Indo-Pak War 1971: पूर्वी मोर्चे पर भारतीय सेना की सशक्त मौजूदगी ने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन को बेहद मजबूत बना दिया था. पाकिस्तान किसी भी सूरत में भारतीय सेना को पूर्वी मोर्चे से हटाकर युद्ध को लंबा खींचना चाह रहा था. इन्हीं मंसूबों को लेकर पाकिस्तान ने भारत के पश्चिमी क्षेत्र से मोर्चा खोलने का साजिश तैयार की. सािजश के तहत पाकिस्तान पश्चिमी क्षेत्र में पहला मोर्चा राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट से और दूसरा मोर्चा पंजाब के पठानकोट से खोलना चाह रहा था.
पाकिस्तानी सेना राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट से भारतीय सीमा में दाखिल होकर रामगढ़ होते हुए जैसलमेर पर कब्जा करना चाह रही थी. वहींं, दूसरे मोर्चे को लेकर पाकिस्तानी सेना की मंशा थी कि वह शकरगढ़ के टीलों से होते हुए पठानकोट पर कब्जा कर लेगा. ऐसा होने पर वह बेहद असानी से जम्मू और कश्मीर को जाने वाली सैन्य रसद और सैन्य सहायता को न केवल रोक लेगा, बल्कि जम्मू और कश्मीर पर हमला कर उसपर कब्जा करने की वर्षों पुरानी हसरत भी पूरी हो जाएगी.
यह भी पढ़ें: पूर्वी पाकिस्तान का वह घटनाक्रम जो 1971 के भारत-पाक युद्ध का बना कारण
भारतीय सेना की पहल ने पाक के अरमानों पर फेरा पानी
इधर, भारतीय सेना पठानकोट की रणनीतिक स्थिति के महत्व को भरी प्रकार समझ रही थी. उसे पता था कि पठानकोट से गुजरने वाली सड़कें शेष भारत से जम्मू और कश्मीर को जोड़ती है, जिस पर पाकिस्तान अपनी निगाहें गिद्ध की तरह गड़ाए बैठा है. पाकिस्तानी सेना मौका पाते ही सियालकोट आर्मी बेस की मदद से शकरगढ़ के रास्ते हमला बोलकर पठानकोट पर कब्जा करने की कोशिश कर सकती है. ऐसा हुआ तो जम्मू और कश्मीर भारत के बाकी हिस्सों से कट जाएगा, जो भारतीय सेना को किसी भी रूप में मंजूर नहीं होगा.
पठानकोट पर पाकिस्तानी हमले की आशंका को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना ने दो मोर्चों पर तैयारी शुरू की. पहले मोर्चे के तहत, शकरगढ़ से महज 23 मील दूर स्थिति पठानकोट को बेस बनाकर तेजी से सेना को जुटाने का काम शुरू किया गया. साथ ही, यह रणनीति तैयार की गई कि पाकिस्तान अपने मंसूबों पर काम करना शुरू करे, उससे पहले भारतीय सेना पाकिस्तानी शकरगढ़ क्षेत्र में हमलाकर पाकिस्तान के सियालकोट बेस को अपने कब्जे में ले ले. दोनों मोर्चों पर तैयारी पूरी होने के बाद भारतीय सेना सही वक्त का इंतजार करने लगी.
यह भी पढ़ें: 2 हजार पाक सैनिकों को धूल चटा 120 भारतीय जांबाजों ने लोंगेवाला को बनाया दुश्मन की ‘कब्रगाह’
हवाई हमले के बदले में शुरू हुआ ‘बैटल ऑफ बसंतर’
पाकिस्तानी सेना के मंसूबों को पूरा करने के मकसद के साथ पाक एयरफोर्स ने 3 दिसंबर की शाम को लगभग 5:40 बजे आगरा सहित उत्तर- पश्चिमी भारत की 11 एयर फील्ड्स पर हमले की शुरूआत कर दी. वहीं, 2000 जवान, 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड के साथ पाकिस्तानी सेना राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर पहुंच गई. जहां 3 दिसंबर 1971 की रात युद्ध का आगाज हो गया. पाक सेना के मंसूबों के तहत अब बारी पठानकोट शहर की थी, जो पाक सेना के सियालकोट बेस से 100 किमी और शकरगढ़ से महज 45 किमी की दूरी पर था.
