Bihar Election results: महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी रही कांग्रेस! BJP के खिलाफ अधिकतर सीटों पर हुई पस्त
Bihar Election results: महागठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी रही कांग्रेस! BJP के खिलाफ अधिकतर सीटों पर हुई पस्त
बिहार में चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और तेजस्वी यादव (फाइल फोटो)
Bihar election results: आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन (Mahagathbandhan) में सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर शुरुआत से ही सवाल उठते रहे. आखिर कुल 243 सीटों में से 70 सीटें महागठबंधन के सबसे कमजोर घटक दल को क्यों दी गईं? 2020 के चुनाव में महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा, तो इसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है.
Bihar election results: बिहार विधानसभा (Bihar Assembly Election Results 2020) के सभी 243 सीटों के नतीजे आ चुके हैं. चुनाव के नतीजे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( NDA) के पक्ष में आए हैं. NDA को 125 सीटों पर जीत मिली है, जो बहुमत के लिए जरूरी 122 सीटों से तीन अधिक है. अलग-अलग देखें, तो बीजेपी को 74 और जेडीयू को तीन सीटों पर जीत मिली है. वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व में महागठबंधन(Mahagathbandhan) 110 सीटें हासिल हुईं. बिहार में इस बार कांग्रेस (Congress) महागठबंधन की सहयोगी के रूप में 70 सीटों पर चुनाव लड़ी. इतनी सीटों पर लड़ने के बाद भले ही कांग्रेस राज्य विधान सभा चुनाव के प्रमुख राजनीतिक दलों में शुमार हो गई, लेकिन सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई. इस बार कांग्रेस का जिन सीटों पर बीजेपी से मुकाबला था, उनमें से ज्यादातर में उसे हार मिली.
महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर शुरुआत से ही सवाल उठते रहे. आखिर कुल 243 सीटों में से 70 सीटें महागठबंधन के सबसे कमजोर घटक दल को क्यों दी गईं? चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि 2020 के चुनाव में महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा, तो इसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है. दरअसल, 2015 में कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीती थीं. अब 2020 में कांग्रेस ने महागठबंधन के खाते से 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन अभी वह सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस पिछली बार की तरह 41 सीटों पर ही चुनाव लड़ती और बाकी सीटें राजद के लिए छोड़ती, तो नतीजा कुछ और हो सकता था.
बिहार चुनाव में महागठबंधन ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसमें आरजेडी को 75 सीटों पर, कांग्रेस को 19 सीटों पर, भाकपा माले ने 13 सीटों पर, भाकपा और माकपा ने दो-दो सीटों पर जीत दर्ज की है. CPI(ML), CPM, और CPI ने मिलकर 29 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें 17 सीटों पर जीत हासिल की. लेफ्ट का स्ट्राइक रेट 58.6 फीसदी रहा, जबकि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 27 फीसदी रहा. आरजेडी ने 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे.
महागठंबधन को कुल 30 सीटों में बीजेपी से कड़ी हार का सामना करना पड़ा. इनमें से ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस कैंडिडेट थे. चैनपुर, गोपालगंज और पारो ऐसी ही सीटें हैं. यहां कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बनी है.
सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, 'चुनाव के और बेहतर परिणाम हो सकते थे. मुझे लगता है कि अगर हम पहले एक मजबूत गठबंधन बनाते फिर सीटों का बंटवारा होता, तो बात कुछ और होती. मुझे लगता है कि वाम दलों के लिए कम से कम 50 सीटें और कांग्रेस के लिए 50 सीटें शायद रखनी चाहिए थी, ये सीटों के बंटवारे का उचित तरीका होता.'
हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि जिन 70 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा, वो सभी परंपरागत तौर पर नॉन-कांग्रेस सीटें थीं. यहां एनडीए का स्ट्राइक रेट 95 फीसदी या उससे ज्यादा रहा.
कांग्रेस का तर्क है, '2010 में जब बीजेपी और जेडी (यू) ने एक साथ लड़ाई लड़ी, तो उन्होंने इन 70 सीटों में से 65 सीटें जीतीं. बीजेपी ने 36 में से 33 सीटें जीतीं और जेडी (यू) ने 34 में से 32 सीटें जीतीं. इसी तरह, 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी और जेडी (यू) एक साथ लड़े. उन्होंने 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की.'
2015 में ऐसा था सीटों का गणित
आपको बता दें कि 2015 के चुनाव में भाजपा ने 157 सीटों पर ताल ठोकी थी और 53 पर जीत दर्ज की थी. जदयू ने 101 सीटों पर दांव खेला था और उसे 71 सीटें मिली थीं. लोजपा ने 2015 में 42 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी. राजद ने 101 सीटों पर ताल ठोकी और 80 सीटें जीत हासिल की थीं. कांग्रेस ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें अपनी झोली में डाली थीं. वामपंथी दलों ने 48 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाए थे.