भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण. (File Photo)
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण (CJI N V Ramana) ने कहा है कि देश की निचली अदालतों में 4 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं . यह बात उन्होंने शनिवार को राज्य के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के संयुक्त सम्मेलन के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन वी रमण ने कहा कि अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे के लिए न्यायाधीशों की कमी है.
एन वी रमण ने कहा कि, देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर सिर्फ 20 न्यायधीश हैं, जो कि मुकदमे बाजी के बढ़ते मामलों के निपटारे के लिए बेहद कम हैं. देश की निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के लिए 24,000 स्वीकृत पदों में से कई पोस्ट अब तक खाली हैं.
वहीं चीफ जस्टिस ने अदालतों में महत्वहीन याचिकाएं दाखिल किये जाने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि जनहित याचिका की अवधारणा अब कई मामलों में निजी हित याचिका में बदल गई है. कभी-कभी परियोजनाओं को रोकने या सरकारी अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिये इनका इस्तेमाल किया जा रहा है.
इससे पहले पीएम मोदी ने आज इस सम्मेलन में संविधान के संरक्षक के तौर पर न्यायपालिका की भूमिका को बेहद अहम बताया. उन्होंने कहा कि भारत सरकार भी ज्यूडिशियल सिस्टम में टेक्नोलॉजी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है और हम न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
पीएम मोदी ने कहा कि, आजादी के 100 साल पूरे होने पर 2047 में हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपनी न्यायिक व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएं कि वह 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, इस सवाल का जवाब ढूंढना आज हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.
इसके अलावा पीएम मोदी ने सुझाव देते हुए कहा कि, अदालत की कार्यवाही स्थानीय भाषा में हो इससे जनता न्यायिक प्रणाली से जुड़ाव महसूस करेगी.
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