ANALYSIS: वंशवाद पर प्रधानमंत्री का हमला, मगर इस चुनाव में परिवारवाद से मिल रहा है BJP को फायदा

पीएम मोदी (File Photo)
अलग-अलग राज्यों और इलाके के राजनीतिक समीकरण परिवारवाद की इस राजनीति में बीजेपी का फायदा दिखा रहे हैं, क्योंकि पहले दौर का नामांकन शुरू हो चुका है और इन परिवारों ने अपने झगड़े अब तक नहीं सुलझाए हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: March 20, 2019, 10:40 AM IST
देश की राजनीति में जितनी तेजी से परिवारवाद बढ़ रहा है, उससे ज्यादा इन परिवारों में झगड़ा भी बढ़ता जा रहा है. दक्षिण में करुणानिधि के परिवार से लेकर महाराष्ट्र में पवार और ठाकरे परिवार, उत्तर प्रदेश में यादव परिवार और बिहार में यादव परिवार में इन चुनावों में झगड़ा खुलकर सामने आ गया है. इन सबसे बीजेपी को फायदा मिलता दिख रहा है. बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के ‘घर की लड़ाई’ को इस बार बड़ी आसानी से सुलझा लिया है.
दक्षिण से लेकर उत्तर तक हर जगह घर में रार
तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार में झगड़ा अभी भी कायम है. करुणानिधि के दोनों बेटों एमके अलागिरि और एमके स्टालिन में झगड़ा तो करुणानिधि के जीवित रहते ही शुरू हो गया था, लेकिन स्टालिन के हाथ में पार्टी की बागडोर आने के बाद अलागिरि अलग-थलग पड़ गए हैं. अलागिरि इन चुनावों में किसके साथ जाएंगे, इस बारे में अभी फैसला नहीं किया है. हालांकि बीजेपी से उनकी नजदीकी की खबरें आती रहती हैं. करुणानिधि परिवार के इस झगड़े का फायदा ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड्गम (एआईएडीएमके) को मिलता दिख रहा है. बीजेपी तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ है. इस तरह से ये कहना गलत नहीं होगा कि यहां परिवार के झगड़े का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है और अगर अलागिरि बीजेपी को समर्थन करने का ऐलान कर देते हैं तो ये फायदा और बड़ा हो जाएगा.
यूपी में भी ‘घर की लड़ाई’ बीजेपी के लिए बनी फायदे का सौदाउत्तर प्रदेश में सबसे ताकतवर यादव परिवार में विधानसभा चुनाव के समय शुरू हुआ झगड़ा फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है. वर्षों तक पार्टी की पहचान समझे जाने वाले शिवपाल यादव ने भले ही समाजवादी पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बना ली हो, लेकिन परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने पोते तेज प्रताप सिंह यादव की राजनीतिक हैसियत बचाने में लगे हैं. सूत्रों की माने तो झगड़ा इतना बढ़ गया है कि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की सीट पर अब तक फैसला नहीं हो पाया. जिस आजमगढ़ सीट पर अखिलेश के चुनाव लड़ने की बात कही जा रही थी, वहां मुलायम सिंह ने अपने पोते तेज प्रताप के लिए दावा ठोंक दिया है.
ये भी पढ़ें- फिरोजाबाद में शिवपाल बनाम अक्षय: चाचा-भतीजे की चुनावी जंग में कौन पड़ेगा भारी?
इस झगड़े में फायद भी बीजेपी को होता दिख रहा है क्योंकि जिस यादव वोट बैंक के बल पर अखिलेश बीजेपी को चुनौती देने का दम भर रहे हैं, उस यादव वोट बैंक पर मुलायम परिवार के हर झगड़े का असर पड़ता है. खासकर इटावा और उसके आस-पास के इलाकों में शिवपाल यादव का खासा असर है. ऐसे में अगर शिवपाल समाजवादी पार्टी का परंपारगत वोट काटते हैं तो इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा.

