आंध्र प्रदेश ने सुप्रीम कोर्ट को दी सफाई, कहा- नहीं कर रहे ओडिशा के क्षेत्र का उल्लंघन

आंध्र प्रदेश ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह गंजायबदरा, पत्तुचेन्नुरू और पगुलुचेन्नुरु गांव में लगातार चुनाव आयोजित कर रहा है और वे नंबर 1 अराकू लोकसभा संसदीय क्षेत्र में और नंबर 13 सलुरू विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. (पीटीआई फाइल फोटो)
Andhra Pradesh-Odisha: शीर्ष अदालत ने 2006 के अपने फैसले में ओडिशा द्वारा दायर वाद इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वह संविधान (Constitution of India) के अनुच्छेद 131 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है.
- भाषा
- Last Updated: February 19, 2021, 4:53 PM IST
नई दिल्ली. आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) सरकार ने उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) से कहा है कि उसके निर्देश का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है और वह अपने क्षेत्र का प्रशासन कर रहा है. उसने ओडिशा के क्षेत्र का कोई उल्लंघन नहीं किया है. ओडिशा ने राज्य के तीन 'विवादित क्षेत्र' वाले गांवों में पंचायत चुनाव अधिसूचित करने को लेकर आंध्र प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही का अनुरोध किया है.
आंध्र प्रदेश सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा है कि ओडिशा द्वारा दायर याचिका पूरी तरह से गलत है और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए बिल्कुल भी विचार योग्य नहीं है कि उसके द्वारा कोई अवमानना नहीं की गई है.
ओडिशा द्वारा दायर अवमानना याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुए आंध्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि ओडिशा अप्रत्यक्ष रूप से वह हासिल करने की कोशिश कर रहा है, जो वह सीधे तौर पर हासिल करने में विफल रहा था. शीर्ष अदालत ने 2006 के अपने फैसले में ओडिशा द्वारा दायर वाद इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वह संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है.
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, ‘...यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि किसी शपथ पत्र के उल्लंघन के संबंध में किसी कृत्य के लिए अवमानना की कार्यवाही तभी की जा सकती है जब अदालत ने ऐसे शपथपत्र के आधार पर कोई आदेश दिया हो. वर्तमान मामले में ऐसा कोई शपथपत्र नहीं है.’उसने कहा, ‘...आंध्र प्रदेश राज्य ने किसी भी समझौते / निर्देश का उल्लंघन करते हुए कोई कदम नहीं उठाया है. आंध्र प्रदेश राज्य अपने क्षेत्रों का ही विधिवत तरीके से प्रशासन कर रहा है और उसने याचिकाकर्ता के क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं किया है.’ आंध्र प्रदेश ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह गंजायबदरा, पत्तुचेन्नुरू और पगुलुचेन्नुरु गांव में लगातार चुनाव आयोजित कर रहा है और वे नंबर 1 अराकू लोकसभा संसदीय क्षेत्र में और नंबर 13 सलुरू विधानसभा क्षेत्र में आते हैं.
उसने कहा, ‘वाद खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह उल्लेखित किया कि यह केवल इस तथ्य को दर्ज कर रहा है कि पक्षों ने एक आपसी समझौता किया है. इसलिए, किसी भी सूरत में यह नहीं कहा जा सकता है कि शपथपत्र या इस माननीय न्यायालय द्वारा पारित किसी भी आदेश / निर्देश की अवमानना हुई है. इसलिए याचिका केवल इसी आधार पर खारिज किए जाने के लिए योग्य है.’
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राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वर्ष 1952 से उपरोक्त गांवों में लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए लगातार चुनाव होते रहे हैं और जहां तक स्थानीय निकाय चुनावों की बात है, उसने पंचायती राज अधिनियम आने के बाद से इन तीन गांवों में स्थानीय निकाय चुनाव कराए हैं. उसने कहा, ‘इसलिए, कोई अवमानना नहीं हुई है. याचिकाकर्ता किसी भी दस्तावेज का उल्लेख करने में भी विफल रहा है.’

