बिहार, बंगाल और केरल के सांसदों-विधायकों पर सबसे ज्यादा आपराधिक मामले

बिहार के सांसदों और विधायकों के खिलाफ सबसे ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं.
बिहार से जुड़े 260 मामले विशेष अदालतों को भेजे गए हैं और इनमें से 11 पर पिछले छह महीने में फैसला आया.
- News18.com
- Last Updated: September 11, 2018, 5:37 PM IST
(उत्कर्ष आनंद)
बिहार के सांसदों और विधायकों के खिलाफ सबसे ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल की बारी आती है, जबकि केरल तीसरे पायदान पर है. केंद्र सरकार की ओर से दी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गठित की गई विशेष अदालतों में इस तरह के 1233 मामले ट्रांसफर किए गए हैं.
यह अदालतें जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों की जल्द सुनवाई के लिए गठित की गई हैं. इनमें अभी तक केवल 136 मामलों पर फैसला हुआ है और 1097 अभी भी सुनवाई के दौर में हैं.
बिहार से जुड़े 260 मामले विशेष अदालतों को भेजे गए हैं और इनमें से 11 पर पिछले छह महीने में फैसला आया. 249 मामलों में अभी भी फैसला होना है. आपराधिक मामलों को सुलझाने के मामलों में पश्चिम बंगाल काफी धीमा है. यहां पर मार्च 2018 में सांसदों व विधायकों पर 215 मामले चल रहे थे और अभी तक एक में भी फैसला नहीं आया है. केरल के 178 मामलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है.केरल के बाद दिल्ली की बारी आती है. यहां पर 157 मामले मजिस्ट्रेट के सामने हैं और पिछले छह महीने में इनमें से 44 का फैसला हुआ है. दिल्ली में ही 45 अन्य मामले सेशन कोर्ट के पास हैं जिनमें से छह पर अभी तक फैसला हुआ है.
कर्नाटक में सांसदों व विधायकों पर 142 मामले थे. इनमें से 19 का निपटारा हो गया. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 64, महाराष्ट्र में 50 और मध्य प्रदेश में 28 केस हैं. केंद्र सरकार की ओर से दिए गए एफिडेविट में बताया गया है कि सांसदों व विधायकों के मामलों की सुनवाई के लिए 12 विशेष अदालतें गठित की गई हैं. इनमें से छह सेशन कोर्ट और पांच मजिस्ट्रेट कोर्ट हैं. तमिलनाडु से स्पेशल कोर्ट के बारे में जानकारी आना बाकी है.
इलाहाबाद और चेन्नई में जो विशेष अदालतें गठित की गई हैं उनसे बकाया मामलों की जानकारी कानून मंत्रालय को नहीं मिली है. बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी उपाध्याय की 2016 की जनति याचिका पर केंद्र सरकार ने ये आंकड़ें कोर्ट में दिए हैं. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रंजन गोगोई ने केंद्र को स्पेशल कोर्ट गठित करने और उनके लिए जरूरी बजट मुहैया कराने को कहा था.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एफिडेविट के रूप में स्पेशल कोर्ट की संख्या, बकाया मामलों की स्थिति और क्या ज्यादा अदालतों की जरूरत के बारे में ब्यौरा मांगा था. इस पर कानून मंत्रालय के एफिडेविट में बताया गया कि फंड राज्य सरकारों को दे दिया गया है और केवल बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अन्य अदालत की इच्छा जाहिर की है.
बिहार के सांसदों और विधायकों के खिलाफ सबसे ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके बाद पश्चिम बंगाल की बारी आती है, जबकि केरल तीसरे पायदान पर है. केंद्र सरकार की ओर से दी गई जानकारी में यह खुलासा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गठित की गई विशेष अदालतों में इस तरह के 1233 मामले ट्रांसफर किए गए हैं.
यह अदालतें जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों की जल्द सुनवाई के लिए गठित की गई हैं. इनमें अभी तक केवल 136 मामलों पर फैसला हुआ है और 1097 अभी भी सुनवाई के दौर में हैं.
बिहार से जुड़े 260 मामले विशेष अदालतों को भेजे गए हैं और इनमें से 11 पर पिछले छह महीने में फैसला आया. 249 मामलों में अभी भी फैसला होना है. आपराधिक मामलों को सुलझाने के मामलों में पश्चिम बंगाल काफी धीमा है. यहां पर मार्च 2018 में सांसदों व विधायकों पर 215 मामले चल रहे थे और अभी तक एक में भी फैसला नहीं आया है. केरल के 178 मामलों के बारे में कोई जानकारी नहीं है.केरल के बाद दिल्ली की बारी आती है. यहां पर 157 मामले मजिस्ट्रेट के सामने हैं और पिछले छह महीने में इनमें से 44 का फैसला हुआ है. दिल्ली में ही 45 अन्य मामले सेशन कोर्ट के पास हैं जिनमें से छह पर अभी तक फैसला हुआ है.
कर्नाटक में सांसदों व विधायकों पर 142 मामले थे. इनमें से 19 का निपटारा हो गया. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 64, महाराष्ट्र में 50 और मध्य प्रदेश में 28 केस हैं. केंद्र सरकार की ओर से दिए गए एफिडेविट में बताया गया है कि सांसदों व विधायकों के मामलों की सुनवाई के लिए 12 विशेष अदालतें गठित की गई हैं. इनमें से छह सेशन कोर्ट और पांच मजिस्ट्रेट कोर्ट हैं. तमिलनाडु से स्पेशल कोर्ट के बारे में जानकारी आना बाकी है.
इलाहाबाद और चेन्नई में जो विशेष अदालतें गठित की गई हैं उनसे बकाया मामलों की जानकारी कानून मंत्रालय को नहीं मिली है. बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी उपाध्याय की 2016 की जनति याचिका पर केंद्र सरकार ने ये आंकड़ें कोर्ट में दिए हैं. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रंजन गोगोई ने केंद्र को स्पेशल कोर्ट गठित करने और उनके लिए जरूरी बजट मुहैया कराने को कहा था.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एफिडेविट के रूप में स्पेशल कोर्ट की संख्या, बकाया मामलों की स्थिति और क्या ज्यादा अदालतों की जरूरत के बारे में ब्यौरा मांगा था. इस पर कानून मंत्रालय के एफिडेविट में बताया गया कि फंड राज्य सरकारों को दे दिया गया है और केवल बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अन्य अदालत की इच्छा जाहिर की है.