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केजरीवाल सरकार Vs एलजी: दिल्ली का असली बॉस कौन? सुप्रीम कोर्ट में फैसला आज

दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 याचिकाएं दाखिल हुई थीं.

दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 याचिकाएं दाखिल हुई थीं.

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने हाईकोर्ट के 4 अगस्त, 2016 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उप राज्यपाल को प्रशासनिक प्रमु ...अधिक पढ़ें

    केंद्र शासित दिल्ली सरकार में निर्वाचित केजरीवाल सरकार या उपराज्यपाल में से कौन शीर्ष पर होगा, सुप्रीम कोर्ट बुधवार को इस पर फैसला सुनाने वाला है. कोर्ट का फैसला सुबह 10.30 बजे आ सकता है.

    सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने हाईकोर्ट के 4 अगस्त, 2016 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उपराज्यपाल को प्रशासनिक प्रमुख बताते हुए कहा गया था कि वे मंत्रिमंडल की सलाह और मदद के लिए बाध्य नहीं हैं. अपीलीय याचिका में दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के अधिकार स्पष्ट करने का आग्रह किया गया है.

    दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 याचिकाएं दाखिल हुई थीं. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को इन अपीलों पर सुनवाई शुरू की थी जो छह दिसंबर 2017 को पूरी हुई थी. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.

    इस मामले में दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, पी. चिदंबरम, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और शेखर नाफड़े ने बहस की थी, जबकि केंद्र सरकार का पक्ष एडिशनल सालिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने रखा था.

    आम आदमी पार्टी सरकार ने संविधान पीठ के समक्ष दलील दी थी कि उसके पास विधायी और कार्यपालिका दोनों के ही अधिकार हैं. उसने यह भी कहा था कि मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के पास कोई भी कानून बनाने की विधायी शक्ति है, जबकि बनाए गए कानूनों को लागू करने के लिए उसके पास कार्यपालिका के अधिकार हैं.

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    यही नहीं, आप सरकार का यह भी तर्क था कि उपराज्यपाल अनेक प्रशासनिक फैसले ले रहे हैं और ऐसी स्थिति में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार के सांविधानिक जनादेश को पूरा करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 239 एए की व्याख्या जरूरी है.

    दूसरी ओर, केंद सरकार की दलील थी कि दिल्ली सरकार पूरी तरह से प्रशासनिक अधिकार नहीं रख सकती, क्योंकि यह राष्ट्रीय हितों के खिलाफ होगा. इसके साथ ही उसने 1989 की बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया जिसने दिल्ली को एक राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने के कारणों पर विचार किया. केंद्र का तर्क था कि दिल्ली सरकार ने अनेक 'गैरकानूनी' अधिसूचनायें जारी कीं और इन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.

    केंद्र ने सुनवाई के दौरान संविधान, 1991 का दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार कानून और राष्टूीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के कामकाज के नियमों का हवाला देकर यह बताने का प्रयास किया कि राष्ट्रपति, केंद्र सरकार और उपराज्यपाल को राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासनिक मामले में प्राथमिकता प्राप्त है.

    इसके उलट, दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल पर लोकतंत्र को मखौल बनाने का आरोप लगाया और कहा कि वह या तो निर्वाचित सरकार फैसले ले रहे हैं अथवा बगैर किसी अधिकार के उसके फैसलों को बदल रहे हैं. (भाषा इनपुट के साथ)

    Tags: Anil baijal, Arvind kejriwal, Supreme Court

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