नई दिल्ली. आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) की केमिकल ब्रांच के 5 एक्सपर्ट की टीम दिन-रात एक खास राष्ट्रीय ध्वज (National Flag) तिरंगे को बचाने में लगी हुई है. एएसआई की इस टीम की मदद सिल्क बोर्ड भी कर रहा है. बीते दो महीने से इस तिरंगे को बचाने की कोशिश जारी हैं. आपको बता दें कि यह तिरंगा कोई आम तिरंगा झंडा नहीं है. 15 अगस्त 1947 को यूनियन जैक उतारकर सेंट जॉर्ज फोर्ट (St. George Fort), चैन्नई में इसी झंडे को फहराया गया था. एएसआई के मुताबिक आजाद भारत में फहराया जाने वाला यह पहला तिरंगा है. एएसआई, चेन्नई (Chennai) सर्किल में ही तिरंगे को केमिकल आदि की मदद से बचाने का काम चल रहा है.
सुबह 5.15 बजे फहराया गया सेंट जॉर्ज फोर्ट पर
एएसआई के रिकॉर्ड पर जाएं तो 15 अगस्त 1947 को सुबह 5.15 बजे यूनियन जैक को उतारकर आजाद भारत में पहला तिरंगा झंडा फहराया गया था. 12 बाई 8 फीट के इस तिरंगे को सेंट जॉर्ज फोर्ट पर फहराया गया था. यह तिरंगा रेशम का बना हुआ है. यही वजह है कि सिल्क बोर्ड भी एएसआई को इस मामले में सलाह दे रहा है. एएसआई लगातार इस तिरंगे का संरक्षण कर रही है. एएसआई के मीडिया कोऑर्डिनेटर मन्नू बताते हैं कि तिरंगे झंडे को बाहरी नमी से बचाने के लिए एक खास तरह के शोकेस में रखा जाता है.
इस शोकेस के चारों तरफ सिलीकोन जैल के 6 कटोरे भी रखे गए हैं. सिलीकोन जैल आसपास के वातारण में मौजूद नमी को सोख लेता है. हॉल के अंदर और शोकेस के ऊपर प्रकाश की उचित व्यवस्था रखने के लिए एक ‘लक्स मीटर’ का इस्तेमाल किया जाता है. हॉल में हर समय वातानुकूलन के जरिए तापमान भी नियत रखा जाता है. शोकेस के आसपास इंसानी सेंसर वाली एलईडी लाइटें लगी हैं. अगर कोई यहां आता है, तभी ये लाइटें जलती हैं.
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सेंट जॉर्ज फोर्ट में जनता के लिए रखा गया था 2013 में
साल 2013 में ऐहतिहासिक तिरंगे झंडे को आम जनता के लिए सेंट जॉर्ज फोर्ट में रखा गया था. कहा जाता है कि इसके बाद ही तिरंगे के सरंक्षण की बात उठी थी. जिसके बाद कोरोना-लॉकडाउन के चलते नवंबर 2021 में जाकर इस पर काम शुरू हुआ. तब से लगातार एएसआई की केमिकल ब्रांच इस पर काम कर रही है. एक बंद कमरे में टीम के 5 एक्सपर्ट केमिकल और दूसरे सामान के साथ तिरंगे का संरक्षण करने में लगे हुए हैं.
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