्टियों खासतौर पर लिबरल्स के चुनावी कैंपेन के लिए भी दिया जाता है. इस शह की एवज में खालिस्तानी तत्व कनाडा में नियमित तौर पर प्रदर्शन और रैलियां निकालते हैं, जहां भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं और आतंकियों के प्रशस्तिगान होते हैं. कनाडा के कुछ ही राजनेताओं को ऐसे कार्यक्रमों में जाने से परहेज हैं, जोकि अलगाववादियों के लिए ऑक्सीजन रूपी पब्लिसिटी का काम करते हैं.
खालिस्तानी कार्यक्रमों का हिस्सा बने पाकिस्तान के राजनयिक: पूर्व उच्चायुक्त
पूर्व उच्चायुक्त ने अपने पत्र में लिखा है कि खालिस्तानियों और पाकिस्तानी राजनयिकों के बीच पर्दे के पीछे सहयोग और साझेदारी देखने को मिली है. पाकिस्तान के कुछ राजनयिक इन खालिस्तानी कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं और कनाडाई प्रशासन सब देखते हुए भी अपनी आंखें बंद रखता है. उन्होंने कहा कि कनाडा को आतंकी खतरे पर आधारित 2018 की पब्लिक रिपोर्ट में कई जगहों पर चरमपंथी खालिस्तानियों और सिख उग्रवादियों का संदर्भ आता है. हालांकि कथित तौर पर खालिस्तानियों के दबाव और धमकियों के चलते अप्रत्याशित रूप से सभी संदर्भों को रिपोर्ट से हटवा दिया गया.पत्र में कहा गया है कि तथ्य ये है कि ना तो कनाडा और ना ही किसी और अन्य देश ने रूढ़िवादियों, हिंसक चरमपंथ या आतंकवाद की किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आलोचना की हो. विष्णु प्रकाश ने पत्र में दो टूक लिखा है कि पिछले हफ्ते गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि हम सभी अपने दोस्तों और उनके परिजनों को लेकर चिंतित हैं. जस्टिन ट्रूडो का बयान उनके समर्थकों के लिए लुभावना हो सकता है, लेकिन भारतीय संदर्भ में जमीनी हकीकत से कोसों दूर है.
दोहरी नीति अपनाती है कनाडा सरकार
''विडंबना ये है कि कनाडा विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत के न्यूनतम समर्थन मूल्य के कटु आलोचकों में से एक है, लेकिन भारतीय किसानों के प्रति अचानक जाग उठी उसकी चिंता सवाल खड़े करती है. कनाडा को ये नहीं दिखा कि भारत सरकार अपने आंदोलनकारी किसानों से मंत्री स्तर पर बातचीत कर रही है और मुद्दे का समाधान ढूंढ़ने में लगी है. ओट्टावा ने इसे पूरी तरह इग्नोर किया.'' पत्र के मुताबिक, ये कनाडा सरकार की दोहरी नीति है कि वो खुद अपने मूलनिवासियों के साथ किए गए समझौते को भूल जाती है. प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के खिलाफ उनके प्रदर्शन को कुचल दिया जाता है. कनाडा के नामी राष्ट्रीय समाचार पत्र के मुताबिक जस्टिन ट्रूडो सरकार ने इस मसले पर सलाह मशविरा करना भी उचित नहीं समझा.
ये भी पढ़ें: सरकार बातचीत के लिए तैयार, किसान संगठनों के प्रस्ताव का इंतजार: नरेंद्र तोमर
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दूसरी ओर दिल्ली बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन की बात करें तो कनाडा के प्रधानमंत्री की टिप्पणी से उत्साहित किसान संगठनों ने जिद ठान ली है कि या तो केंद्र सरकार अपना कानून वापस ले या फिर प्रदर्शन जारी रहेगा. एक संप्रभु देश के आंतरिक मसलों में हस्तक्षेप कर लिबरल पार्टी के एक धड़े को खुश रखने के लिए कनाडाई प्रधानमंत्री का टिप्पणी करना कतई बर्दाश्त करने योग्य नहीं है और इस तरह की अव्यावहारिक टिप्पणियों से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों पर दूरगामी असर पड़ेगा.

पत्र के आखिर में कहा गया है कि, भारत, कनाडा के साथ बेहतर रिश्तों का पैरोकार है. लेकिन, कोई भी रिश्ता एकतरफा नहीं हो सकता है. ना ही कोई देश खासतौर पर भारत अपने राष्ट्रीय हित और क्षेत्रीय संप्रभुता को लेकर पूर्वाग्रही भी नहीं हो सकता. बाकी सब कुछ कनाडा की जनता पर निर्भर करता है.
