Opinion: दिल्ली का दायित्व भूल पंजाब चुनाव के लिए किसानों को रिझाने में जुटे अरविंद केजरीवाल!

किसानों के समर्थन में हैं अरविंद केजरीवाल. (File Pic)
क्या इसका कारण यह हो सकता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को ये चिंता है कि किसान आंदोलन के कारण कहीं दिल्ली के स्थानीय बाजार में सामान की सप्लाई न रुक जाए? या आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब के मतदाता बड़ा मुद्दा हैं?
- News18Hindi
- Last Updated: December 14, 2020, 1:39 PM IST
सिद्धार्थ मिश्रा
नई दिल्ली. पिछली सदी के दो महान विचारकों की ओर से राजनीति (Politics) पर एक समान टिप्पणी की गई थी. यह थी- 'राजनीति मुसीबत की तलाश करने की कला है, वो मौजूद है या नहीं, उसकी तलाश करना. उसकी गलत तरीके से पहचान करना और उसका गलत समाधान निकालना.' राजनीति पर की गई इस टिप्पणी का पहला श्रेय ब्रिटिश लेखक, प्रकाशक राजनीतिक प्रचारक सर अर्नेस्ट जॉन पिकस्टोन बेन को जाता है. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान न्यूनिशन और रिकंस्ट्रक्शन मंत्रालय में अफसर के तौर पर वह विश्वास करते थे कि अर्थव्यवस्था में सत्ता या सरकार के हस्तक्षेप से लाभ होता है. हालांकि, 1920 के दशक के मध्य में युद्ध के बाद उन्होंने अपना विचार बदल दिया और 'अनडाइल्यूटेड लेजेज फेयरे' के सिद्धांतों' को अपनाया. ये आज की मुक्त बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के विचारों के समान है.
इस टिप्पणी का दूसरा श्रेय ग्रूचो मार्क्स को जाता है. जूलियस हेनरी ग्रूचो मार्क्स दार्शनिक कार्ल मार्क्स के दूर के रिश्तेदार नहीं थे. वह एक अमेरिकी कॉमेडियन, एक्टर, लेखक व फिल्म, रेडियो और टेलीविजन स्टार थे. उन्हें आमतौर पर त्वरित बौद्धिकता वाला और अमेरिका के महानतम कॉमेडियन में से एक माना जाता है.ये दोनों लोग शायद एक तरह की राजनीति की सबसे अच्छी परिभाषा देने में कामयाब रहे, जो लगातार सरकार या सत्ता के हस्तक्षेप के लिए कहती है. हालांकि, इन दो सज्जनों ने राष्ट्रीय राजधानी में उस तरह की राजनीति का अनुभव नहीं किया, जो वर्तमान में आंदोलनकारी किसान कर रहे हैं.
इस समय हमारे सामने ऐसी स्थिति है, जिसमें केंद्र सरकार की ओर से कृषि क्षेत्र में मुक्त बाजार के लिए लाए गए कानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं. उन्होंने दिल्ली की नाकेबंदी की हुई है. दूसरी ओर दिल्ली की सत्ता पर काबिज सरकार पूरी तरह से इन किसानों के समर्थन में है.
क्या इसका कारण यह हो सकता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ये चिंता है कि किसान आंदोलन के कारण कहीं दिल्ली के स्थानीय बाजार में सामान की सप्लाई न रुक जाए? या आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब के मतदाता बड़ा मुद्दा हैं?
अर्नेस्ट बेन और ग्रूचो मार्क्स के लिए इस तरह के एक राजनीतिक मॉडल, जिसमें शासन के लिए निर्वाचित सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है, उसे अनसुना किया गया है. नहीं तो इन दो लोगों ने इस पर कोई राय जरूर बनाई होती. इस साल की शुरुआत में दिल्ली सरकार की ओर से पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली से दिल्ली को हो रही परेशानी के लिए जिम्मेदार ठहराया था. आम आदमी पार्टी के नेता अब किसानों के समर्थन में अनशन कर रहे हैं.
जब किसान आंदोलन अपने चरम पर है तब अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी किसानों को समर्थन जताने के लिए ओवरटाइम कार्य कर रही है. पहला किसानों को एकजुटता दिखाने के लिए दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए बड़े स्टेडियम को अस्थायी जेल बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इसके बाद केंद्र सरकार को बुराड़ी में डीडीए ग्राउंड को किसानों के लिए खुली जेल बनाने का निर्णय लेना पड़ा. इसके बाद दिल्ली सरकार ने इन किसानों को सुविधा देने के लिए बुराड़ी के ग्राउंड में जनता के पैसे खर्च करके उसे टेंट सिटी में बदल दिया.
लेकिन अपनी रणनीति के तहत किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर ही रहकर शहर की नाकेबंदी करने और उसके अंदर न घुसने का फैसला लिया. इससे बुराड़ी की 'टेंट सिटी' भुतहा शहर में बदल गई. पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव हैं. किसानों को अपने द्वारा किए जा रहे कार्यों को दर्शाने के लिए उत्सुक मुख्यमंत्री केजरीवाल 7 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों के पास गए.

