'संघ की गोद' में गडकरी को कांग्रेस के पटोले दे रहे चुनौती

नितिन गडकरी एवं नाना पटोले
नागपुर लोकसभा सीट पर पहले चरण का मतदान जारी है. इस बार यहां मुकाबला दिलचस्प है क्योंकि चुनावी पंडितों का मानना है कि गडकरी की राह आसान नहीं होगी. देखें, क्या हैं नागपुर सीट के समीकरण और इतिहास.
- News18Hindi
- Last Updated: April 11, 2019, 3:39 PM IST
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्र सरकार में सड़क परिवहन व जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी की किस्मत गुरुवार को पहले चरण के मतदान के बाद ईवीएम में कैद होने वाली है. लोकसभा चुनाव 2019 में महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मोदी सरकार के अहम स्तंभ माने जाने वाले गडकरी नागपुर सीट पर बतौर प्रत्याशी हैं. माना जा रहा है कि इस बार उनके लिए इस गढ़ को जीतना आसान नहीं होगा.
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कांग्रेस ने नागपुर सीट पर नाना पटोले को चुनाव मैदान में उतारा है, जो पहले भंडारा-गोंदिया से बीजेपी के सांसद रह चुके हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ माने जाने वाले नागपुर में मुकाबला दिलचस्प हो गया है और पटोले के ज़रिये कांग्रेस ने गडकरी के खिलाफ रामबाण का इस्तेमाल किया है. संतरों की वजह से नारंगी शहर के नाम से मशहूर नागपुर में ऊंट किस करवट बैठेगा यह जानने के लिए अभी एक महीने से ज़्यादा का इंतज़ार करना होगा, क्योंकि चुनाव परिणाम 23 मई को आने हैंं.
नरेंद्र मोदी के खिलाफ कड़वे बोल बोलने वाले पटोले ने दिसंबर, 2017 में भाजपा का साथ छोड़कर जनवरी, 2018 में कांग्रेस का दामन थाम लिया था. हालांकि, पटोले नागपुर चुनावी रण में 'बाहरी' उम्मीदवार हैं लेकिन फिर भी, चुनावी पंडितों का मानना है कि गडकरी के लिए अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा है.नागपुर में 22 लाख मतदाता हैं, जिनमें दलितों, मुस्लिमों और कुनबी समुदाय की आबादी 12 लाख है. पटोले कुनबी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. नागपुर में 4.8 लाख वोटर अनुसूचित जाति और करीब 3.6 लाख वोटर बौद्ध हैं. अनुसूचित जनजाति के 1.75 लाख मतदाता हैं, जिनमें हलबा समुदाय के वोटरों की संख्या 90 हज़ार से ज़्यादा है. हलबा समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति का होने का दावा करता है, लेकिन उसे जाति प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता. गडकरी ने 2014 में इस मुद्दे को हल करने का वादा किया था.

दूसरी ओर, गडकरी ने हाई प्रोफाइल मंत्रालयों का दायित्व संभालकर नागपुर के विकास की तस्वीर में अपनी तस्वीर भी जोड़ी है. लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिन पहले नागपुर में मेट्रो के पहले चरण की शुरुआत हो चुकी है. माना जा रहा है कि ये तमाम फैक्टर गडकरी के लिए मददगार साबित होंगे.
इधर, पटोले ने 2014 में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़कर भंडारा-गोंदिया सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री और एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल को करीब डेढ़ लाख वोटों से मात दी थी. महाराष्ट्र से पटेल चार बार सांसद रहे थे और विदर्भ राज्य आंदोलन के ज़बरदस्त समर्थक भी. पटेल को हराने वाले पटोले की मौजूदगी के बावजूद काफी हद तक चुनावी माहौल में गडकरी ही स्पॉटलाइट में हैं.
इसके बावजूद एक तथ्य यह भी है कि संघ मुख्यालय के बावजूद नागपुर संसदीय सीट का इतिहास देखा जाए तो यहां से ज़्यादातर कांग्रेस ने बाज़ी मारी है.
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के गडकरी ने कांग्रेस का गढ़ बनी नागपुर सीट को भेदा था और चार बार के सांसद कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार को शिकस्त दी थी, वह भी पौने तीन लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से. यह वाकई कांग्रेस को ज़ोरदार झटका था.
1998 में विलास मुत्तेमवार ने पहली बार कांग्रेस के लिए यह सीट जीती थी. भाजपा के रमेश मंत्री को 1 लाख 63 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हराकर विलास ने कांग्रेस का झंडा लहराया था. बाद में 1999, 2004 और 2009 में लगातार उन्होंने विजय पताका फहराई. भाजपा ने हर बार मुत्तेमवार के खिलाफ एक नया प्रत्याशी उतारा था, लेकिन वह जीत नहीं सकी थी.
2014 में गडकरी के जीतने से पहले भाजपा आखिरी बार 1996 में नागपुर सीट जीती थी, जब बनवारी लाल पुरोहित ने कांग्रेस के कुंडा अविनाश विजयकर को हराया था. गौरतलब है कि पुरोहित 1984 और 1989 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़कर जीत चुके थे. इसके बाद पुरोहित भाजपा में शामिल हुए और 1991 में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के दत्ताजी मेघे ने उन्हें शिकस्त दी थी.