पत्र के मुताबिक कनाडा में 20 लाख के करीब प्रवासी भारतीय रहते हैं और ये कनाडा की जनसंख्या का 5 प्रतिशत है, जबकि अप्रवासी भारतीयों में 7 लाख के करीब सिख समुदाय के लोग हैं. पूर्व उच्चायुक्त विष्णु प्रकाश ने अपने पत्र में कहा है कि कनाडा के प्रमुख गुरुद्वारों पर खालिस्तानी तत्वों का नियंत्रण है और इस तरह उन्हें बड़ी मात्रा में फंड मिलता है, जो कि कथित तौर पर पॉलिटिकल पार्टियों खासतौर पर लिबरल्स के चुनावी कैंपेन के लिए भी दिया जाता है. इस शह की एवज में खालिस्तानी तत्व कनाडा में नियमित तौर पर प्रदर्शन और रैलियां निकालते हैं, जहां भारत विरोधी नारे लगाए जाते हैं और आतंकियों के प्रशस्तिगान होते हैं. कनाडा के कुछ ही राजनेताओं को ऐसे कार्यक्रमों में जाने से परहेज हैं, जोकि अलगाववादियों के लिए ऑक्सीजन रूपी पब्लिसिटी का काम करते हैं.
खालिस्तानी कार्यक्रमों का हिस्सा बने पाकिस्तान के राजनयिक: पूर्व उच्चायुक्त
पूर्व उच्चायुक्त ने अपने पत्र में लिखा है कि खालिस्तानियों और पाकिस्तानी राजनयिकों के बीच पर्दे के पीछे सहयोग और साझेदारी देखने को मिली है. पाकिस्तान के कुछ राजनयिक इन खालिस्तानी कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं और कनाडाई प्रशासन सब देखते हुए भी अपनी आंखें बंद रखता है. उन्होंने कहा कि कनाडा को आतंकी खतरे पर आधारित 2018 की पब्लिक रिपोर्ट में कई जगहों पर चरमपंथी खालिस्तानियों और सिख उग्रवादियों का संदर्भ आता है. हालांकि कथित तौर पर खालिस्तानियों के दबाव और धमकियों के चलते अप्रत्याशित रूप से सभी संदर्भों को रिपोर्ट से हटवा दिया गया.पत्र में कहा गया है कि तथ्य ये है कि ना तो कनाडा और ना ही किसी और अन्य देश ने रूढ़िवादियों, हिंसक चरमपंथ या आतंकवाद की किसी भी अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत आलोचना की हो. विष्णु प्रकाश ने पत्र में दो टूक लिखा है कि पिछले हफ्ते गुरु नानक देव जी के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने किसान आंदोलन को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि हम सभी अपने दोस्तों और उनके परिजनों को लेकर चिंतित हैं. जस्टिन ट्रूडो का बयान उनके समर्थकों के लिए लुभावना हो सकता है, लेकिन भारतीय संदर्भ में जमीनी हकीकत से कोसों दूर है.
दोहरी नीति अपनाती है कनाडा सरकार
''विडंबना ये है कि कनाडा विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत के न्यूनतम समर्थन मूल्य के कटु आलोचकों में से एक है, लेकिन भारतीय किसानों के प्रति अचानक जाग उठी उसकी चिंता सवाल खड़े करती है. कनाडा को ये नहीं दिखा कि भारत सरकार अपने आंदोलनकारी किसानों से मंत्री स्तर पर बातचीत कर रही है और मुद्दे का समाधान ढूंढ़ने में लगी है. ओट्टावा ने इसे पूरी तरह इग्नोर किया.'' पत्र के मुताबिक, ये कनाडा सरकार की दोहरी नीति है कि वो खुद अपने मूलनिवासियों के साथ किए गए समझौते को भूल जाती है. प्राकृतिक गैस पाइपलाइन के खिलाफ उनके प्रदर्शन को कुचल दिया जाता है. कनाडा के नामी राष्ट्रीय समाचार पत्र के मुताबिक जस्टिन ट्रूडो सरकार ने इस मसले पर सलाह मशविरा करना भी उचित नहीं समझा.
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दूसरी ओर दिल्ली बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन की बात करें तो कनाडा के प्रधानमंत्री की टिप्पणी से उत्साहित किसान संगठनों ने जिद ठान ली है कि या तो केंद्र सरकार अपना कानून वापस ले या फिर प्रदर्शन जारी रहेगा. एक संप्रभु देश के आंतरिक मसलों में हस्तक्षेप कर लिबरल पार्टी के एक धड़े को खुश रखने के लिए कनाडाई प्रधानमंत्री का टिप्पणी करना कतई बर्दाश्त करने योग्य नहीं है और इस तरह की अव्यावहारिक टिप्पणियों से दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों पर दूरगामी असर पड़ेगा.
पत्र के आखिर में कहा गया है कि, भारत, कनाडा के साथ बेहतर रिश्तों का पैरोकार है. लेकिन, कोई भी रिश्ता एकतरफा नहीं हो सकता है. ना ही कोई देश खासतौर पर भारत अपने राष्ट्रीय हित और क्षेत्रीय संप्रभुता को लेकर पूर्वाग्रही भी नहीं हो सकता. बाकी सब कुछ कनाडा की जनता पर निर्भर करता है.