(सुहास मुंशी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार शुक्रवार को पहले अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी. शुक्रवार शाम को होने वाला मतदान का परिणाम बहुत ज्यादा चौकाने वाले नहीं हो सकते क्योंकि सैद्धांतिक तौर पर बीजेपी अपने बल पर इससे पार पा लेगी.
इसके बाद भी कांग्रेस समेत संयुक्त विपक्ष आखिर इस अविश्वास प्रस्ताव के पीछे इतनी शक्ति क्यों लगा रहा है? सत्ताधारी दल एनडीए और विपक्ष, आखिर कौन सा राजनीतिक गुट है जो खुद को साबित करना चाहता है?
साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद क्या हुआ था इसका अनुभव कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को अच्छी तरह होगा. हालांकि, अविश्वास प्रस्ताव का निष्कर्ष पहले निकालें तो यह सामने आता है कि बीजेपी 312 वोट से 186 वोट वाले विपक्ष को हरा देगी.
हालांकि समानता यहीं खत्म नहींं होती. उस साल 4 राज्यों- छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में चुनाव थे. हालांकि इस बार दिल्ली में चुनाव नहीं होंगे. इसके साथ अविश्वास प्रस्ताव, सामान्य चुनावों के ठीक 1 साल पहले लाया गया था.
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साल 2003 के अविश्वास प्रस्ताव के बाद बीजेपी ने दिल्ली छोड़ सभी राज्यों में जीत हासिल कर ली थी हालांकि कांग्रेस को उसके साथ कुछ राजनीतिक दल मिल गए थे. इसके बाद साल 2004 के चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में सफल रही.
बात विपक्षी दलों की दलों की करें तो तथ्य यह है कि इस पूरी प्रक्रिया के परिणाम लगभग पूर्व निर्धारित हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
अविश्वास प्रस्ताव का समय
अविश्वास प्रस्ताव ऐसे दिलचस्प समय आया है जब कांग्रेस-जेडी (एस) ने मिलकर कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया. इसके साथ ही राज्यसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव होने की संभावना है जिसमें एक बार फिर बीजेपी हार सकती है.
30 जून को पीजे कुरियन की सेवानिवृत्त होने के बाद से ही राज्यसभा बिना उपाध्यक्ष के काम कर रही है. हालांकि रिपोर्ट्स इस बात की हैं कि इस चुनाव में देरी की जा सकती है क्योंकि विपक्षी दलों के लिए यह चुनाव, साल 2019 में मनोबल बढ़ाने वाला हो सकता है.
राज्यसभा के उपाध्यक्ष के चुनाव से ठीक पहले, शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव से इस बात पर हवा साफ हो जाएगी कि कौन सा गुट एकजुट है और किसमें दरार है.
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इस दौरान बीजू जनता दल (बीजेडी) पर सबकी निगाह होगी. लोकसभा में पार्टी के 20 सांसद हैं. अब तक बीजेडी ने खुद को ना तो विपक्ष में रखा है और न ही वह बीजेपी के साथ है. इसके साथ ही निगाहें शिवसेना की ओर भी होंगी जिसके लोकसभा में 18 सांसद हैं. हालांकि AIADMK संभवतः बीजेपी के खिलाफ वोट नहीं करेगी.
आखिरकार एक सवाल यह है कि सदन शुरू होने से पहले हर कोई पूछेगा - बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच कौन अधिक दबाव में होगा?
विपक्ष की मानें तो दबाव बीजेपी पर होगा. पार्टी साल साल 2014 में जीती और 16वीं लोकसभा में 282 सांसदों के साथ आई. शिवसेना, एलजेपी, अकाली दल, अपना दल के साथ मिल कर 336 सदस्यों गठबंधन बन गया.
बीजेपी ने अधिकांश संसदीय उपचुनावों में हार गई है. फिलहाल बीजेपी के 273 सांसद हैं. इसके सामने अपने सहयोगियों को संभालने में समस्या है. एन चंद्रबाबू नायडू न सिर्फ एनडीए से टूट गया है, उनकी पार्टी टीडीपी ने ही अविश्वास प्रस्ताव की पहल की है. जेडी (यू) जैसे अन्य सहयोगी और स्पष्ट रूप से शिवसेना ने अक्सर अपने मतभेदों को उजागर किया है.
शुक्रवार को सदन में बहस के दौरान विपक्ष सरकार को घेरने के लिए राफेल डील, मॉब लिंचिंग, कृषि संकट, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण समेत तमाम मुद्दे उठा सकती है.
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बीजेपी के दृष्टिकोण से, उन्हें यह दिखाने का मौका मिलेगा कि सहयोगी एनडीए के भीतर सुरक्षित हैं. दिन भर बहस के दौरान विश्वास मत से पहले भी प्रधानमंत्री को उनकी बातों के लिए मंच मिलेगा जहां से वह वह संसद में कार्य करने ना देने के लिए विपक्ष पर आरोप लगाते हुए अपनी उपलब्धियों का बखान कर सकेंगे.
बीजेपी हाई कमांड यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि बीजेपी और उसके सहयोगियों के बीच मतभेदों के बावजूद, एनडीए के सहयोगी उनके खिलाफ वोट ना करे.
साल 2008 में लोकसभा में पिछली बार अविश्वास प्रस्ताव अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के समय आया था. ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल कांग्रेस को इससे दूर रखने का फैसला किया था. इसके साथ ही अकाली दल, शिवसेना, जेडी (यू) के सांसदों समेत कई दल इससे बचे थे. दिलचस्प बात यह है कि उस वक्त बीजेपी के चार सांसद खुद मतदान से दूर रहे थे.
बीजेपी के पास अभी भी ऐसे सांसद हैं जो इसके खिलाफ वोट दे सकते हैं जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा, सावित्रीबाई फुले और कीर्ति आजाद का नाम शामिल है.
अंत में बात संख्याबल पर टिक जाएगी. क्या विपक्षी दल के पास संख्या पर्याप्त है? सोनिया गांधी ने उदारतापूर्वक दावा किया,'कौन कहता है कि हमारे पास संख्याएं नहीं हैं?' हालांकि बीजेपी नेता अनंत कुमार ने दावा किया,'सभी एनडीए पार्टियां एकजुट होने जा रही हैं.' 48 घंटे में सब कुछ हमारे सामने होगा.
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Tags: Monsoon Session, Narendra modi, Rahul gandhi
FIRST PUBLISHED : July 19, 2018, 09:45 IST