Chandrayaan 2: नासा ने ढूंढ निकाला विक्रम लैंडर का मलबा, क्रैश साइट से 750 मीटर दूर मिले 3 टुकड़े
News18Hindi Updated: December 3, 2019, 4:08 PM IST

नासा की ओर से जारी फोटो में नीले और हरे डॉट्स के जरिये विक्रम लैंडर के मलबे के दिखाया गया है.
नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने रात करीब 1:30 बजे चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के विक्रम लैंडर (Vikram Lander) के इम्पैक्ट साइट की तस्वीर जारी की है. नासा ने बताया कि उसके ऑर्बिटर को विक्रम लैंडर के तीन टुकड़े मिले हैं. ये टुकड़े 2x2 पिक्सेल के हैं.
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- Last Updated: December 3, 2019, 4:08 PM IST
नई दिल्ली. भारत के महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान (Chandrayaan-2) को लेकर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने विक्रम लैंडर को लेकर बड़ा खुलासा किया है. नासा के लूनर रिकनैसैंस ऑर्बिटर (LRO) ने चांद की सतह पर चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का मलबा तलाश लिया है. चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर का मलबा क्रैश साइट से 750 मीटर दूर मिला है. नासा ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी है. नासा ने विक्रम लैंडर का मलबा ढूंढने का क्रेडिट चेन्नई के एक इंजीनियर को दिया है.
नासा ने रात करीब 1:30 बजे चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के विक्रम लैंडर (Vikram Lander) के इम्पैक्ट साइट की तस्वीर जारी की है. नासा ने बताया कि उसके ऑर्बिटर को विक्रम लैंडर के तीन टुकड़े मिले हैं. ये टुकड़े 2x2 पिक्सेल के हैं.
नासा की ओर से जारी फोटो में नीले और हरे डॉट्स के जरिये विक्रम लैंडर के मलबे के दिखाया गया है. तस्वीर में दिख रहा है कि चांद की सतह पर जहां विक्रम लैंडर गिरा वहां मिट्टी को नुकसान भी हुआ है.
चेन्नई के इस इंजीनियर को दिया क्रेडिट
नासा ने अपने बयान में कहा, '26 सितंबर को क्रैश साइट की एक तस्वीर जारी की गई थी और विक्रम लैंडर के सिग्नल्स की खोज करने के लिए लोगों को बुलाया गया था.' नासा ने आगे बताया, 'शनमुगा सुब्रमण्यन नाम के शख्स ने मलबे की एक सकारात्मक पहचान की. उन्होंने ही LRO प्रोजेक्ट से संपर्क किया. शानमुगा ने मुख्य क्रैश साइट के उत्तर-पश्चिम में लगभग 750 मीटर की दूरी पर स्थित मलबे की पहचान की थी. यह पहले मोजेक (1.3 मीटर पिक्सल, 84 डिग्री घटना कोण) में एक एकल उज्ज्वल पिक्सल पहचान थी.'
ISRO ने मांगी डिटेल रिपोर्ट
न्यूज़ एजेंसी एएफपी के मुताबिक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने नासा से विक्रम लैंडर के मलबे से जुड़ी डिटेल जानकारी मांगी है. नासा जल्द ही इससे जुड़ी रिपोर्ट सौंपेगा.
हार्ड लैंडिंग के बाद अंतरिक्ष में खो गया था विक्रम लैंडर
चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की 7 सितंबर को चांद की सतह पर हार्ड लैंडिंग हुई थी. तब सतह को छूने से सिर्फ 2.1 किमी पहले लैंडर का इसरो से संपर्क टूट गया था. इसरो के अधिकारियों की तरफ से कहा गया था कि लैंडिंग के दौरान विक्रम गिरकर तिरछा हो गया है, लेकिन टूटा नहीं है. वह सिंगल पीस में है और उससे संपर्क साधने की पूरी कोशिशें जारी हैं. कई कोशिशों के बाद भी विक्रम लैंडर से संपर्क नहीं हो पाया. इसके बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने इसरो को मदद की पेशकश की थी.
हालांकि, चांद पर लूनर डे हो जाने के कारण इसरो और नासा को अपनी तलाश रोकनी पड़ी. बाद में इसरो ने बयान जारी किया कि विक्रम लैंडर हमेशा के लिए खो चुका है.