अलग विदर्भ राज्य के आंदोलन से शुरू से जुड़े जाम्बवंतराव धोटे नागपुर सीट से दो बार सांसद रहे. 1980 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की थी. इससे पहले 1971 में फॉरवर्ड ब्लॉक प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रिकबचंद शर्मा को हराया था. हालांकि, शर्मा उस वक्त सिर्फ 2056 वोटों के अंतर से हारे थे.
धोटे से पहले 1977 में कांग्रेस के लिए यह सीट गेव आवरी ने जीती थी. उससे पहले 1967 में एनआर देवघरे ने कांग्रेस को यहां से जीत दिलाई थी. लेकिन, 1962 में माधव श्रीहरि आणे उर्फ बापू आणे ने यहां कांग्रेस को चुनौती देकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी और रिकबचंद शर्मा को हराया था.
पहले दो लोकसभा चुनावों में नागपुर सीट से अनुसुइया काले सांसद चुनी गई थीं. दोनों बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर काले को तकरीबन 60 फीसदी वोटों से भारी जीत मिली थी.
वर्तमान में नागपुर संसदीय क्षेत्र की स्थिति यह है कि इसके दायरे में आने वाले सभी 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस खुद नागपुर दक्षिण पश्चिम से विधायक हैं. साथ ही यहां की 157 नगर निगम सीटों में 115 बीजेपी के खाते में हैं.
रिपोर्ट: आकाश गुलनकर
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कांग्रेस ने नागपुर सीट पर नाना पटोले को चुनाव मैदान में उतारा है, जो पहले भंडारा-गोंदिया से बीजेपी के सांसद रह चुके हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ माने जाने वाले नागपुर में मुकाबला दिलचस्प हो गया है और पटोले के ज़रिये कांग्रेस ने गडकरी के खिलाफ रामबाण का इस्तेमाल किया है. संतरों की वजह से नारंगी शहर के नाम से मशहूर नागपुर में ऊंट किस करवट बैठेगा यह जानने के लिए अभी एक महीने से ज़्यादा का इंतज़ार करना होगा, क्योंकि चुनाव परिणाम 23 मई को आने हैंं.
नरेंद्र मोदी के खिलाफ कड़वे बोल बोलने वाले पटोले ने दिसंबर, 2017 में भाजपा का साथ छोड़कर जनवरी, 2018 में कांग्रेस का दामन थाम लिया था. हालांकि, पटोले नागपुर चुनावी रण में 'बाहरी' उम्मीदवार हैं लेकिन फिर भी, चुनावी पंडितों का मानना है कि गडकरी के लिए अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा है.नागपुर में 22 लाख मतदाता हैं, जिनमें दलितों, मुस्लिमों और कुनबी समुदाय की आबादी 12 लाख है. पटोले कुनबी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. नागपुर में 4.8 लाख वोटर अनुसूचित जाति और करीब 3.6 लाख वोटर बौद्ध हैं. अनुसूचित जनजाति के 1.75 लाख मतदाता हैं, जिनमें हलबा समुदाय के वोटरों की संख्या 90 हज़ार से ज़्यादा है. हलबा समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति का होने का दावा करता है, लेकिन उसे जाति प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता. गडकरी ने 2014 में इस मुद्दे को हल करने का वादा किया था.