आंदोलन कर रहे किसान दिल्ली से सटी सीमाओं पर डटे हुए हैं. वहीं आम आदमी पार्टी ने फिर से किसानों के प्रति समर्थन जताने के लिए कोशिश की और दावा किया गया कि केजरीवाल को केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित दिल्ली पुलिस ने सिंघु सीमा के दौरे के बाद घर पर नजरबंद कर दिया. इसे दिल्ली पुलिस ने नकार दिया है. (ये लेखक के निजी विचार हैं. लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.)
नई दिल्ली. पिछली सदी के दो महान विचारकों की ओर से राजनीति (Politics) पर एक समान टिप्पणी की गई थी. यह थी- 'राजनीति मुसीबत की तलाश करने की कला है, वो मौजूद है या नहीं, उसकी तलाश करना. उसकी गलत तरीके से पहचान करना और उसका गलत समाधान निकालना.' राजनीति पर की गई इस टिप्पणी का पहला श्रेय ब्रिटिश लेखक, प्रकाशक राजनीतिक प्रचारक सर अर्नेस्ट जॉन पिकस्टोन बेन को जाता है. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान न्यूनिशन और रिकंस्ट्रक्शन मंत्रालय में अफसर के तौर पर वह विश्वास करते थे कि अर्थव्यवस्था में सत्ता या सरकार के हस्तक्षेप से लाभ होता है. हालांकि, 1920 के दशक के मध्य में युद्ध के बाद उन्होंने अपना विचार बदल दिया और 'अनडाइल्यूटेड लेजेज फेयरे' के सिद्धांतों' को अपनाया. ये आज की मुक्त बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के विचारों के समान है.
इस टिप्पणी का दूसरा श्रेय ग्रूचो मार्क्स को जाता है. जूलियस हेनरी ग्रूचो मार्क्स दार्शनिक कार्ल मार्क्स के दूर के रिश्तेदार नहीं थे. वह एक अमेरिकी कॉमेडियन, एक्टर, लेखक व फिल्म, रेडियो और टेलीविजन स्टार थे. उन्हें आमतौर पर त्वरित बौद्धिकता वाला और अमेरिका के महानतम कॉमेडियन में से एक माना जाता है.ये दोनों लोग शायद एक तरह की राजनीति की सबसे अच्छी परिभाषा देने में कामयाब रहे, जो लगातार सरकार या सत्ता के हस्तक्षेप के लिए कहती है. हालांकि, इन दो सज्जनों ने राष्ट्रीय राजधानी में उस तरह की राजनीति का अनुभव नहीं किया, जो वर्तमान में आंदोलनकारी किसान कर रहे हैं.
इस समय हमारे सामने ऐसी स्थिति है, जिसमें केंद्र सरकार की ओर से कृषि क्षेत्र में मुक्त बाजार के लिए लाए गए कानूनों का किसान विरोध कर रहे हैं. उन्होंने दिल्ली की नाकेबंदी की हुई है. दूसरी ओर दिल्ली की सत्ता पर काबिज सरकार पूरी तरह से इन किसानों के समर्थन में है.
क्या इसका कारण यह हो सकता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ये चिंता है कि किसान आंदोलन के कारण कहीं दिल्ली के स्थानीय बाजार में सामान की सप्लाई न रुक जाए? या आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब के मतदाता बड़ा मुद्दा हैं?
अर्नेस्ट बेन और ग्रूचो मार्क्स के लिए इस तरह के एक राजनीतिक मॉडल, जिसमें शासन के लिए निर्वाचित सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है, उसे अनसुना किया गया है. नहीं तो इन दो लोगों ने इस पर कोई राय जरूर बनाई होती. इस साल की शुरुआत में दिल्ली सरकार की ओर से पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली से दिल्ली को हो रही परेशानी के लिए जिम्मेदार ठहराया था. आम आदमी पार्टी के नेता अब किसानों के समर्थन में अनशन कर रहे हैं.
जब किसान आंदोलन अपने चरम पर है तब अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी किसानों को समर्थन जताने के लिए ओवरटाइम कार्य कर रही है. पहला किसानों को एकजुटता दिखाने के लिए दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए बड़े स्टेडियम को अस्थायी जेल बनाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इसके बाद केंद्र सरकार को बुराड़ी में डीडीए ग्राउंड को किसानों के लिए खुली जेल बनाने का निर्णय लेना पड़ा. इसके बाद दिल्ली सरकार ने इन किसानों को सुविधा देने के लिए बुराड़ी के ग्राउंड में जनता के पैसे खर्च करके उसे टेंट सिटी में बदल दिया.
लेकिन अपनी रणनीति के तहत किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर ही रहकर शहर की नाकेबंदी करने और उसके अंदर न घुसने का फैसला लिया. इससे बुराड़ी की 'टेंट सिटी' भुतहा शहर में बदल गई. पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव हैं. किसानों को अपने द्वारा किए जा रहे कार्यों को दर्शाने के लिए उत्सुक मुख्यमंत्री केजरीवाल 7 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों के पास गए.
आंदोलन कर रहे किसान दिल्ली से सटी सीमाओं पर डटे हुए हैं. वहीं आम आदमी पार्टी ने फिर से किसानों के प्रति समर्थन जताने के लिए कोशिश की और दावा किया गया कि केजरीवाल को केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित दिल्ली पुलिस ने सिंघु सीमा के दौरे के बाद घर पर नजरबंद कर दिया. इसे दिल्ली पुलिस ने नकार दिया है. (ये लेखक के निजी विचार हैं. लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.)