बिहार में भी फायदे में बीजेपी
बिहार में भी लालू यादव परिवार का झगड़ा कई बार सड़क पर आ चुका है. जिस तरह चुनाव के करीब तीन महीना पहले से परिवार के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव घर से बाहर हैं, उसका असर टिकट बंटवारे और संगठन पर दिख रहा है. तेजप्रताप के तलाक के बहाने पार्टी के नेता कई बार एक दूसरे पर आरोप लगा चुके हैं. बिहार में गठबंधन के सबसे बड़े चेहरे तेजस्वी जिस तरह पारिवारिक विवाद में उलझे हैं. इसका असर चुनावों पर जरूर पड़ेगा. साफ है बिहार में मुकाबला एनडीए बनाम यूपीए है. ऐसे में जब यूपीए के सबसे बड़े चेहरे पर परिवार को लेकर आरोप लगेंगे तो फायदा एनडीए को ही होगा.

महाराष्ट्र में भी एनडीए फायदे में
महाराष्ट्र में शरद पवार के परिवार का आपसी विवाद अखबारों की सुर्खियां बटोर रहा है. खबरों के माने तो शरद पवार के भजीते अजीत पवार अपने बेटे को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे और शरद पवार के चुनाव न लड़ने की घोषणा के पीछे पारिवारिक कारण था क्योंकि परिवारवाद के विरोध में बनी इस पार्टी के इतने नेता एक साथ चुनाव में मैदान में आ जाएं, शरद पवार ये कभी नहीं चाहेंगे. दूसरी ओर ठाकरे परिवार का वर्षों से चला आ रहा झगड़ा इस चुनाव में सुलझता नजर आ रहा है. ठाकरे परिवार का झगड़ा वर्षों से सड़क पर था.

उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान दिए जाने के बाद राज ठाकरे ने अलग पार्टी बना ली थी. इस पार्टी ने लगभग हर चुनाव में शिवसेना का नुकसान किया लेकिन इस बार महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के चुनाव न लड़ने के फैसले के बाद शिवसेना ने काफी राहत की सांस ली है. साफ है कि ठाकरे परिवार के एक होने का फायदा सहयोगी बीजेपी को मिलेगा.
ये भी पढ़ें- पवार परिवार के राजनीतिक ड्रामे से अब हटने लगा है पर्दा
अलग-अलग राज्यों और इलाके के राजनीतिक समीकरण परिवारवाद की इस राजनीति में बीजेपी का फायदा दिखा रहे हैं क्योंकि पहले दौर का नामांकन शुरू हो चुका है और इन परिवारों ने अपने झगड़े अब तक नहीं सुलझाए हैं.
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लोकसभा चुनाव से पहले घर वापसी कर सकते हैं लालू यादव
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दक्षिण से लेकर उत्तर तक हर जगह घर में रार
तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार में झगड़ा अभी भी कायम है. करुणानिधि के दोनों बेटों एमके अलागिरि और एमके स्टालिन में झगड़ा तो करुणानिधि के जीवित रहते ही शुरू हो गया था, लेकिन स्टालिन के हाथ में पार्टी की बागडोर आने के बाद अलागिरि अलग-थलग पड़ गए हैं. अलागिरि इन चुनावों में किसके साथ जाएंगे, इस बारे में अभी फैसला नहीं किया है. हालांकि बीजेपी से उनकी नजदीकी की खबरें आती रहती हैं. करुणानिधि परिवार के इस झगड़े का फायदा ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड्गम (एआईएडीएमके) को मिलता दिख रहा है. बीजेपी तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ है. इस तरह से ये कहना गलत नहीं होगा कि यहां परिवार के झगड़े का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है और अगर अलागिरि बीजेपी को समर्थन करने का ऐलान कर देते हैं तो ये फायदा और बड़ा हो जाएगा.
यूपी में भी ‘घर की लड़ाई’ बीजेपी के लिए बनी फायदे का सौदाउत्तर प्रदेश में सबसे ताकतवर यादव परिवार में विधानसभा चुनाव के समय शुरू हुआ झगड़ा फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है. वर्षों तक पार्टी की पहचान समझे जाने वाले शिवपाल यादव ने भले ही समाजवादी पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बना ली हो, लेकिन परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव अपने पोते तेज प्रताप सिंह यादव की राजनीतिक हैसियत बचाने में लगे हैं. सूत्रों की माने तो झगड़ा इतना बढ़ गया है कि समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की सीट पर अब तक फैसला नहीं हो पाया. जिस आजमगढ़ सीट पर अखिलेश के चुनाव लड़ने की बात कही जा रही थी, वहां मुलायम सिंह ने अपने पोते तेज प्रताप के लिए दावा ठोंक दिया है.
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इस झगड़े में फायद भी बीजेपी को होता दिख रहा है क्योंकि जिस यादव वोट बैंक के बल पर अखिलेश बीजेपी को चुनौती देने का दम भर रहे हैं, उस यादव वोट बैंक पर मुलायम परिवार के हर झगड़े का असर पड़ता है. खासकर इटावा और उसके आस-पास के इलाकों में शिवपाल यादव का खासा असर है. ऐसे में अगर शिवपाल समाजवादी पार्टी का परंपारगत वोट काटते हैं तो इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा.

मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव (फाइल फोटो)
बिहार में भी फायदे में बीजेपी
बिहार में भी लालू यादव परिवार का झगड़ा कई बार सड़क पर आ चुका है. जिस तरह चुनाव के करीब तीन महीना पहले से परिवार के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव घर से बाहर हैं, उसका असर टिकट बंटवारे और संगठन पर दिख रहा है. तेजप्रताप के तलाक के बहाने पार्टी के नेता कई बार एक दूसरे पर आरोप लगा चुके हैं. बिहार में गठबंधन के सबसे बड़े चेहरे तेजस्वी जिस तरह पारिवारिक विवाद में उलझे हैं. इसका असर चुनावों पर जरूर पड़ेगा. साफ है बिहार में मुकाबला एनडीए बनाम यूपीए है. ऐसे में जब यूपीए के सबसे बड़े चेहरे पर परिवार को लेकर आरोप लगेंगे तो फायदा एनडीए को ही होगा.

लालू यादव और तेजस्वी यादव (फाइल फोटो)
महाराष्ट्र में भी एनडीए फायदे में
महाराष्ट्र में शरद पवार के परिवार का आपसी विवाद अखबारों की सुर्खियां बटोर रहा है. खबरों के माने तो शरद पवार के भजीते अजीत पवार अपने बेटे को लोकसभा चुनाव लड़ाना चाहते थे और शरद पवार के चुनाव न लड़ने की घोषणा के पीछे पारिवारिक कारण था क्योंकि परिवारवाद के विरोध में बनी इस पार्टी के इतने नेता एक साथ चुनाव में मैदान में आ जाएं, शरद पवार ये कभी नहीं चाहेंगे. दूसरी ओर ठाकरे परिवार का वर्षों से चला आ रहा झगड़ा इस चुनाव में सुलझता नजर आ रहा है. ठाकरे परिवार का झगड़ा वर्षों से सड़क पर था.

शरद पवार (फाइल फोटो)
उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान दिए जाने के बाद राज ठाकरे ने अलग पार्टी बना ली थी. इस पार्टी ने लगभग हर चुनाव में शिवसेना का नुकसान किया लेकिन इस बार महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के चुनाव न लड़ने के फैसले के बाद शिवसेना ने काफी राहत की सांस ली है. साफ है कि ठाकरे परिवार के एक होने का फायदा सहयोगी बीजेपी को मिलेगा.
ये भी पढ़ें- पवार परिवार के राजनीतिक ड्रामे से अब हटने लगा है पर्दा
अलग-अलग राज्यों और इलाके के राजनीतिक समीकरण परिवारवाद की इस राजनीति में बीजेपी का फायदा दिखा रहे हैं क्योंकि पहले दौर का नामांकन शुरू हो चुका है और इन परिवारों ने अपने झगड़े अब तक नहीं सुलझाए हैं.
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