लॉकडाउन 3.0: शराब-पान की दुकान खोलने की क्यों मिली मंजूरी, अर्थव्यवस्था के लिए कितनी 'सेहतमंद'?

हरियाणा में खुले शराब के ठेके. (सांकेतिक तस्वीर)
शराब की दुकानें क्यों खुलीं, इसको समझने के लिए शराब और अर्थव्यवस्था के गणित को समझना पड़ेगा. बात करें उत्तर प्रदेश की, तो उसे हर साल आबकारी टैक्स से 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व मिलता है.
- News18Hindi
- Last Updated: May 3, 2020, 8:58 AM IST
नई दिल्ली. लॉकडाउन-3 (Lockdown 3) के आदेश को देखें, तो पहले ही पेज पर देशभर में शराब-पान और गुटखा जैसे उत्पादों की दुकानों को कुछ शर्तों के साथ खोलने का आदेश दिया गया है. ये आदेश राज्य सरकारों की स्वीकृति के बाद देशभर के सभी जिलों में लागू होगा. फिर चाहे वह जिले रेड जोन में हो, ऑरेंज जोन में हों या ग्रीन जोन में. केंद्र सरकार के इस आदेश के बाद कई जगह से इसके विरोध की आवाजें भी उठ रही हैं. हालांकि इस आदेश के पहले भी कई राज्य सरकारों ने अपने राज्य में शराब की दुकानें खोलने की तैयारी कर ली थी, लेकिन अलग-अलग कारणों से उन्हें पीछे हटना पड़ा. हालांकि अब केंद्र सरकार के आदेश के बाद राज्य सरकारें 4 मई से शराब के साथ-साथ पान और गुटखा की दुकानें भी शर्तों के साथ खोल सकती हैं.
क्या है शराब और अर्थव्यवस्था का गणित?
शराब की दुकानें क्यों खुलीं, इसको समझने के लिए शराब और अर्थव्यवस्था के गणित को समझना पड़ेगा. बात करें उत्तर प्रदेश की, तो उसे हर साल आबकारी टैक्स से 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व मिलता है. राज्य सरकार के कर्मचारियों को सिर्फ वेतन के मद में हर साल करीब 18 हजार करोड़ रुपये दिए जाते हैं यानी सिर्फ आबकारी टैक्स से राज्य सरकार कम से कम अपने कर्मचारियों को वेतन तो दे ही सकती है. ऐसा ही कुछ आंकड़ा मध्य प्रदेश का है. इस राज्य में आबकारी टैक्स से करीब 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की प्राप्ति होती. मध्य प्रदेश सरकार के कर्मचारियों का वेतन भी इसी के आसपास है. हरियाणा सरकार को भी आबकारी से 6 हजार करोड़ का राजस्व मिलता है. यानी ऐसे माहौल में जब जीएसटी, पेट्रोल और डीजल पर सरकार को मिलने वाले टैक्स करीब न के बराबर हैं तो सरकार के सामने शराब की दुकानें खोलने के अलावा कोई विकल्प शायद नहीं रहा होगा. वर्तमान समय में जहां टैक्स कलेक्शन तेजी से घटा है, वहीं सरकार का खर्च तेजी से बढ़ा है. राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, स्वास्थ्य के साथ-साथ मजदूरों के कल्याण के लिए सरकारें अपनी निधि से लगातार पैसे खर्च कर रही हैं.
क्या सरकार के पास थे और विकल्पसरकार ने ऐसा क्यों किया ये सवाल बड़ा है. देश और दुनिया की सरकारें इस समय कोरोना से लड़ रही हैं. सरकारों के सामने संकट ये है कि वो लोगों की जान बचाएं या अर्थव्यवस्था. इस सवाल का जवाब अगर आम नागरिक की तरह सोचें, तो जान बचानी ज्यादा जरूरी है, लेकिन जब सरकार की तरह सोचेंगे, तो जान बचाने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था बचाना भी उतना ही जरूरी नजर आएगा. अर्थव्यवस्था का असर सीधे-सीधे हमारे जीवन पर पड़ेगा और अगर हम जिंदगी बचाने के लिए बाजार को लंबे समय तक बंद कर देते हैं तो इसका असर जीवन पर भी पड़ेगा. भारत जैसे देश में करोड़ों लोगों के रोजगार चले जाएंगे और उनके सामने भूखे मरने तक की नौबत आ सकती है. शायद यही वो कारण है कि कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों के बावजूद भी सरकार ने बाजार को खोलने का फैसला किया है.
क्या है शराब और अर्थव्यवस्था का गणित?
शराब की दुकानें क्यों खुलीं, इसको समझने के लिए शराब और अर्थव्यवस्था के गणित को समझना पड़ेगा. बात करें उत्तर प्रदेश की, तो उसे हर साल आबकारी टैक्स से 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व मिलता है. राज्य सरकार के कर्मचारियों को सिर्फ वेतन के मद में हर साल करीब 18 हजार करोड़ रुपये दिए जाते हैं यानी सिर्फ आबकारी टैक्स से राज्य सरकार कम से कम अपने कर्मचारियों को वेतन तो दे ही सकती है. ऐसा ही कुछ आंकड़ा मध्य प्रदेश का है. इस राज्य में आबकारी टैक्स से करीब 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की प्राप्ति होती. मध्य प्रदेश सरकार के कर्मचारियों का वेतन भी इसी के आसपास है. हरियाणा सरकार को भी आबकारी से 6 हजार करोड़ का राजस्व मिलता है. यानी ऐसे माहौल में जब जीएसटी, पेट्रोल और डीजल पर सरकार को मिलने वाले टैक्स करीब न के बराबर हैं तो सरकार के सामने शराब की दुकानें खोलने के अलावा कोई विकल्प शायद नहीं रहा होगा. वर्तमान समय में जहां टैक्स कलेक्शन तेजी से घटा है, वहीं सरकार का खर्च तेजी से बढ़ा है. राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, स्वास्थ्य के साथ-साथ मजदूरों के कल्याण के लिए सरकारें अपनी निधि से लगातार पैसे खर्च कर रही हैं.
क्या सरकार के पास थे और विकल्पसरकार ने ऐसा क्यों किया ये सवाल बड़ा है. देश और दुनिया की सरकारें इस समय कोरोना से लड़ रही हैं. सरकारों के सामने संकट ये है कि वो लोगों की जान बचाएं या अर्थव्यवस्था. इस सवाल का जवाब अगर आम नागरिक की तरह सोचें, तो जान बचानी ज्यादा जरूरी है, लेकिन जब सरकार की तरह सोचेंगे, तो जान बचाने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था बचाना भी उतना ही जरूरी नजर आएगा. अर्थव्यवस्था का असर सीधे-सीधे हमारे जीवन पर पड़ेगा और अगर हम जिंदगी बचाने के लिए बाजार को लंबे समय तक बंद कर देते हैं तो इसका असर जीवन पर भी पड़ेगा. भारत जैसे देश में करोड़ों लोगों के रोजगार चले जाएंगे और उनके सामने भूखे मरने तक की नौबत आ सकती है. शायद यही वो कारण है कि कोरोना के लगातार बढ़ रहे मामलों के बावजूद भी सरकार ने बाजार को खोलने का फैसला किया है.
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