महाराष्ट्र में विदर्भ और नागपुर सीट.
दूसरी ओर, गडकरी ने हाई प्रोफाइल मंत्रालयों का दायित्व संभालकर नागपुर के विकास की तस्वीर में अपनी तस्वीर भी जोड़ी है. लोकसभा चुनाव से कुछ ही दिन पहले नागपुर में मेट्रो के पहले चरण की शुरुआत हो चुकी है. माना जा रहा है कि ये तमाम फैक्टर गडकरी के लिए मददगार साबित होंगे.
इधर, पटोले ने 2014 में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़कर भंडारा-गोंदिया सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री और एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल को करीब डेढ़ लाख वोटों से मात दी थी. महाराष्ट्र से पटेल चार बार सांसद रहे थे और विदर्भ राज्य आंदोलन के ज़बरदस्त समर्थक भी. पटेल को हराने वाले पटोले की मौजूदगी के बावजूद काफी हद तक चुनावी माहौल में गडकरी ही स्पॉटलाइट में हैं.
इसके बावजूद एक तथ्य यह भी है कि संघ मुख्यालय के बावजूद नागपुर संसदीय सीट का इतिहास देखा जाए तो यहां से ज़्यादातर कांग्रेस ने बाज़ी मारी है.
लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के गडकरी ने कांग्रेस का गढ़ बनी नागपुर सीट को भेदा था और चार बार के सांसद कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार को शिकस्त दी थी, वह भी पौने तीन लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से. यह वाकई कांग्रेस को ज़ोरदार झटका था.
1998 में विलास मुत्तेमवार ने पहली बार कांग्रेस के लिए यह सीट जीती थी. भाजपा के रमेश मंत्री को 1 लाख 63 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हराकर विलास ने कांग्रेस का झंडा लहराया था. बाद में 1999, 2004 और 2009 में लगातार उन्होंने विजय पताका फहराई. भाजपा ने हर बार मुत्तेमवार के खिलाफ एक नया प्रत्याशी उतारा था, लेकिन वह जीत नहीं सकी थी.
2014 में गडकरी के जीतने से पहले भाजपा आखिरी बार 1996 में नागपुर सीट जीती थी, जब बनवारी लाल पुरोहित ने कांग्रेस के कुंडा अविनाश विजयकर को हराया था. गौरतलब है कि पुरोहित 1984 और 1989 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़कर जीत चुके थे. इसके बाद पुरोहित भाजपा में शामिल हुए और 1991 में भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के दत्ताजी मेघे ने उन्हें शिकस्त दी थी.

इस बार भाजपा के नितिन गडकरी और कांग्रेस प्रत्याशी नाना पटोले के बीच है मुकाबला.
अलग विदर्भ राज्य के आंदोलन से शुरू से जुड़े जाम्बवंतराव धोटे नागपुर सीट से दो बार सांसद रहे. 1980 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़कर उन्होंने जीत दर्ज की थी. इससे पहले 1971 में फॉरवर्ड ब्लॉक प्रत्याशी के तौर पर उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रिकबचंद शर्मा को हराया था. हालांकि, शर्मा उस वक्त सिर्फ 2056 वोटों के अंतर से हारे थे.
धोटे से पहले 1977 में कांग्रेस के लिए यह सीट गेव आवरी ने जीती थी. उससे पहले 1967 में एनआर देवघरे ने कांग्रेस को यहां से जीत दिलाई थी. लेकिन, 1962 में माधव श्रीहरि आणे उर्फ बापू आणे ने यहां कांग्रेस को चुनौती देकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी और रिकबचंद शर्मा को हराया था.
पहले दो लोकसभा चुनावों में नागपुर सीट से अनुसुइया काले सांसद चुनी गई थीं. दोनों बार कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर काले को तकरीबन 60 फीसदी वोटों से भारी जीत मिली थी.
वर्तमान में नागपुर संसदीय क्षेत्र की स्थिति यह है कि इसके दायरे में आने वाले सभी 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस खुद नागपुर दक्षिण पश्चिम से विधायक हैं. साथ ही यहां की 157 नगर निगम सीटों में 115 बीजेपी के खाते में हैं.
रिपोर्ट: आकाश गुलनकर
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