कब लॉन्च हुआ था चंद्रयान-2?
चंद्रयान-2 चंद्रयान-1 का एक्सटेंडेड वर्जन है. इसरो ने इसे 22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस स्टेशन से लॉन्च किया था. इसके तीन हिस्से थे. विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर और ऑर्बिटर. 7 सितंबर को विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग होनी थी, लेकिन विक्रम ने हार्ड लैंडिंग की. इसके बाद विक्रम लैंडर का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया. चूंकि प्रज्ञान रोवर भी लैंडर के अंदर था. इसलिए वो भी अंतरिक्ष में खो चुका है. भारत का यह अभियान सफल हो जाता तो वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन जाता. हालांकि, ऑर्बिटर सुरक्षित है और काम कर रहा है.
ऑर्बिटर 7 साल तक काम करता रहेगा
इसरो के अधिकारी ने बताया कि चंद्रयान के ऑर्बिटर का वजन 2,379 किलोग्राम है और इसे एक साल की लाइफ के हिसाब से डिजाइन किया गया है. इसे लेकर जाने वाले रॉकेट की परफॉर्मेंस की वजह से इसमें मौजूद अतिरिक्त फ्यूल सुरक्षित है. ऐसे में ऑर्बिटर की लाइफ अगले 7 साल होगी. यानी 7 साल तक ये चांद की तस्वीरें भेजता रहेगा.
ये भी पढ़ें:-
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जानिए क्यों इसरो के चंद्रयान 2 मिशन को फेल नहीं कहा जा सकता?
नासा ने रात करीब 1:30 बजे चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के विक्रम लैंडर (Vikram Lander) के इम्पैक्ट साइट की तस्वीर जारी की है. नासा ने बताया कि उसके ऑर्बिटर को विक्रम लैंडर के तीन टुकड़े मिले हैं. ये टुकड़े 2x2 पिक्सेल के हैं.
नासा की ओर से जारी फोटो में नीले और हरे डॉट्स के जरिये विक्रम लैंडर के मलबे के दिखाया गया है. तस्वीर में दिख रहा है कि चांद की सतह पर जहां विक्रम लैंडर गिरा वहां मिट्टी को नुकसान भी हुआ है.

चंद्रयान-2 चंद्रयान-1 का एक्सटेंडेड वर्जन है.
नासा ने अपने बयान में कहा, '26 सितंबर को क्रैश साइट की एक तस्वीर जारी की गई थी और विक्रम लैंडर के सिग्नल्स की खोज करने के लिए लोगों को बुलाया गया था.' नासा ने आगे बताया, 'शनमुगा सुब्रमण्यन नाम के शख्स ने मलबे की एक सकारात्मक पहचान की. उन्होंने ही LRO प्रोजेक्ट से संपर्क किया. शानमुगा ने मुख्य क्रैश साइट के उत्तर-पश्चिम में लगभग 750 मीटर की दूरी पर स्थित मलबे की पहचान की थी. यह पहले मोजेक (1.3 मीटर पिक्सल, 84 डिग्री घटना कोण) में एक एकल उज्ज्वल पिक्सल पहचान थी.'
The #Chandrayaan2 Vikram lander has been found by our @NASAMoon mission, the Lunar Reconnaissance Orbiter. See the first mosaic of the impact site https://t.co/GA3JspCNuh pic.twitter.com/jaW5a63sAf
— NASA (@NASA) December 2, 2019
ISRO ने मांगी डिटेल रिपोर्ट
न्यूज़ एजेंसी एएफपी के मुताबिक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने नासा से विक्रम लैंडर के मलबे से जुड़ी डिटेल जानकारी मांगी है. नासा जल्द ही इससे जुड़ी रिपोर्ट सौंपेगा.
हार्ड लैंडिंग के बाद अंतरिक्ष में खो गया था विक्रम लैंडर
चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की 7 सितंबर को चांद की सतह पर हार्ड लैंडिंग हुई थी. तब सतह को छूने से सिर्फ 2.1 किमी पहले लैंडर का इसरो से संपर्क टूट गया था. इसरो के अधिकारियों की तरफ से कहा गया था कि लैंडिंग के दौरान विक्रम गिरकर तिरछा हो गया है, लेकिन टूटा नहीं है. वह सिंगल पीस में है और उससे संपर्क साधने की पूरी कोशिशें जारी हैं. कई कोशिशों के बाद भी विक्रम लैंडर से संपर्क नहीं हो पाया. इसके बाद अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने इसरो को मदद की पेशकश की थी.
हालांकि, चांद पर लूनर डे हो जाने के कारण इसरो और नासा को अपनी तलाश रोकनी पड़ी. बाद में इसरो ने बयान जारी किया कि विक्रम लैंडर हमेशा के लिए खो चुका है.

चंद्रयान के ऑर्बिटर का वजन 2,379 किलोग्राम है और इसे एक साल की लाइफ के हिसाब से डिजाइन किया गया है.
कब लॉन्च हुआ था चंद्रयान-2?
चंद्रयान-2 चंद्रयान-1 का एक्सटेंडेड वर्जन है. इसरो ने इसे 22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस स्टेशन से लॉन्च किया था. इसके तीन हिस्से थे. विक्रम लैंडर, प्रज्ञान रोवर और ऑर्बिटर. 7 सितंबर को विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग होनी थी, लेकिन विक्रम ने हार्ड लैंडिंग की. इसके बाद विक्रम लैंडर का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया. चूंकि प्रज्ञान रोवर भी लैंडर के अंदर था. इसलिए वो भी अंतरिक्ष में खो चुका है. भारत का यह अभियान सफल हो जाता तो वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर पहुंचने वाला चौथा देश बन जाता. हालांकि, ऑर्बिटर सुरक्षित है और काम कर रहा है.
ऑर्बिटर 7 साल तक काम करता रहेगा
इसरो के अधिकारी ने बताया कि चंद्रयान के ऑर्बिटर का वजन 2,379 किलोग्राम है और इसे एक साल की लाइफ के हिसाब से डिजाइन किया गया है. इसे लेकर जाने वाले रॉकेट की परफॉर्मेंस की वजह से इसमें मौजूद अतिरिक्त फ्यूल सुरक्षित है. ऐसे में ऑर्बिटर की लाइफ अगले 7 साल होगी. यानी 7 साल तक ये चांद की तस्वीरें भेजता रहेगा.
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First published: December 3, 2019, 7:26 AM IST