दुनिया के लिए मिसाल है चिजामी गांव की महिलाएं (फोटो आभार twitter)
महात्मा गांधी गांधी के सपनों के भारत को साकार करता हुआ चिजामी गांव आज पुरी दुनिया के लिए एक मिसाल है. नागालौंड के फेक जिले में स्थित इस गांव में पिछले एक दशक से पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक सुधारों (Environmental protection & Socioeconomic Reforms) के मामले में क्रांतिकारी पहल हुई है. मौजूदा समय में देश के कई दूसरे गांवों से लोग चिजामी मॉडल को देखने के लिए पहुंचते हैं. महिला अधिकारों की बात करने वाली और नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क (एनईएन) की संस्थापक मोनिशा बहल के नेतृत्व में साल 1994 में गांव में स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के लिए नागा महिलाओं का समूह बनाया गया था.
यह शुरुआत थी और तब से, महिलाएं गांव में हर परिवर्तनकारी पहल का नेतृत्व कर रही हैं, जिससे चिजामी वीव्स की नींव रखी गई है, जो एक विकेन्द्रीकृत आजीविका परियोजना है जो राज्य की अनूठी कपड़ा विरासत को संरक्षित करते हुए हाशिए की महिलाओं के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करती है.
महिला-पुरुषों के पैसों में समानता
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के अनुसार, एक ही काम के लिए पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से भुगतान दिया जाएगा, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और ही है मगर इस गांव में महिला और पुरुषों को एक काम के बराबर पैसे मिलते हैं. चिजामी गांव की महिलाओं ने लंबे संघर्ष के बाद साल 2015 में यह सफलता हासिल की थी. उनकी इस लड़ाई में कुछ पुरुषों ने भी उनकी मदद की.
ऐसे बदली गांव की तस्वीर
नागा समाज में, महिलाएं बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं जिसमें खेती, खाद्य प्रसंस्करण और बुनाई शामिल है, एक ऐसा कौशल जो हर नागा घर में मौजूद है. हालांकि नागा शॉल और पारंपरिक मेखला (रैपराउंड) को परिधान बाजार में पंथ का दर्जा प्राप्त था, लेकिन व्यवहार्यता और उद्यमिता की कमी के कारण गांवों में पारंपरिक बुनाई कम हो रही थी.
‘चिजामी वीव्स’ का कमाल
बुनकरों ने शॉल के अलावा स्टोल, कुशन कवर, बेल्ट, बैग, मफलर, कोटर्स, टेबल मैट और रनर जैसे उत्पादों में विविधता लाई, जिन्हें अब नई दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु और मुंबई के एम्पोरियम में भेजा जाता है. सात बुनकरों से शुरू हुआ ‘चिजामी वीव्स’ का काम आज चिज़ामी और फेक जिले के 10 अन्य गांवों में 300 से अधिक महिलाओं का एक मजबूत नेटवर्क है.
इस परियोजना ने महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय की नई धारणा लाने में भी मदद की है. बुनकर न केवल अपने बुनाई के माध्यम से अपने परिवारों का सहयोग करते हैं बल्कि वे स्वास्थ्य, आजीविका और पर्यावरण के मुद्दों पर अपनी आवाज उठाकर अपने घरों और समुदाय के सार्वजनिक स्थानों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार, चिजामी गांव में कुल 586 परिवार रहते हैं. गांव की कुल जनसंख्या 2592 है जिसमें 1289 पुरुष और 1303 महिलाएं हैं. यहाँ अनुसूचित जनजातियों की कुल जनसंख्या 2565 है जिसमें से 1275 पुरुष और 1290 महिलाएँ हैं.
.
Tags: Indian Village Stories
8 हॉलीवुड स्टार्स पर पड़ी AI की नजर, टॉम क्रूज से लियानार्डो तक भारतीय रंग में जीत रहे दिल, 'आयरन मैन' सबसे अलग
Career Tips: आसान होगा विदेश में पढ़ाई का सपना, ऐसे निकलेगी पॉकेट मनी, इन बातों का रखें ख्याल
2 सीक्वल और 1 रीमेक, क्या अक्षय से फ्लॉप एक्टर का टैग हटाएंगी ये 5 फिल्में? 'पठान' से भी अधिक एक्शन फिल्म का बजट