पाकिस्तानी सेना अपने मंसूबों पर काम करती, इससे पहले भारतीय सेना ने अपनी रणनीित पर काम करते हुए जरपाल क्षेत्र स्थिति पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर हमला कर दिया. 4 दिसंबर 1971 को हुए इन हमलों के साथ ‘बैटल ऑफ बसंतर’ (बसंतर की लड़ाई) की शुरूआत हो गई. भारतीय सेना ने देखते ही देखते न केवल शकरगढ़ पर कब्जा कर लिया, बल्कि सियालकोट के बेहद करीब पहुंच गई. शकरगढ़ में कब्जे के बाद भारतीय सेना ने वहां तमाम संसाधन जुटाना शुरू कर दिया.
यह भी पढ़ें: भारत पर हमले के लिए पाकिस्तान ने क्यों चुना राजस्थान का लोंगेवाला पोस्ट, पढ़ें बड़ी वजह
युद्ध खत्म होने तक भारतीय सेना के कब्जे में रहा शकरगढ़
शकरगढ़ में अब भारतीय सेना की स्थिति बहुत मजबूत हो चुकी थी. वहीं, पाकिस्तान के हाथ से शकरगढ़ का जाना सेना के लिए शर्मिंदगी का कारण बन चुका था. सियालकोट में बैठे पाक सेना के अधिकारी शकरगढ़ को वापस पाने के लिए नई-नई तरकीबें लगाते रहे, लेकिन भारतीय सेना की जांबाजी के सामने दुश्मन सेना की एक भी तरकीब न चली. पाकिस्तानी सेना ने शकरगढ़ पर वापस कब्जा पाने के लिए पांच बार हमला किया, लेकिन पांचों बार उसे मुंह की खानी पड़ी.
बैटल ऑफ बसंतर के खत्म होने तक शकरगढ़ पर भारतीय सेना का कब्जा पूरी तरह कायम रहा. 16 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तानयुद्धके साथ-साथ बैटल ऑफ बसंतर भी खत्म हो गया. करीब 12 दिनों के अंतराल में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था. हालांकि पाकिस्तानी सेना द्वारा बिना शर्त समर्पण करने के बाद भारत ने युद्ध में जीत पूरी जमीन पाकिस्तान को वापस कर दी थी. दस्तवेजों के अनुसार, बैटल ऑफ बसंतर का टैंक से टैंक के बीच लड़ा गया युद्ध था. इसमें भारतीय सेना ने अपने चार टैंक खोकर पाक सेना के 51 टैंक को जमींदोज कर दिए थे.
यह भी पढ़ें: पाक सेना के मजबूत किले को अकेले ध्वस्त करने वाले परमवीर एक्का की आखिरी कहानी…
इन जांबाजों ने बैटल ऑफ बसंतर में लिखी वीरता की नई कहानी
बैटल ऑफ बसंतर में पराक्रम और वीरता की कई नई इबारतें लिखी गई. बैटल ऑफ बसंतर में शािमल होने वाले सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल और मेजर होशियार सिंह दहिया को सेना के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वहीं, मेजर विजय रतन, लेफ्टिनेंट कर्नल हनुत सिंह, लेफ्टिनेंट कर्नल वेद प्रकाश घई, लेफ्टिनेंट कर्नल राज मोहन वोहरा, लेफ्टिनेंट कर्नल वेद प्रकाश और हवलदार थॉमस फिलिप्स को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वीर चक्र से सम्मानित होने वालों में लेफ्टिनेंट कर्नल बीटी पंडित, कैप्टन आरएन गुता और नायब सूबेदार दोरई स्वामी का नाम शामिल है.
.
Tags: Indian army, Indian Army Pride, Indian Army Pride Stories, Indo-Pak War 1971
टाटा मोटर्स के शेयर ने तोड़ा अपना रिकॉर्ड, क्या है अगला टारगेट, एक्सपर्ट ने बताया- कहां बेचें-खरीदें ये स्टॉक
इस गार्डन में लगे हैं 15000 पेड़ और दो लाख सजावटी फूलों के पौधे, तस्वीरों में देखें इस अद्भुद गार्डन को
WTC Final: ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारतीय बैटर्स को बनाने होंगे खूब रन, जानें टॉप-6 का प्रदर्शन