बिहार चुनावों (Bihar election) के एग्ज़िट पोल्स (Bihar Exit Polls) सामने आने के बाद एनडीए और बीजेपी के सामने चिंता के बादल छा गए हैं. बिहार में नीतीश कुमार सरकार (Nitish Kumar Government) इस बार संकट में फंसती दिख रही है तो दूसरी तरफ, जेडीयू के साथ बीजेपी का राज्य में चुनाव लड़ने का फैसला भी इस बार पार्टी की रणनीति (BJP Election Strategy) पर सवाल खड़े करेगा, अगर नाकामी हाथ लगी. बिहार चुनावों के क़यास सामने आने के बाद यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि भाजपा ने हाल में कितने राज्यों में चुनावी सफलता (State Assembly Polls) पाई क्योंकि ठीक दो साल पहले नवंबर-दिसंबर में ही तीन अहम राज्य भाजपा ने गंवाए थे.
राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार, छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार और मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार 2018 चुनाव में गिर गई थी और तीनों ही राज्यों में कांग्रेस ने बाज़ी मार ली थी. मध्य प्रदेश में इसी साल भाजपा ने सत्ता में फिर वापसी की, हालांकि इस जोड़ तोड़ में कई तरह के आरोप भी उसके सिर लगे. बहरहाल, पिछले दो सालों में भाजपा का चुनावी सफर कैसा रहा है, यह कहानी अपने आप में बहुत कुछ समझाती है.
विधानसभा चुनाव 2018 : भाजपा पिछड़ी
दो साल पहले 12 नवंबर से 7 दिसंबर के बीच पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए थे. मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एक से ज़्यादा कार्यकाल वाले मुख्यमंत्रियों की भाजपा सरकारें गिरी थीं. मप्र में 230 में से 114 सीटें कांग्रेस के हाथ लगी थीं जबकि भाजपा के हाथ 109. कांग्रेस ने निर्दलीयों का समर्थन जुटाकर कमलनाथ सरकार बनाई थी. लेकिन भाजपा को तगड़ा झटका छत्तीसगढ़ में लगा था.
न्यूज़18 इलस्ट्रेशन.
यहां रमन सिंह की सरकार कुल 90 में से सिर्फ 15 सीटों पर सिमट गई. 68 सीटें जीतकर कांग्रेस ने भारी बहुमत हासिल किया और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने. इसी तरह, राजस्थान में वसुंधरा राजे की अगुवाई में भाजपा कुल 199 में से 73 सीटें हासिल कर सकी, जबकि कांग्रेस 100 सीटें पाईं और अशोक गहलोत फिर राज्य के सीएम बने. वहीं, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति सरकार बचाने में कामयाब हुई और केसीआर फिर सीएम बने.
इसी तरह, मिज़ोरम में तेलंगाना की तरह भाजपा के हाथ सिर्फ एक ही सीट लगी. नवंबर 2018 से पहले हालांकि भाजपा ने त्रिपुरा में सरकार बनाकर एक बड़ी कामयाबी पाई थी, क्योंकि यह राज्य कम्युनिस्टों का गढ़ रहा था. नागालैंड में भी भाजपा ने एनडीपीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. कर्नाटक में भाजपा चुनाव हारी थी, लेकिन बाद में कथित 'ऑपरेशन कमल' के चलते भाजपा उसी तरह सत्ता में आई, जैसे मप्र में आई थी.
विस चुनाव 2019 : कहीं जीत, कहीं हार
उत्तर पूर्व और तटीय राज्यों में इस साल की शुरूआत में चुनाव हुए और भाजपा ने अरुणाचल प्रदेश में जहां पेमा खांडू सरकार बचाई, तो वहीं सिक्किम में एसडीएफ की सरकार को हराकर एसकेएम के साथ मिलकर भाजपा ने प्रेमसिंह तमांग सरकार बनाई. ओडिशा में बीजू पटनायक का जलवा कायम रहा तो आंध्र प्रदेश के चुनाव में भी भाजपा रेस में नहीं रही. चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को हराकर वायएसआर कांग्रेस ने परचम लहराया और जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री बने.
पिछले साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच तीन अहम राज्यों में चुनाव हुए जिनमें से दो में भाजपा ने अपनी सरकार गंवा दी और एक में जैसे तैसे बचा सकी. महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच सीएम कुर्सी के लिए लड़ाई इतनी तल्ख हुई कि अनदेखा सियासी ड्रामा हुआ. भाजपा ने शिवसेना का साथ छोड़कर रातों रात एनसीपी के एक धड़े से हाथ मिलाकर शपथ ग्रहण तक कर ली थी, लेकिन बाद में बहुमत साबित करने में नाकाम रही भाजपा की देवेंद्र फडनवीस की काफी किरकिरी हुई.
दूसरी तरफ, शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाकर एक खिचड़ी सरकार बनाई, जिसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने. झारखंड में, भाजपा की रघुबर दास सरकार गिरी और उसकी जगह कांग्रेस व जेएमएम ने मिलकर सत्ता संभाली. अक्टूबर 2019 में हरियाणा का चुनाव काफी अहम रहा, जहां भाजपा ने सरकार किसी तरह बचाने में सफलता पाई. जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला के समर्थन से मनोहरलाल खट्टर अपनी कुर्सी बचा सके.
विस चुनाव 2020 : दोनों हाथ खाली?
इसी साल फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए और यहां कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटें एनडीए के हाथ लगीं. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने दोबारा सरकार बनाई और वो भी भारी बहुमत के साथ. हालांकि यहां चुनाव के फौरन बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों ने राज्य की सियासत में एक नया मोड़ और एक नया अध्याय दर्ज किया था.
न्यूज़18 कार्टून.
कुल मिलाकर, भाजपा के लिए पिछले दो साल राज्यों में चुनाव को लेकर काफी उथल पुथल भरे रहे और भाजपा बड़ी फतह की तलाश में ही नज़र आई. अब बिहार चुनाव में एग्ज़िट पोल्स की मानें तो यहां भी भाजपा के सामने सियासी संकट साफ नज़र आ रहा है, लेकिन नतीजे आने तक कुछ कहना मुनासिब नहीं है. अगर यहां भी भाजपा हारती है, तो इस साल दूसरा अहम विधानसभा चुनाव गंवाएगी.
इस पूरे विश्लेषण में यह भी अहम है कि 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के बाद बीजेपी ने 'कांग्रेस मुक्त भारत' का नारा देकर राज्यों में भाजपा सरकारें बनाने के लिए ताल ठोकी थी. बीजेपी की सोशल मीडिया विंग ने भारत के ऐसे नक्शे भी जारी किए थे, जिसमें कई राज्य भाजपा के भगवे रंग में नज़र आ रहे थे, लेकिन अब सूरत बदली है और भाजपा कई बड़े राज्यों में या तो सरकार गंवा चुकी है या फिर बना ही नहीं सकी. इस लिहाज़ से भाजपा के लिए बिहार चुनाव का नतीजा काफी अहम रहने वाला है.