शीर्ष अदालत ने 9 फरवरी को आंध्र प्रदेश से कहा था कि वह ओडिशा द्वारा दायर उस अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करे, जिसमें याचिकाकर्ता राज्य के तीन 'विवादित क्षेत्र' गांवों में पंचायत चुनाव अधिसूचित करने के लिए दक्षिणी राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई का अनुरोध किया गया है. नवीन पटनायक सरकार ने कहा था कि अधिसूचना ओडिशा के क्षेत्र में अतिक्रमण के बराबर है.
आंध्र प्रदेश सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा है कि ओडिशा द्वारा दायर याचिका पूरी तरह से गलत है और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए बिल्कुल भी विचार योग्य नहीं है कि उसके द्वारा कोई अवमानना नहीं की गई है.
ओडिशा द्वारा दायर अवमानना याचिका खारिज करने का अनुरोध करते हुए आंध्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा कि ओडिशा अप्रत्यक्ष रूप से वह हासिल करने की कोशिश कर रहा है, जो वह सीधे तौर पर हासिल करने में विफल रहा था. शीर्ष अदालत ने 2006 के अपने फैसले में ओडिशा द्वारा दायर वाद इस आधार पर खारिज कर दिया था कि वह संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है.
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा, ‘...यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि किसी शपथ पत्र के उल्लंघन के संबंध में किसी कृत्य के लिए अवमानना की कार्यवाही तभी की जा सकती है जब अदालत ने ऐसे शपथपत्र के आधार पर कोई आदेश दिया हो. वर्तमान मामले में ऐसा कोई शपथपत्र नहीं है.’उसने कहा, ‘...आंध्र प्रदेश राज्य ने किसी भी समझौते / निर्देश का उल्लंघन करते हुए कोई कदम नहीं उठाया है. आंध्र प्रदेश राज्य अपने क्षेत्रों का ही विधिवत तरीके से प्रशासन कर रहा है और उसने याचिकाकर्ता के क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं किया है.’ आंध्र प्रदेश ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह गंजायबदरा, पत्तुचेन्नुरू और पगुलुचेन्नुरु गांव में लगातार चुनाव आयोजित कर रहा है और वे नंबर 1 अराकू लोकसभा संसदीय क्षेत्र में और नंबर 13 सलुरू विधानसभा क्षेत्र में आते हैं.
उसने कहा, ‘वाद खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से यह उल्लेखित किया कि यह केवल इस तथ्य को दर्ज कर रहा है कि पक्षों ने एक आपसी समझौता किया है. इसलिए, किसी भी सूरत में यह नहीं कहा जा सकता है कि शपथपत्र या इस माननीय न्यायालय द्वारा पारित किसी भी आदेश / निर्देश की अवमानना हुई है. इसलिए याचिका केवल इसी आधार पर खारिज किए जाने के लिए योग्य है.’
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राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वर्ष 1952 से उपरोक्त गांवों में लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए लगातार चुनाव होते रहे हैं और जहां तक स्थानीय निकाय चुनावों की बात है, उसने पंचायती राज अधिनियम आने के बाद से इन तीन गांवों में स्थानीय निकाय चुनाव कराए हैं. उसने कहा, ‘इसलिए, कोई अवमानना नहीं हुई है. याचिकाकर्ता किसी भी दस्तावेज का उल्लेख करने में भी विफल रहा है.’
शीर्ष अदालत ने 9 फरवरी को आंध्र प्रदेश से कहा था कि वह ओडिशा द्वारा दायर उस अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करे, जिसमें याचिकाकर्ता राज्य के तीन 'विवादित क्षेत्र' गांवों में पंचायत चुनाव अधिसूचित करने के लिए दक्षिणी राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई का अनुरोध किया गया है. नवीन पटनायक सरकार ने कहा था कि अधिसूचना ओडिशा के क्षेत्र में अतिक्रमण के बराबर है.